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''प्यारे कुमार, कुछ तो बोलो! जरा अपने दुश्मनों का नाम तो बताओ, कुछ कहो तो सही कि किस बेईमान ने तुम्हें मारकर इस सन्दूक में डाल दिया हाय, अब हम तुम्हारी मां बेचारी चन्द्रकांता के पास कौन मुंह लेकर जायेंगे किस मुंह से कहेंगे कि तुम्हारे प्यारे होनहार लड़के को किसी ने मार डाला!

दुश्मन से बदला

वे दोनों साधु, जो सन्दूक के अन्दर झांक न मालूम क्या देखकर बेहोश हो गए थे, थोड़ी देर बाद होश में आए और चीख-चीखकर रोने लगे। एक ने कहा, ''हाय-हाय इन्द्रजीतसिंह, तुम्हें क्या हो गया! तुमने तो किसी के साथ बुराई न की थी, फिर किस कम्बख्त ने तुम्हारे साथ बदी की प्यारे कुमार, तुमने बड़ा बुरा धोखा दिया, हम लोगों को छोड़कर चले गए, क्या दोस्ती का हक इसी तरह अदा करते हैं हाय, अब हम लोग जीकर क्या करेंगे, अपना काला मुंह लेकर कहां जाएंगे हमको अपने भाई से बढ़कर मानने वाला अब दुनिया में कौन रह गया! तुम हमें किसके सुपुर्द करके चले गये'


दूसरा बोला - ''प्यारे कुमार, कुछ तो बोलो! जरा अपने दुश्मनों का नाम तो बताओ, कुछ कहो तो सही कि किस बेईमान ने तुम्हें मारकर इस सन्दूक में डाल दिया हाय, अब हम तुम्हारी मां बेचारी चन्द्रकांता के पास कौन मुंह लेकर जायेंगे किस मुंह से कहेंगे कि तुम्हारे प्यारे होनहार लड़के को किसी ने मार डाला! नहीं-नहीं, ऐसा न होगा, हम लोग जीतेजी अब लौटकर घर न जायंगे, इसी जगह जान दे देंगे। नहीं-नहीं, अभी तो हमें उससे बदला लेना है जिसने हमारा सर्वनाश कर डाला। प्यारे कुमार, जरा तो मुंह से बोलो, जरा आंखें खोलकर देखो तो सही, तुम्हारे पास कौन खड़ा रो रहा है। क्या तुम हमें भूल गए हाय, यह यकायक कहां से गजब आकर टूट पड़ा!''


अब तो पाठक समझ गए होंगे कि इस सन्दूक में कुंअर इन्द्रजीतसिंह की लाश थी और ये दोनों साधु उनके दोस्त भैरोसिंह और तारासिंह थे। इन दोनों के रोने से कामिनी असल बात समझ गई, वह झट कोठरी के बाहर निकल आई और मोमबत्ती की रोशनी में कुमार की लाश देख जोर-जोर से रोने लगी। किशोरी इस तहखाने के बगल वाली कोठरी में थी। उसने जो कुंअर इन्द्रजीतसिंह का नाम ले-लेकर रोने की आवाज़ सुनी तो उसकी अजब हालत हो गई। उसका पका हुआ दिल इस लायक न था कि इतनी ठेस सम्हाल सके, बस एक दफे 'हाय' की आवाज़ तो उसके मुंह से निकली मगर फिर तन-बदन की सुध न रही। वह ऐसी जगह न थी कि कोई उसके पास जाए या उसे सम्हाले और देखे कि उसकी क्या हालत है।


भैरोसिंह और तारासिंह ने जो कामिनी को देखा, तो वह लोग फूट-फूटकर रोने लगे। तहखाने में हाहाकर मच गया। घण्टे भर यही हालत रही। जब कामिनी ने रोकर यह कहा कि 'इसी बगल वाली कोठरी में बेचारी किशोरी भी है, हाय, हम लोगों का रोना सुनकर उस बेचारी की क्या अवस्था हुई होगी।' तब भैरोसिंह और तारासिंह चुप हुए और कामिनी का मुंह देखने लगे।


भैरोसिह - तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि यहां किशोरी भी है


कामिनी - मैं उससे बातें कर चुकी हूं।


तारासिंह - क्या तुम बड़ी देर से इस तहखाने में हो

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कामिनी - देर क्या, मैं तो कई दिनों से भूखी-प्यासी इस तहखाने में कैद हूं। (उस आदमी की तरफ इशारा करके) यह मेरा पहरा देता था।


