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विदेह को इस गंध की ऐसी आदत हो गयी थी कि तनीषा को घर आए ज़्यादा दिन हो जाते थे तो उसके पर्फ़्यूम को कम्बल में छींट के सोता था...........

बाईक, ब्रेक-अप, ब्रो

तनीषा ने ज़िंदगी में कुछ भी नॉर्मल नहीं किया था, सिवाए इश्क़ के। उसके जैसी तूफ़ानी लड़की का एकदम नॉन-तूफ़ानी, नीरस बॉयफ़्रेंड था जिसका प्रेडिक्टेबल होना तनीषा की हर पल बदलती दुनिया में राहत का सबब था। वो उसे मिस्टर डिपेंडबल कहती थी। भर दुनिया घूम के लौट आने को जो थिर जगह हो- घर। वही।

तनीषा एक इवेंट मैनेजमेंट फ़र्म में कंटेंट हेड थी। हर महीने हफ़्ते-दो हफ़्ते घर से बाहर रहती। दुनिया के कई देशों के कई शहर उसने देख रखे थे। हर बार एक ही शहर से कुछ नया अनुभव क्राफ़्ट कर लेना उसकी ख़ासियत थी, विदेशों के इवेंट के सिवा वो स्टडी टूर पर भी जाती रहती थी। कविता उसकी धमनियों में बहती थी, ठहाका उसका पैरहन था।  

विदेह का चार लोगों का अपना स्टार्ट-अप था जो ऑटोमेटेड ड्रोन को ट्रेन किया करता था। अपने नाम और काम के अनुरूप आभासी को भी उतना ही ज़िंदगी का हिस्सा मानता था जितना कि बाँहों में भर ले सकने जैसी ज़िंदा साँस लेती लड़की। छुट्टी यानि बिना सोए लगातार दो-दो तीन दिन तक गेमिंग और किसी बड़े प्रेज़ेंटेशन के पहले उँगलियाँ दुखने तक कोडिंग।

कभी-कभी पहले प्यार का मिल जाना भी अभिशाप होता है। अपने-अपने क़िस्म के पागल ये दोनों एक दूसरे का पहला प्यार थे। दोनों में अपने काम को लेकर दीवानगी थी और एक-दूसरे के काम को लेकर उतनी ही नासमझी। सारे वक़्त काली स्क्रीन को घूरते विदेह की कोडिंग का क नहीं समझ आता था तनीषा को, वहीं विदेह देश दुनिया की ख़ाक छानने वाली तनीषा को क्या पूछता कि इसकी ज़रूरत क्या है? जब कि सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा।  

सबने भविष्यवाणी कर रखी थी कि ये सिलसिला लम्बा नहीं चलेगा। तनीषा और विदेह को इन दिनों अक्सर लगने लगा था कि उनके साथ रहने की ज़िद सिर्फ़ दुनिया को ग़लत साबित करने की है। छोटे-मोटे झगड़े होने लगे जिनमें दोनों अपनी-अपनी जगह सही थे, बस साथ में ग़लत हो जाते थे। वे चीज़ें जो उन्हें पहले क्यूट लगा करती थीं, अब झुँझलाहट का सबब बन रही थीं। दोनों को लगा कि बिना किसी बड़े बदलाव के उनका रिश्ता बहुत जल्दी टूट जाएगा। इसलिए दोनों ने एक दूसरे के लिए बड़ा सरप्राइज़ प्लान किया।

 तनीषा की क्लाइंट उन दिनों एक विदेशी बाइक कंपनी थी। एक लॉन्च के लिए उन्होंने दो बाइक्स इम्पोर्ट कराई थी। इस पेपरवर्क के दौरान तनीषा को पूरा प्रॉसेस समझ आ गया था, उसने अपनी सेविंग्स का आधा हिस्सा ख़र्च करके एक बेहद महँगी विदेशी बाइक इम्पोर्ट करा ली। उसे लगा शायद विदेह बाइक चलाए तो बालों में साँय-साँय करती हवा उसे अड्वेंचर के बारे में वो समझा सके जो तनीषा कभी नहीं समझा सकती। वहीं विदेह ने अपनी तरह का एड्वेंचर प्लान कर लिया… तनीषा से बिना एक भी बार डिस्कस किए बिना एक बड़े से रेस्तरां में ऑर्केस्ट्रा, केक, शैम्पेन वग़ैरह की तैयारी और क्लीन शेव होकर, टक्सीडो पहन कर एक घुटने पर बैठ कर शादी के लिए प्रपोज़ कर दिया।

