एपिसोड 1

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''बच्‍चों की प्‍यारी-प्‍यारी बातें सुनकर तो चाहे जैसा जी हो, प्रसन्‍न हो जाता है। मगर तुम्‍हारा हृदय न जाने किस धातु का बना हुआ है?''

कहानी: ताई

लेलगाड़ी

''ताऊजी, हमें लेलगाड़ी (रेलगाड़ी) ला दोगे?" कहता हुआ एक पंचवर्षीय बालक बाबू रामजीदास की ओर दौड़ा।

बाबू साहब ने दोंनो बाँहें फैलाकर कहा- ''हाँ बेटा,ला देंगे।'' उनके इतना कहते-कहते बालक उनके निकट आ गया। उन्‍होंने बालक को गोद में उठा लिया और उसका मुख चूमकर बोले- ''क्‍या करेगा रेलगाड़ी?''

बालक बोला- ''उसमें बैठकर बली दूल जाएँगे। हम बी जाएँगे,चुन्‍नी को बी ले जाएँगे। बाबूजी को नहीं ले जाएँगे। हमें लेलगाड़ी नहीं ला देते। ताऊजी तुम ला दोगे, तो तुम्‍हें ले जाएँगे।''

बाबू- "और किसे ले जाएगा?''

बालक दम भर सोचकर बोला- ''बछ औल किछी को नहीं ले जाएँगे।''

पास ही बाबू रामजीदास की अर्द्धांगिनी बैठी थीं। बाबू साहब ने उनकी ओर इशारा करके कहा- ''और अपनी ताई को नहीं ले जाएगा?''

बालक कुछ देर तक अपनी ताई की ओर देखता रहा। ताईजी उस समय कुछ चि‍ढ़ी हुई सी बैठी थीं। बालक को उनके मुख का वह भाव अच्‍छा न लगा। अतएव वह बोला- ''ताई को नहीं ले जाएँगे।''

ताईजी सुपारी काटती हुई बोलीं- ''अपने ताऊजी ही को ले जा मेरे ऊपर दया रख।'' ताई ने यह बात बड़ी रूखाई के साथ कही। बालक ताई के शुष्‍क व्‍यवहार को तुरंत ताड़ गया। बाबू साहब ने फिर पूछा- ''ताई को क्‍यों नहीं ले जाएगा?''

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बालक- ''ताई हमें प्‍याल(प्‍यार) नहीं कलतीं।''

बाबू- ''जो प्‍यार करें तो ले जाएगा?''

बालक को इसमें कुछ संदेह था। ताई के भाव देखकर उसे यह आशा नहीं थी कि वह प्‍यार करेंगी। इससे बालक मौन रहा।

बाबू साहब ने फिर पुछा- ''क्‍यों रे बोलता नहीं? ताई प्‍यार करें तो रेल पर बिठाकर ले जाएगा?''

बालक ने ताउजी को प्रसन्‍न करने के लिए केवल सिर हिलाकर स्‍वीकार कर लिया, परंतु मुख से कुछ नहीं कहा।

बाबू साहब उसे अपनी अर्द्धांगिनी के पास ले जाकर उनसे बोले- ''लो, इसे प्‍यार कर लो तो तुम्‍हें ले जाएगा।'' परंतु बच्‍चे की ताई श्रीमती रामेश्‍वरी को पति की यह चुगलबाजी अच्‍छी न लगी। वह तुनककर बोली- ''तुम्‍हीं रेल पर बैठकर जाओ, मुझे नहीं जाना है।''

बाबू साहब ने रामेश्‍वरी की बात पर ध्‍यान नहीं दिया। बच्‍चे को उनकी गोद में बैठाने की चेष्‍टा करते हुए बोले- ''प्‍यार नहीं करोगी, तो फिर रेल में नहीं बिठावेगा। क्‍यों रे मनोहर?''

