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गुलफ़ाम के कानों में बस ‘मेरे क़ासिद’ शब्द की गूँज थी। गुलफ़ाम अपने हाथ में वह लक्ष्मण रेखा लिए देर रात तक जागता रहा। जब सुबह उसकी नींद खुली तो उसने पाया कि उसके कमरे की दीवारों पर हर तरफ सिर्फ ‘मेरे क़ासिद’ ‘मेरे क़ासिद’ ही गुदा हुआ था। 

क़ासिद और नीली बिल्ली 

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गुलफ़ाम चित्रकारी सीख रहा था। शहर के पुराने हिस्सों में जाकर वह टूटे-फूटे मकानों, पुराने दरवाजों और दीवारों चित्र बनाता। एक दिन उसने मोहल्ले में नई शक्ल देखी। उस आदमी की दाढ़ी बढ़ी हुई थी। बाएँ हाथ में मोटी सी नीली रग की एक चॉक थी। वह जहाँ बैठता वहाँ कुछ गोदता रहता। हमेशा बड़बड़ाते रहता। कपड़े देखकर अंदाज़ा होता था जैसे वह किसी जादूगर का कोट चुरा लाया। उस कोट में लम्बी-लम्बी जेबें थी। 

ये यहाँ पहले कभी दिखाई नहीं दिया? - गुलफ़ाम ने चाय की टपरी वाले से पूछा..

वहीं अखबार पढ़ रहे एक चचा ने बताया कि-

उसका नाम क़ासिद है। वह पागल हो चुका है। बहुत पहले इस बस्ती में किसी रिसर्च के काम से आया था। उसके हाथ एक बहुत पुरानी रहस्यमयी तस्वीर लगी। फिर अचानक गायब हो गया। सालों तक उसे किसी ने नहीं देखा। बीच-बीच में कभी किसी को दिख जाता था। पता नहीं क्या-क्या बड़बड़ाता रहता था। जब नहीं दिखता तो लोग कहते कि क़ासिद मर गया है। जब दिखे तो समझो जिंदा है अभी क़ासिद... 

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लेकिन तुम्हें अगर चैन से रहना है तो उसे भूल जाओ 

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गुलफ़ाम की नज़रों में क़ासिद का चेहरा छप चुका था। वह जब भी किसी का पोर्ट्रेट बनाता तो आखिर में क़ासिद का चेहरा ही बन जाता। वह आईने में ख़ुद को देखता तो उसे क़ासिद दिखाई देता। सारे अजनबी चेहरे उसे क़ासिद की ही याद दिलाते। 

भैया वो कॉकरोच भगाने वाली चॉक देना- गुलफ़ाम ने दुकानदार से कहा 

लक्ष्मण रेखा चाहिए? – दुकानदार ने पूछा 

हाँ-हाँ वही- गुलफ़ाम ने हामी भरी 

गुलफ़ाम के घर आजकल कॉकरोच ख़ूब आ रहे थे। घर पर कुछ लकीरे खींचते हुए उसे ध्यान आया कि ये ठीक वैसी ही नीले रंग की चॉक है जैसी क़ासिद के हाथ में देखी थी। 

कुछ दिनों तक गुलफ़ाम ने क़ासिद को हर कहीं ढूँढा, लेकिन उसका कहीं कोई ज़िक्र नहीं मिला। कुछ लोगों ने तो यह कह दिया कि क़ासिद मर गया है। 

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जब गुलफ़ाम चचा से फिर मिला तो चचा ने बताया कि- 

‘क़ासिद गायब हो जाता है। कहाँ जाता है किसी को नहीं पता। वह बहुत कुछ कहना चाहता है लेकिन उसकी जुबां से शब्द फूटते ही बिखर जाते हैं। वह क्या लिखता है? किसी को समझ नहीं आता। हाँ उसकी बातें बिल्लियाँ समझ लेती हैं। 

बहुत दिनों बाद क़ासिद दिखाई दिया। क़ासिद ने गुलफ़ाम तरफ देखते ही नज़रे चुरा लीं। अचानक उसने गुलफ़ाम की ओर घूर कर देखा और कहा- 

‘मेरे क़ासिद...’ 

और वहां से उठकर बहुत तेज़ी से कहीं चला गया। गुलफ़ाम के कानों में बस ‘मेरे क़ासिद’ शब्द की गूँज थी। गुलफ़ाम अपने हाथ में वह लक्ष्मण रेखा लिए देर रात तक जागता रहा। जब सुबह उसकी नींद खुली तो उसने पाया कि उसके कमरे की दीवारों पर हर तरफ सिर्फ ‘मेरे क़ासिद’ ‘मेरे क़ासिद’ ही गुदा हुआ था। 

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