तनीषा का मिस्टर डिपेंडेबल कोई नई पारी खेलना चाह रहा था, लेकिन तनीषा के पैरों तले ज़मीन खिसक गयी… उसपर आफ़त ये कि तनीषा ने जब पूछा कि क्यूँ, तो विदेह ने हड़बड़ा कर एकदम ही सच बोल दिया कि मुझसे शादी कर लो क्यूँकि मुझे डर लगता है कि तुम मुझे छोड़ कर चली जाओगी। शादी तनीषा की बिना प्लान वाली ज़िंदगी में कहीं फ़िट नहीं बैठती थी, फिर भी विदेह को ना बोलने में उसकी आत्मा कलप गयी। सदमे में वो बाइक की चाभी उसे दिखा भी नहीं पाई जिसके लिए बड़े शौक़ से पेरिस से की-चैन लेकर आई थी और आज उसे दिखाने का प्लान किया था।

तनीषा और विदेह का साढ़े अट्ठाईस प्रतिशत लिव-इन था। वीकेंड के दो दिन एक दूसरे के घर और बाक़ी पाँच दिन अपने अपने अपार्टमेंट में। कई सालों तक चलने वाले इस वीकली क्रैश के कारण दोनों के अपार्टमेंट अजीबो-ग़रीब चीज़ों से भरे हुए थे। तनीषा अपनी हर ट्रिप से विदेह के लिए एकदम अनोखे बॉटल ओपनर लेकर आती थी। ये बॉटल ओपनर इतने प्यारे होते थे कि विदेह का पूरा गेमिंग गैंग सिर्फ़ बॉटल खोलने की ख़ुशी के कारण कैन नहीं, बॉटल से बीयर पीने लगा था।

वहीं तनीषा के अपार्टमेंट में जितने कोने थे सब में कई ऐश ट्रे विदेह के सिगरेट की आदत के कारण थे। घर पर जब मम्मी-पापा आएँ तो सिगरेट की गंध न सूंघ लें इसलिए तनीषा हमेशा घर में एक पूरा सेट परदे, बेडशीट और सोफ़ा कवर लॉंड्री कर के वैसे ही पैकेज में रखती थी और ठीक उनके आने के पहले बदल देती थी। बाथरूम में टूथब्रश, किचन में पसंद के कॉफ़ी मग और फ्रिज में अपनी अपनी पसंद का सामान। बहुत सारा कुछ तो घर में ऐसे घुल-मिल गया था कि अलगाना मुश्किल था। विदेह की फ़ेवरिट कॉफ़ी मग में बाक़ी पूरे हफ़्ते तनीषा कॉफ़ी पीती थी। हर सोमवार विदेह के कम्बल में तनीषा की पसंदीदा लैवेंडर की सांद्र ख़ुशबू छूटी रह जाती थी। विदेह को इस गंध की ऐसी आदत हो गयी थी कि तनीषा को घर आए ज़्यादा दिन हो जाते थे तो उसके पर्फ़्यूम को कम्बल में छींट के सोता था। हालाँकि तनीषा की गंध उसके पर्फ़्यूम की गंध से जुदा थी।

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कथार्सिस नाम की बला ने पूरा घर तहस-नहस कर रखा था। तनीषा को पहली बार मूर्त चीज़ों से होने वाले अपने जुड़ाव का अफ़सोस हुआ। उस एक कमरे के अपार्टमेंट ऐसा कुछ नहीं था जो विदेह ने नहीं छुआ हो, या कि जिससे उसकी याद न आए।  बालकनी से दिखते सेमल और पलाश के फूल उसकी याद दिलाते थे। वहाँ से दिखती पार्किंग लॉट में खड़ी रेन-प्रूफ़ कवर से ढकी बाइक तनीषा को कफ़न ओढ़े मुहब्बत की लाश लगती।