मनोहर ने ताऊ की बात का उत्तर नहीं दिया। उधर ताई ने मनोहर को अपनी गोद से ढकेल दिया। मनोहर नीचे गिर पड़ा। शरीर में तो चोट नहीं लगी, पर हृदय में चोट लगी। बालक रो पड़ा।

बाबू साहब ने बालक को गोद में उठा लिया। चुमकार-पुचकारकर चुप किया और तत्‍पश्‍चात उसे कुछ पैसा तथा रेलगाड़ी ला देने का वचन देकर छोड़ दिया। बालक मनोहर भयपूर्ण दॄष्टि से अपनी ताई की ओर ताकता हुआ उस स्‍थान से चला गया।

मनोहर के चले जाने पर बाबू रामजीदास रामेश्‍वरी से बोले- ''तुम्हारा यह कैसा व्‍य‍वहार है? बच्‍चे को ढकेल दिया। जो उसे चोट लग जाती तो?''

रामेश्‍वरी मुँह मटकाकर बोली- ''लग जाती तो अच्‍छा होता। क्‍यों मेरी खोपड़ी पर लादे देते थे? आप ही मेरे उपर डालते थे और आप ही अब ऐसी बातें करते हैं।''

बाबू सा‍हब कुढ़कर बोले- ''इसी को खोपड़ी पर लादना कहते हैं?''

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रामेश्‍वरी- ''और नहीं किसे कहते हैं, तुम्‍हें तो अपने आगे और किसी का दु:ख-सुख सूझता ही नहीं। न जाने कब किसका जी कैसा होता है। तुम्‍हें उन बातों की कोई परवाह ही नहीं, अपनी चुहल से काम है।''

बाबू- ''बच्‍चों की प्‍यारी-प्‍यारी बातें सुनकर तो चाहे जैसा जी हो, प्रसन्‍न हो जाता है। मगर तुम्‍हारा हृदय न जाने किस धातु का बना हुआ है?''

रामेश्‍वरी- ''तुम्‍हारा हो जाता होगा। और होने को होता है, मगर वैसा बच्‍चा भी तो हो। पराये धन से भी कहीं घर भरता है?''

बाबू साहब कुछ देर चुप रहकर बोले- ''यदि अपना सगा भतीजा भी पराया धन कहा जा सकता है, तो फिर मैं नहीं समझता कि अपना धन किसे कहेंगे?''

रामेश्‍वरी कुछ उत्तेजित हो कर बोली- ''बातें बनाना बहुत आसान है। तुम्‍हारा भतीजा है, तुम चाहे जो समझो, पर मुझे यह बातें अच्‍छी नहीं लगतीं। हमारे भाग ही फूटे हैं, नहीं तो यह दिन काहे को देखने पड़ते। तुम्‍हारा चलन तो दुनिया से निराला है। आदमी संतान के लिए न जाने क्‍या-क्‍या करते हैं! पूजा-पाठ करते हैं, व्रत रखते हैं,पर तुम्‍हें इन बातों से क्‍या काम? रात-दिन भाई-भतीजों में मगन रहते हो।''

बाबू साहब के मुख पर घृणा का भाव झलक आया। उन्‍होंने कहा- ''पूजा-पाठ, व्रत सब ढकोसला है। जो वस्‍तु भाग्‍य में नहीं, वह पूजा-पाठ से कभी प्राप्‍त नहीं हो सकती। मेरा तो यह अटल विश्‍वास है।"

श्रीमतीजी कुछ-कुछ रूँआसे स्‍वर में बोलीं- "इसी विश्‍वास ने सब चौपट कर रखा है। ऐसे ही विश्‍वास पर सब बैठ जाएँ तो काम कैसे चले? सब विश्‍वास पर ही न बैठे रहें, आदमी काहे को किसी बात के लिए चेष्‍टा करे।"

बाबू साहब ने सोचा कि मूर्ख स्‍त्री के मुँह लगना ठीक नहीं। अतएव वह स्‍त्री की बात का कुछ उत्तर न देकर वहाँ से टल गए।

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