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नाम लेकर पुकारने से ज्यादा निजी और आत्मीय कुछ भी नहीं...

हरसिंगार का पेड़

मोबाइल उठाकर उसने मेज पर रख दिया था और खुद बिस्तर पर आकर बैठी गयी थी।  मौसम में फागुन का रंग घुलने लगा था। भोर और देर रात को हल्की ठंड होती थी और दिनभर तेज-तीखी धूप। दिन में कहीं जाना होता तो उसे लगता कि चमड़ी जल जायेगी, ऐसे में उसे गाँव में रह रहे अपने नानाजी की याद आती जो इस मौसम की चटक धूप देखकर कहते थे कि ये धूप सोना है, गेंहू की फसल इसी सोने से पकती है।

गाँव के नाम से उसे दरवाजे पर लगा हरसिंगार का पेड़ भी याद आ जाता था और उसके फूलों की खुश्बू उसके मन में उतर आती थी। उसका मन उदास होता तो गाँव और भी याद आने लगता था। कच्ची सड़क के उस पार चौर के पानी में रात को गुजरती हुई ट्रेन की छवि। गाँव के बाहर बने कब्रिस्तान के चारों तरफ लगे झड़बेरी और सतालू। उसका मन हुआ एक फोन ही कर ले। किसी से भी बात करे ताकि मन थोड़ा इस उदासी से बाहर निकल सके। बेख़याली में बिस्तर पर फोन खोजने लगी तो याद आया कि उसने मोबाइल खुद उठाकर दूर रख दिया है।

उसने उठकर चाय बनाने की सोची, एक चाय ही तो है जो हर हाल में अच्छी लगती है। चाय के भगोने में पानी और चाय की पत्तियाँ डालकर उबलने का इंतज़ार कर रही मनु को फिर से अमृत की याद आ गयी। पहले वह ऐसी चाय नहीं पीती थी, उसे दूध, पानी, अदरक, तुलसी के पत्ते, चीनी और चाय की पत्तियाँ सब खूब खौलाकर बनायी हुई चाय पसन्द थी। अमृत खूब मज़ाक उड़ाता और कहता कि ये चाय है कि काढ़ा। उसने खीझ में चाय में लौंग, इलायची, अदरक, तुलसी, सब डाल दिया। चाय का पहला घूँट पीते ही उसकी आँखों से दो बूंदें टप्प से गिरी। 

कल रात का गुस्सा अबतक निराशा और फिर उदासी में बदल चुका था। अक्टूबर की उदास दोपहरी उसे और ज्यादा काटने दौड़ रही थी। अमृत परसों ही जोधपुर गया था और अब तक कोई ख़बर नहीं आयी थी। कल शाम को मनु ने ही हारकर उसे फोन कर लिया था। फोन किसी और ने उठाया था, शायद विजया दी थी। मनु ने हेलो सुनते ही फोन काट दिया था।

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अमृत कभी ऐसा नहीं करता था, कहकर उसने फोन ना किया हो ऐसा तो कभी नहीं हुआ। मनु का हृदय किसी अज्ञात आशंका से बार-बार घबरा उठता था। अमृत ठीक तो है न, कोई बात तो नहीं हो गयी घर पर। इस बार वह अपने पिता से साफ़-साफ़ बात करने गया था। कहीं उसके पिता और ज्यादा न भड़क गए हों। अमृत ने उसे जाते समय कहा था कि वह खुद फोन कर लेगा समय मिलते ही। चाय पीकर मनु ने मुँह धोया और बालकनी में खड़ी होकर रास्ते से आते-जाते लोगों को देखने लगी।

कितने तरह के लोग, सब के सब जल्दी में, हड़बड़ाहट में। आज छुट्टी के दिन भी लोगों को चैन नहीं है। छुट्टी का दिन! ओह आज तो एक आर्ट एक्सीबिशन में जाना था अपने ऑफिस के कलीग्स के साथ। चार बजे जवाहर कला-केंद्र में सबको इकट्ठा होने को उसी ने कहा था। सबको शिकायत रहती थी कि वह अमृत के अलावा और किसी के संग कहीं नहीं जाती तो उसने सोचा कि वह थोड़ा घूम आये तो उसका भी मन बदल जायेगा। क्या समय हो गया है देखने के लिए उसने घड़ी उठाई।