 सिगरेट फूँकती तनीषा का एक दिन नहीं बीतता जब सिगरेट जलाते हुए उस पच्चीस लाख की बाइक को माचिस मार देने का मन न करता हो। बाथरूम से उसका टूथब्रश, तौलिया और शेविंग किट बाहर फेंक देने जितना आसान नहीं था विदेह को दिल से बाहर करना। उनके ब्रेक-ऑफ़ को तीन महीने होने को आए थे, विदेह की ख़ाली की गयी जगह में डिप्रेशन आ के रहने लगा था। इस सिम्पल सी मुहब्बत को भूलना जितना उसने सोचा था उससे कहीं ज़्यादा कॉम्प्लिकेटेड था। वीकेंड तो ख़ास तौर से जानलेवा हुआ करते थे।

मुहब्बत से बाहर आने के सबके अपने तरीक़े होते हैं। हमेशा घर से बाहर रहने वाली तनीषा इन दिनों बस ऑफ़िस और घर के बीच सिमट गयी थी। वीकेंड प्रिडिक्टबल, बोरिंग और उदास थे। ग़ुलाम अली लूप में इतना घूम चुके थे कि उन्हें अब चक्कर आने लगते। हर हफ़्ते तनीषा कुछ काम में अपने हाथों को उलझा देती। कभी पूरा फ़र्श रगड़-रगड़ के साफ़ करने लगती, कभी किचन का कोना-कोना डीप क्लीन कर देती। घर के सारे परदे-चादर-सोफ़ा कवर उसने अपने हाथों से बाथरूम में पटक-पटक के धोए।

 उसे लगता कि अगर उसने अपने हाथों को कहीं उलझाया नहीं तो वे उसका गला दबा देंगे। इस वीकेंड उसने घर पेंट करने का प्लान रखा था। सुबह से ही विदेह की छूटी हुई एक पुरानी टी-शर्ट पहन, बाल बाँध पेंटिंग में लगी हुई थी। शाम होते होते थक के चूर हो गयी। कोई घंटे भर नहा कर धुले कपड़े पहने और भूखे प्यासे बालकनी में खड़ी सिगरेट फूँकने लगी। थोड़ी देर बाद उसे लगा कि दूर से ताबड़तोड़ दरवाज़ा खटखटाए जाने की आवाज़ उतनी दूर नहीं, पास से आ रही है। फ़ोन देखा तो तन्मय के इक्कीस मिस कॉल्स थे।

तन्मय। धुर ख़ुराफ़ाती, जेम्स बौंड का चेला, उसका छोटा भाई दरवाज़े के बाहर था। तनीषा दरवाज़े की ओर भागी तो सिगरेट हाथ  में ही रह गयी थी। दरवाज़ा खोलते हुए ध्यान गया तो हड़बड़ा के सिगरेट बुझाई और धुआँ भीतर चला गया तो बेतरह खाँसी उठ गयी। इतनी देर में तन्मय ने पूरे घर का मुआयना करके लम्बी चौड़ी थ्योरी सेट कर ली कि आख़िर क्या चल रहा है दीदी की लाइफ़ में। तनीषा ने पानी पी कर साँस खींची कि तब तक तन्मय का एकालाप चालू हो गया।

‘यार दीदी तुम इतना मुहब्बत में पगला लेती बेहतर होता। इस उल्लू के हार्टब्रेक में इतना ड्रामा, बाप रे बाप! थोड़ी देर में फ़ायर ब्रिगेड बुलवा कर बालकनी में सीढ़ी से चढ़ने वाला था मैं कि तुम पंखे-वंखे से झूलने या बालकनी से कूदने का प्लान करने लगी हो। क्या हाल बना रखा है ये मज़दूरों वाला, क्या हुआ, सब पैसे से बाइक ख़रीद ली कि घर पेंट कराने के पैसे नहीं बचे? यही सब काम करो तुम। छी छी। इससे अच्छा तो तुम उसको शादी के लिए हाँ ही बोल देती।'