भैरोसिंह - खैर, जो होना था सो हो गया। अब हम लोग अगर रोने-धोने में लगे रहेंगे, तो इनके दुश्मन का पता न लगा सकेंगे और न उससे बदला ही ले सकेंगे। यों तो जन्म भर रोना ही है परन्तु जब इनके दुश्मन से बदला ले लेंगे तो कलेजे में कुछ ठण्डक पड़ेगी। तुम यहां कैसे आईं और इन दुष्टों के हाथ क्योंकर फंसीं, खुलासा कहो तो शायद कुछ पता लगे।


कामिनी ने अपना खुलासा हाल कहा और इसके बाद पूछा, ''तुम दोनों का आना कैसे हुआ'


भैरोसिंह - कमला ने इस तहखाने का पता देकर हम लोगों को यहां भेजा है। थोड़ी ही देर में राजा वीरेन्द्रसिंह और कुंअर आनन्दसिंह भी बहुत से आदमियों को साथ लिए आना ही चाहते हैं, कमला भी उनके साथ होगी, हम लोग कुंअर इन्द्रजीतसिंह को छुड़ाने के लिए किसी दूसरी जगह जाने वाले थे, मगर हाय, यह क्या खबर थी कि रास्ते में ही हम लोगों पर यह पहाड़ टूट पड़ेगा। हाय, जब महाराज यहां आयेंगे तो हम किस मुंह से कहेंगे कि तुम्हारे प्यारे लड़के की लाश इस तहखाने में पाई गई।


इसके बाद भैरोसिंह ने इस तहखाने में आने का बाकी हाल कहा तथा यह भी बताया कि ''जब खंडहर के बाहर कुएं पर हम दोनों आदमी बैठे थे, तभी तीन आदमियों की बातचीत से मालूम हो गया कि तुमको उन लोगों ने कैद कर लिया है। परन्तु यह आशा न थी कि हम तुम्हें इस अवस्था में देखेंगे। उन लोगों ने मुझे देखा तो पहचानकर डरे और भाग गये, मगर मुझे यह न मालूम हुआ कि वे लोग कौन हैं और उन्होंने मुझे कैसे पहचाना'


कामिनी - (हाथ का इशारा करके) उन्हीं लोगों में से एक यह भी है जिसे तुमने बांध रखा है।


भैरोसिंह - (उस आदमी से) बता, तू कौन है


आदमी - बताने को तो मैं सब-कुछ बता सकता हूं, परन्तु मेरी जान किसी तरह न बचेगी।


भैरोसिंह - क्या तुझे अपने मालिक का डर है


आदमी - जी हां।


भैरोसिंह - मैं वादा करता हूं कि तेरी जान बचाऊंगा, और तुझे बहुत-कुछ इनाम भी दिलाऊंगा।

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आदमी - इस वादे से मेरी तबीयत नहीं भरती। क्योंकि मुझे तो आप लोगों के ही बचने की उम्मीद नहीं। हाय, क्या आफत में जान फंसी है। अगर कुछ कहें तो मालिक के हाथ से मारे जायं और न कहें तो इन लोगों के हाथ से दुःख भोगें!


भैरोसिंह - तेरी बातों से मालूम होता है कि तेरा मालिक बहुत जल्द ही यहां आना चाहता है


आदमी - बेशक ऐसा ही है।


यह सुनते ही भैरोसिंह ने तारासिंह के कान में कुछ कहा और उनका ऐयारी का बटुआ लेकर अपना बटुआ उन्हें दे दिया जिसे ले वे तुरन्त वहां से रवाना हुए और तहखाने के बाहर निकल गए। तारासिंह ने जल्दी-जल्दी खंडहर के बाहर होकर उस कुएं में से एक लुटिया पानी खींचा और बटुए में से कोई चीज़ निकालकर पत्थर पर रगड़ जल में घोलकर पी ली। फिर एक लुटिया जल निकालकर वही चीज़ पत्थर पर घिस पानी में मिलाई और बहुत जल्द तहखाने में पहुंचे। जल की लुटिया भैरोसिंह के हाथ में दी, भैरोसिंह ने बटुए से कुछ खाने की चीज़ निकाली और कामिनी से कहा, ''इसे खाकर तुम यह जल पी लो।''


कामिनी - भला खाने और जल पीने का यह कौन-सा मौका है यद्यपि मैं कई दिनों से भूखी हूं, परन्तु क्या कुमार की लाश के सिरहाने बैठकर मैं खा सकूंगी, क्या यह अन्न मेरे गले के नीचे उतरेगा


भैरोसिह - हाय! इस बात का मैं कुछ भी जवाब नहीं दे सकता। खैर, इस पानी में से थोड़ा तुम्हें पीना ही पड़ेगा। अगर इससे इन्कार करोगी तो हम सब लोग मारे जायंगे। (धीरे से कुछ कहकर) बस, देर न करो।


कामिनी - अगर ऐसा है तो मैं इन्कार नहीं कर सकती।

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