एपिसोड 1
सात तालों के पीछे भी इस आवाज़ को पहचान सकती हूं। यह अमन था। उसकी आवाज़ का सम-बिषम, आरोह-अवरोह सब पहचानती हूं। एकबारगी मेरे भीतर का गुस्सा नरम पड़ गया गोया सोडा वाटर की उफान तली में जा बैठी हो।
शिखा, आय लव यू
ये कोई कहानी होती तो इसे शुरू करना और खत्म करना ही नहीं, इसे बयान करना भी कहीं ज़्यादा दिलचस्प होता, क्योंकि किस्सागो को ये महारत हासिल होती है कि वह अपने अर्जित कौशल, अपनी जादुई भाषा और कल्पना की उड़ान से सुनने और पढ़ने वालों को सम्मोहित कर ले। लेकिन अफसोस कि, यह जो आप यहां पढ़ रहे हैं, यह कोई कहानी नहीं है, लिहाजा इसमें कई किन्तु-परन्तु हैं, कई संकोच हैं, कई आगा-पीछा हैं, और सबसे मुश्किल यह कि इसमें आपके आभिजात्य को नापसंद किस्म का लगनेवाला अनगढ़पन भी हो सकता है।
बहरहाल, मैं जो कहना चाह रही थी वो ये कि मैं अपने रूम में अभी-अभी लौटी थी और कपड़े चेंज करके रोज की तरह मम्मी को फोन करने ही वाली थी कि मेरे फोन की घंटी बज उठी। कायदे से, फोन मम्मी का ही होना चाहिए था, क्योंकि इस वक़्त या तो मम्मी मुझे कॉल करती हैं या फिर मैं खुद मम्मी को। आमतौर पर मेरी ओर से पांच मिनट भी देर होने पर मम्मी घंटी घनघना ही देती हैं, बिल्कुल कान उमेठने के अंदाज में। लेकिन इस वक़्त कॉलर ट्यून से साफ था कि यह फोन मम्मी का नहीं है। मैंने मम्मी के कॉल के लिए ‘मम्मी इज कॉलिंग’ सेट कर रखा है और इस बजती ट्यून में ऐसा कुछ नहीं था।
फिर यह किसकी कॉल है? रोहन की कॉल तो नहीं ही होनी चाहिए, क्योंकि उसे पता है कि इस वक़्त मैं अपने घर बात करती हूं और वह स्वयं भी मुझे इस वक़्त डिस्टर्ब नहीं करता। अनमने भाव से मैं स्टडी टेबल के पास लपकी। क्षण भर को ठिठकी, कहीं अमन की कॉल हुई तो? आजकल वह भी गुमनाम नंबरों से फोन करने लगा है। मेरे लाख मना करने के बावजूद, उसकी ये हरकत जारी है।
बेतहाशा हो रही रिंग की खीज के बीच अनजान नंबर पर नजर पड़ते ही, जी में आया कि कॉल करनेवाले को कसकर खरी-खोटी सुनाउं। लेकिन खुद को समझा लिया-थोड़ी देर बजने के बाद अपने आप चुप हो जाएगा। मैं चुपचाप प्रतीक्षा करती रही। आखिर रिंग खत्म हुई। लेकिन अभी राहत की सांस ली भी नहीं थी कि मोबाइल फिर बज उठा। इसबार तो खुद को जबरन जब्त किया। यह सिलसिला लगातार जारी रहा, तो मेरा पारा बेकाबू हो गया। इस बार मैंने मोबाइल उठाया और लगभग चीखते हुए कॉल करनेवाले से पूछा, ‘हू इज देअर?‘
दूसरी और सन्नाटा छाया रहा। कोई जवाब नहीं। मेरे भीतर आग-सी लग गई। अपना पूरा गुस्सा निचोड़कर फट पड़ी, ‘क्या हुआ, सांप सूंघ गया? जीभ को लकवा मार गया या होश उड़ गया? बोलते क्यों नहीं?’
