एपिसोड 1
क्या आप जानते हैं हिंदी की पहली कहानी कौन सी थी? ये काफी विवादित प्रश्न है जिसके बारे में विद्वानों में मत भिन्न-भिन्न हैं। भारतेंदु युग से पूर्व की कथा साहित्य में पौराणिक आख्यानों का बहुत गहरा प्रभाव देखने को मिलता है। कालक्रम की दृष्टी से जिन कहानियों को पहली कहानी में शामिल किया जाता है वो निम्न हैं- रानी केतकी की कहानी, प्रेमसागर, नासिकेतोपाख्यान, राजा भोज का सपना, दुलाईवाली, ग्यारह वर्ष का समय, इंदुमती, एक टोकरी भर मिट्टी, प्लेग की चुड़ैल, उसने कहा था आदि। इस संबध में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल नें इंदुमती को प्रथम कहानी माना है। देवी प्रसाद वर्मा का मानना है की ‘एक टोकरी भर मिट्टी’ को पहली कहानी माना जाए, वहीँ लक्ष्मीनारायण लाल ने शिल्पगत विशेषताओं के कारण ‘ग्यारह वर्ष का समय’ कहानी को पहली कहानी बताया है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि पहली कहानी को लेकर अभी भी कोई स्पष्ट मत नहीं है, पर इतना जरूर है उस दौर की लगभग सभी कहानियां जिन्हें पहली कहानी के रूप में प्रस्तुत किया जा है अपने आप में विशिष्ट है।
अनुक्रम
कहानी: एक टोकरी भर मिट्टी- एपिसोड- 1
कहानी: उसने कहा था- एपिसोड- 2,3,4,5
कहानी: दुलाईवाली- एपिसोड- 6,7
कहानी: ग्यारह वर्ष का समय- एपिसोड- 8,9,10
कहानी: इंदुमति- एपिसोड- 11,12
कहानी: प्लेग की चुड़ैल- एपिसोड- 13,14,15,16
कहानी: राजा भोज का सपना- एपिसोड- 17,18,19
कहानी: रानी केतकी की कहानी- एपिसोड- 20,21,22,23,24
उन्होंने अपनी सब ताकत लगाकर टोकरी को उठाना चाहा, पर जिस स्थान पर टोकरी रखी थी, वहाँ से वह एक हाथ भी ऊँची न हुई। वह लज्जित होकर कहने लगे, ''नहीं, यह टोकरी हमसे न उठाई जाएगी।''...
कहानी: एक टोकरी-भर मिट्टी, एपिसोड- 1
किसी श्रीमान् जमींदार के महल के पास एक गरीब अनाथ विधवा की झोंपड़ी थी। जमींदार साहब को अपने महल का हाता उस झोंपड़ी तक बढा़ने की इच्छा हुई, विधवा से बहुतेरा कहा कि अपनी झोंपड़ी हटा ले, पर वह तो कई जमाने से वहीं बसी थी; उसका प्रिय पति और इकलौता पुत्र भी उसी झोंपड़ी में मर गया था।
पतोहू भी एक पाँच बरस की कन्या को छोड़कर चल बसी थी। अब यही उसकी पोती इस वृद्धाकाल में एकमात्र आधार थी। जब उसे अपनी पूर्वस्थिति की याद आ जाती तो मारे दु:ख के फूट-फूट रोने लगती थी। और जबसे उसने अपने श्रीमान् पड़ोसी की इच्छा का हाल सुना, तब से वह मृतप्राय हो गई थी।
उस झोंपड़ी में उसका मन लग गया था कि बिना मरे वहाँ से वह निकलना नहीं चाहती थी। श्रीमान् के सब प्रयत्न निष्फल हुए, तब वे अपनी जमींदारी चाल चलने लगे। बाल की खाल निकालने वाले वकीलों की थैली गरम कर उन्होंने अदालत से झोंपड़ी पर अपना कब्जा करा लिया और विधवा को वहाँ से निकाल दिया। बिचारी अनाथ तो थी ही, पास-पड़ोस में कहीं जाकर रहने लगी।
एक दिन श्रीमान् उस झोंपड़ी के आसपास टहल रहे थे और लोगों को काम बतला रहे थे कि वह विधवा हाथ में एक टोकरी लेकर वहाँ पहुँची। श्रीमान् ने उसको देखते ही अपने नौकरों से कहा कि उसे यहाँ से हटा दो। पर वह गिड़गिड़ाकर बोली, ''महाराज, अब तो यह झोंपड़ी तुम्हारी ही हो गई है। मैं उसे लेने नहीं आई हूँ। महाराज क्षमा करें तो एक विनती है।''
जमींदार साहब के सिर हिलाने पर उसने कहा, ''जब से यह झोंपड़ी छूटी है, तब से मेरी पोती ने खाना-पीना छोड़ दिया है। मैंने बहुत-कुछ समझाया पर वह एक नहीं मानती। यही कहा करती है कि अपने घर चल। वहीं रोटी खाऊँगी। अब मैंने यह सोचा कि इस झोंपड़ी में से एक टोकरी-भर मिट्टी लेकर उसी का चूल्हा बनाकर रोटी पकाऊँगी। इससे भरोसा है कि वह रोटी खाने लगेगी। महाराज कृपा करके आज्ञा दीजिए तो इस टोकरी में मिट्टी ले आऊँ!'' श्रीमान् ने आज्ञा दे दी।
विधवा झोंपड़ी के भीतर गई। वहाँ जाते ही उसे पुरानी बातों का स्मरण हुआ और उसकी आँखों से आँसू की धारा बहने लगी। अपने आंतरिक दु:ख को किसी तरह सँभालकर उसने अपनी टोकरी मिट्टी से भर ली और हाथ से उठाकर बाहर ले आई। फिर हाथ जोड़कर श्रीमान् से प्रार्थना करने लगी, ''महाराज, कृपा करके इस टोकरी को जरा हाथ लगाइए जिससे कि मैं उसे अपने सिर पर धर लूँ।''
जमींदार साहब पहले तो बहुत नाराज हुए। पर जब वह बार-बार हाथ जोड़ने लगी और पैरों पर गिरने लगी तो उनके मन में कुछ दया आ गई। किसी नौकर से न कहकर आप ही स्वयं टोकरी उठाने आगे बढ़े। ज्योंही टोकरी को हाथ लगाकर ऊपर उठाने लगे त्योंही देखा कि यह काम उनकी शक्ति के बाहर है। फिर तो उन्होंने अपनी सब ताकत लगाकर टोकरी को उठाना चाहा, पर जिस स्थान पर टोकरी रखी थी, वहाँ से वह एक हाथ भी ऊँची न हुई। वह लज्जित होकर कहने लगे, ''नहीं, यह टोकरी हमसे न उठाई जाएगी।''
यह सुनकर विधवा ने कहा, ''महाराज, नाराज न हों, आपसे एक टोकरी-भर मिट्टी नहीं उठाई जाती और इस झोंपड़ी में तो हजारों टोकरियाँ मिट्टी पड़़ी है। उसका भार आप जन्म-भर क्योंकर उठा सकेंगे? आप ही इस बात पर विचार कीजिए।"
जमींदार साहब धन-मद से गर्वित हो अपना कर्तव्य भूल गए थे पर विधवा के उपर्युक्त वचन सुनते ही उनकी आँखें खुल गयीं। कृतकर्म का पश्चाताप कर उन्होंने विधवा से क्षमा माँगी और उसकी झोंपड़ी वापिस दे दी।
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