अभी तो तीन ही बजा था, उसने सोचा कि नहा ले।

छुट्टियों के दिन उसे नहाना बिल्कुल पसंद नहीं था। कहीं जाना होता तभी नहाती नहीं तो नहीं। नहाकर आयी मनु ने अलमारी खोली कि क्या पहने। कबसे अलमारी उसने ठीक नहीं की थी। जवाहर कला-केंद्र से वापिस आकर पक्का कर लेगी आज। हर वीकेंड मनु अमृत की पसन्द के कपड़े पहनती थी, ये नहीं कि अमृत बोलता था उसे खुद अच्छा लगता था।

अमृत को चटक रंग अच्छे लगते थे, लाल, नीला, पीला और नारंगी। उसकी अलमारी भरी हुई थी इन रंगों से। उसने एक उजले रंग की कुर्ती निकाली जिसपर छोटे-छोटे गुलाबी फूल कढ़े हुए थे, ये उसे मम्मी ने उसके जन्मदिन पर भेजा था। तभी उसके मोबाइल पर कॉल आने लगी। एक पल को लगा कहीं अमृत न हो उसने जल्दी से दौड़कर फोन उठा लिया। शिखा का था, उसने बुझे मन से फोन उठाया। शिखा ने कहा कि वो रेडी होकर बाहर आ जाये, वो उसे साथ लेकर चली जायेगी।

उसने कपड़े पहने, बाल बनाये, काजल लगाते हुए उसे अहसास हुआ आँखे दुख रही हैं। उसे लगा वो कुछ ज्यादा ही परेशान हो रही। अमृत जरूर फोन करेगा हो सकता है किसी काम में उलझ गया हो। और वो भी अब अपना मन और खराब नहीं करेगी। उसने मेटल के झुमके पहने जिसमें गुलाबी मोती लगे हुए थे। पर्स उठाकर उसमें चश्मा, लिपबाम, मोबाईल रखा स्टोल को कन्धों पर लपेटकर  सीढियां उतरकर नीचे आ गयी। घड़ी पहनते ही उसे अपने हाथ पर टैटू दिखा- अमृता। उसके चेहरे पर बहुत प्यारी मुस्कान आ गयी। अमृत की अमृता। ऐसा ही एक टैटू अमृत की कलाई पर भी है। मन लिखा हुआ। मनु का मन। 

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उसका नाम मनु था, मनस्विनी पांडेय। लेकिन अमृत से उसे नाम दिया था अमृता। इसी तरह उसने अमृत सिंह राठौड़ को अपने नाम से जोड़कर मन बना दिया था। 

मनु ने अपनी कलाई पर बने हुए टैटू पर उंगलियां फिराते हुए सोचा कि नाम में क्या रखा है, किसी का कुछ भी नाम हो सकता है, कोई किसी को किसी भी नाम से पुकार सकता है। माता-पिता के दिये नाम, डाक-नाम (घर में पुकारा जाने वाला नाम), यारी-दोस्ती में चिढ़ाने को दिए जाने वाले नाम, प्रेम में दिए जाने वाले नाम, अपने मन का एक नाम... लेकिन कभी ऐसा भी होता है कि कोई आपको आपके नाम से पुकारे, और आपको अपना वही नाम नया और अनोखा लगे, नाम का एक नया अर्थ खुले। वह नाम जो आजतक आपकी पहचान भर रहा है, उससे आपको जुड़ाव महसूस हो... नाम लेकर पुकारने से ज्यादा निजी और आत्मीय कुछ भी नहीं। 

क्या सोच रही हो मनु! शिखा की आवाज़ से उसकी सोच की दुनिया भंग हुई। 

कुछ नहीं, चलो चलें...

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