कुछ सेकंड की प्रतीक्षा के बाद भी, जब दूसरी ओर से कोई जवाब नहीं आया तो कॉल काटकर मम्मी को कॉल लगाने लगी। लेकिन कॉल पूरी भी न हुई थी कि वही नंबर फिर चमका और घंटी बजने लगी। इस बार कॉल रिसीव करके बगैर ‘हैलो’ बोले, दूसरी ओर की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करने लगी। अचानक किसी वीराने में हहराती-सी एक आवाज़ उभरी, ‘शिखा, आय लव यू।’
सात तालों के पीछे भी इस आवाज़ को पहचान सकती हूं। यह अमन था। उसकी आवाज़ का सम-बिषम, आरोह-अवरोह सब पहचानती हूं। एकबारगी मेरे भीतर का गुस्सा नरम पड़ गया गोया सोडा वाटर की उफान तली में जा बैठी हो। बिना कुछ बोले मैंने कॉल कट कर दी। इतनी नामालूम-सी आवाज़ कि दूसरी ओर पता तक न चले। हालांकि मेरे अंदर कुछ कट-सा ज़रूर गया था।
अमन अब नंबर बदल-बदल कर कॉल करने लगा है। उसका पुराना नंबर जब से ब्लॉक किया है, वह इसी तरह अनजान नंबरों से कॉल करने की कोशिश करता है। लेकिन अनजान नंबरों से अमन के अलावा भी किसी-किसी के फोन आ ही जाते हैं। कई बार वे ज़रूरी कॉल भी निकल आते हैं, इसलिए हर अनजान कॉल को इग्नोर करना संभव भी नहीं होता। लेकिन बार-बार मना करने के बावजूद अमन की जारी यह हरकत अब नागवार गुजरने लगी है।
मैं पहले भी कई बार उसे समझा चुकी हूं, ‘अमन, हमारे रास्ते अलग हो चुके हैं। मैं तुमसे कोई संबंध नहीं रखना चाहती। फ़ॉर गॉडशेक, आइंदा मुझे फोन मत करना।’ लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ। उसकी इस मुतवातिर हरकत से नाराज रोहन ने एक बार कहा था, ‘कहो तो मैं उससे बात करूं? लगता है लातों का भूत बातों से नहीं माननेवाला।’
मैंने उसे सख्ती से मना कर दिया था, ‘क्या करोगे, लड़ाई? मेरे लिए? रोहन, तुम एक अच्छे इंसान हो, तुम्हें ये सूट नहीं करता। प्लीज, हमें किसी लफड़े में नहीं पड़ना।’
‘लेकिन शिखा ...।
मैंने उसकी बात बीच में ही काट दी थी, नहीं रोहन, तुमको बीच में पड़ने की ज़रूरत नहीं है। वो खुद समझ जाएगा।’
मेरा अनुमान गलत निकला। ब्रेकअप के आठ महीने हो गये, लेकिन समझने के बजाय वह कहीं ज़्यादा अमान होने लगा है। उसकी हरकतें दिन पर दिन उग्र होती जा रही हैं। उसकी उद्दंडता से आजिज हो, पिछले दिनों मुझे उसकी शिकायत डीन से करनी पड़ी। डीन ने मामले की जांच कर उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया था।
जबसे अमन ने डीन से शिकायत वाली बात सुनी है, वह कुछ ज़्यादा ही बौखला गया है। अनाप-शनाप बोलता फिर रहा है। रिंकी बता रही थी, ‘अमन तुमको सच्चा प्यार करता है। कहता है, तुम्हारे बिना नहीं रह सकता।’
कोई आश्चर्य नहीं हुआ था यह सुनकर। उसकी इस जाहिलाना हरकत पर अब कोई आवरण नहीं रहा। इसी पजेसिवनेस से आजिज आकर उससे दूरी बढ़ाई थी। अब जबकि वह मेरे लिए अतीत हो चुका था, उसके इस ओछेपन का मेरे लिए कोई मतलब नहीं था। कंधे उचकाकर उपेक्षाभाव से रिंकी को जवाब दिया था, ‘रिंकी, ही वोंट डिजर्व। सजेस्ट हिम टू नॉट बी सिली। यू नो, मैं उसकी प्रापर्टी नहीं हूं।’
लेकिन जैसा मैंने सोचा था, वैसा कुछ नहीं हुआ। डीन की ओर से कार्रवाई में हो रही ढिलाई ने शायद उसके हौसले को बढ़ा दिया था। इधर वह कुछ ज़्यादा ही उल-जुलूल हरकतें करने लगा है। शुरू में लंबे-लंबे मैसेज भेजता। उनमें अपने दिल का हाल लिखता। प्रेम की फिलॉसफी समझाता। प्रेम के अर्थ बताता। एक से एक रोमानी शेर भेजता। इश्किया कोट्स डालता। उनमें रोमानियत होती, उदासी और मायूसी होती। तड़प और उलाहने का इजहार होता।
ये मैसेज पढ़ते हुए कभी गुदगुदी होती, कभी कोफ्त। कभी मन व्यथित होता, तो कभी रोष से भर जाता। उसे सोचते हुए भीतर ही भीतर कितना कुछ टूटता-फूटता। कितने आंसू, कितनी ही हिचकियां कमरे के सन्नाटे में दफ्न हो जातीं। मुझे लगता है, अपने अतीत से बाहर निकलना आसान नहीं होता। समय भले ही अतीत को पीछे छोड़ दे, अतीत कहां पीछा छोड़ता है? मेरे लाख चाहने बावजूद उसका साया कहां पीछा छोड़ रहा है?
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