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एपिसोड 1-7 : अभिसारिका

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एपिसोड 8-11 : बोल
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उस तनावग्रस्त समय में पिता के प्रेम सम्बन्ध की ख़बरें भी आती रहती थीं। किन्तु मौसम माँ तक इन ख़बरों को पहुँचने ही नहीं देता। वह समय से पूर्व ही वयस्क हो गया। 

कहानी : अभिसारिका 

मौसम


अरुणोदय व गोधूली, एक में भोर की दुधिया रौशनी तो दूसरे में साँझ का पीताम्बर। एक प्रकाश के आगमन तो दूसरा उसके प्रस्थान का प्रहर। पृथकता में ही इनकी समानता है। इन दोनों प्रहरों में प्रकाश, अँधेरा तथा आकाश का संगम होता है। संगम अर्थात मिलन, एक-दूसरे में आत्मिक भाव से मिल जाना। भूगोल की दृष्टि में संगम, नदी की दो या अधिक धाराओं के मिलन को कहते हैं।

प्रयाग में ऐसा ही एक संगम है, गंगा, युमना और सरस्वती के मध्य। इसे त्रिवेणी संगम कहते हैं। इस संगम स्थल को ओंकार के नाम से भी अभिहित किया गया है। यह शब्द ईश्वर की ओर एक रहस्यात्मक संकेत करता है और यही त्रिवेणी का भी सूचक है। सरस्वती यहाँ दिखती नहीं है, किन्तु मान्यता है कि वह अदृश्य रूप में होकर गंगा व यमुना की धाराओं के नीचे बहती है। जैसे ग्रहों में सूर्य तथा तारों में चंद्रमा है, वैसे ही तीर्थों में संगम को सभी तीर्थों का अधिपति माना गया है तथा सप्तपुरियों को इसकी रानियाँ कहा गया है।

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यहाँ यमुना नदी के किनारे सरस्वती घाट बना हुआ है। इसी प्रभावशाली सरस्वती घाट की सीढ़ियों पर बैठकर 35 वर्षीय युवक मौसम, प्रायः यमुना की लहरों को घंटों निहारा करता था। आज मौसम को इस शहर में आए हुए छह महीने हो गए थे। उसके विचारों और यमुना की लहरों में कभी सूर्योदय तो, कभी सूर्यास्त का संगम होता रहता था। दिन के ये दो प्रहर उसे बहुत प्रिय थे, जब वह बिना किसी आवरण या मास्क के साँस लेता था।

उसका जन्म उत्तराखंड के अल्मोड़ा में हुआ था। वहीं पला और बढ़ा। यदि रक्त सम्बन्ध ही मनुष्य का परिवार होता है, तो उसका परिवार आज भी वहाँ रहता था। किन्तु मौसम के लिए उसका परिवार उसी दिन समाप्त हो गया था, जिस दिन उसकी माँ की मृत्यु हुई। मौसम के माता-पिता दोनों ही बैंक में नौकरी करते थे। जहाँ पिता के जीवन में उनके लिए समय नहीं था, वहीं माँ का पूरा जीवन ही मौसम और उसकी छोटी बहन वर्षा थे। 

रसोई का सारा काम मौसम ने अपनी माँ से ही सीखा था। हालाँकि यदा-कदा उनका परिवार एक साथ घूमने जाता था किन्तु पिता ने कभी बच्चों के निकट आने का प्रयास ही नहीं किया। फिर भी मौसम अपने इस शाँत जीवन में प्रसन्न था। उसके जीवन में भूचाल तब आया, जब माँ की बीमारी का पता चला था। माँ के शरीर को कैंसर ने जकड़ लिया था।

छोटी बहन वर्षा को मौसम ने तनाव और चिंता से दूर रखने का हर संभव प्रयास किया। उस तनावग्रस्त समय में पिता के प्रेम सम्बन्ध की ख़बरें भी आती रहती थीं। किन्तु मौसम माँ तक इन ख़बरों को पहुँचने ही नहीं देता। वह समय से पूर्व ही वयस्क हो गया। मौसम की तपस्या और मृत्यु के बीच पाँच वर्ष संघर्ष चला। अंततः मृत्यु की विजय हुई।

माँ की मृत्यु के दो महीने बाद ही उसके पिता ने विवाह कर लिया। मौसम को उनके विवाह करने से कोई आपत्ति नही हुई। उसे आपत्ति इस मर्द की निष्ठुरता से हुई। जिस स्त्री ने उसके बच्चों को जन्म दिया, दुःख और सुख में उसका संबल बनी, बीमारियों में उसकी तीमारदारी की, उस स्त्री के प्रति उनके अंदर लेश मात्र का भी स्नेह अथवा आभार नहीं था।

उस दिन ही उसने अपने पिता का घर त्याग दिया। घर छोड़कर जाने के बाद का जीवन कष्टदायी अवश्य था, किन्तु तनाव मुक्त था। वह वर्षा को भी अपने साथ लाना चाहता था किन्तु उस समय वर्षा का पिता के साथ रहना ही सही लगा। एक स्कूल में पार्ट टाइम नौकरी और प्रिंसिपल सर के सहयोग से, मौसम अपनी पढ़ाई पूरी कर पाया। समय आगे बढ़ता रहा।

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मौसम के पिता पुनः पिता बने। वर्षा का विवाह हो गया और वह कनाडा में बस गई। समय ने मौसम को भी उसके अथक परिश्रम का फल दिया। नेट की परीक्षा उत्तीर्ण करने के एक वर्ष पश्चात ही उसका चयन प्रयागराज डिग्री कॉलेज में ऐन्सिएन्ट हिस्ट्री के असिस्टेंट प्रोफे़सर के पद पर हो गया। वह प्रयागराज आ गया।

मौसम रहने के लिए कॉलेज के समीप ही कोई स्थान देख रहा था। एक शाम अनजाने में ही वह सरस्वती घाट पहुँच गया था। यमुना नदी के पहलू में कुछ समय बैठकर जब वह उठा, उसे एक नई स्फू़र्ति का अनुभव हुआ। उसे अजनबी शहर में पहला मित्र मिल गया। संयोग से जो मकान उसे मिला, वह घाट और कॉलेज के मध्य आता था।

वह मकान भी अनोखा था, बिल्कुल एंटिक। लाल पत्थरों से बनी हुई उसकी बाहरी दीवारें, पूरी तरह से चमेली की झाड़ियों से ढकी हुई थीं। यहाँ तक कि खिड़कियों और दरवाज़ों पर भी उनका ही आधिपत्य था। ऐसा लगता मानो, लाल देह पर बंधी हरी साड़ी में, सफ़ेद फूल टांक दिए गए हों। इस मकान ने एक नज़र में ही उसका मन मोह लिया। 

मकान मालकिन सियोल में रहती और चार-पाँच साल में एक बार ही यहाँ आती थी। झाड़ियों के रख-रखाव के लिए एक माली था, जो घर की सफ़ाई का भी काम करता। इस दो मंज़िले मकान की पहली मंज़िल, मौसम को मिली। निचली मंज़िल मकान मालकिन अथवा उनके मेहमानों के लिए है। मौसम के ऊपर आने-जाने का रास्ता पीछे से था। इस मकान में उसे पाँच महीने हो गए, किन्तु निचली मंज़िल में अभी तक कोई नहीं आया।


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