तनीषा ने पानी पीते-पीते आँखें दिखायीं तो तन्मय चुप हुआ। उसने फ्रिज से पानी की बॉटल निकाली और एक बड़ी प्लेट में थोड़ी सी चाउमीन और दो काँटे डाल कर हॉल में ले आया। ‘ये इत्ति सी चाउमीन और उसमें दो-दो काँटे…इत्ता सा क्या ज़हर खा रहे हम? सुबह से एक कौर खाया नहीं है कुछ, पेट में चूहे कूद रहे हैं, क्या होगा ये इत्ति सी चाउमीन से, नालायक़, एक काम ठीक से नहीं होता तुझसे।’ बोलते-बोलते तनीषा ने एक कौर मुँह में लिया। चाउमीन इतनी तीखी थी कि आँख, नाक सब जगह तुरंत पानी आना शुरू हो गया। ‘तू मरवाएगा मुझे। ये इत्ति तीती चाउमीन क्यूँ लेकर आया है। पागल।’

‘ये है ब्रेक-अप स्पेशल चाउमीन। कर्टसी तन्मय बाबा। देखो तुम रोने धोने वाली टाइप तो हो नहीं। ये तीता तीता चाउमीन खाओ…आँख से इतना भर भर के आँसू निकलेगा कि सब बॉयफ़्रेंड एक साथ भूल जाओगी। ओके। सब नहीं, जो भी इकलौता एक्स था। वो।’ सीसी करती तनीषा को इतनी हँसी आयी कि समझ नहीं आया आँख से निकलता आँसू हँसते हुए है, तीता से है या भाई के ऊपर बहुत प्यार आया है उससे है। ‘और तुम काहे खा रहे हो ये इत्ता तीता चाउमीन?’ ‘यार दीदी, एक तुम्हारा ही ब्रेक-ऑफ़ हुआ है क्या दुनिया में? सातवीं बार हुआ तो क्या, ब्रेक ऑफ़ तो ब्रेक ऑफ़ होता है’

‘हे, भगवान, फिर से ब्रेक-ऑफ़ कर लिए? मुझे तो समझ में ये नहीं आता कि पागल लड़कियों को तुझमें दिखता क्या है!’

‘हाँ-हाँ, गुण खान तो तुम्हारा तो विदेह था बस। दुनिया के बाक़ी लड़के तो अवगुण खान हैं’

तनीषा अब हँसते-हँसते दोहरा गयी थी। दोनों भाई बहन भर आँख सीसी करते हँसते जा रहे थे जैसे दिल-विल टूटना वाक़ई हँसी-मज़ाक़ ही था।  

खा-पी के दोनों थोड़ी देर चुप बैठे। फिर तनीषा ने वो किया जो अब तक नहीं किया था। छोटे भाई से पूछा, ‘मैं सिगरेट पी लूँ, मम्मी को चुग़ली तो नहीं लगाएगा?’ तन्मय ने कुछ कहा नहीं, सर हिला दिया। तनीषा को लगा कि हर रक्षा बंधन पर जिस छोटे भाई की रक्षा की  वो क़सम खाती थी, उसका वो छोटा भाई अचानक से बड़ा हो गया है और उसकी ग़लत चीज़ों पर भी उससे लड़ाई नहीं करता। बालकनी में दोनों खड़े थे। तनीषा ने तन्मय को पार्किंग में खड़ी बाइक दिखायी।

‘वो देख रहा है?’

‘हाँ, वो तेरी पच्चीस लाख की बाइक जो खड़ी है, वो?’

‘बाइक नहीं। लाश। मेरे अरमानों की लाश!’

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तन्मय ने फिर तनीषा के हाथ से खींच कर सिगरेट बुझायी और खींचता हुआ दरवाज़े की ओर ले चला।

‘चलो, अभी चलो’

‘कहाँ…बौरा गया है क्या? कहाँ चलें’

‘लाश को ठिकाने लगाने’।

‘उसके साथ बाँध कर मुझे भी जमना में डुबो दे’

‘हाँ हाँ। पैसे की तुझे कोई परवाह नहीं, न सही, बाइक की कोई फ़ीलिंग नहीं होती। ऐसे कैसे नाले में डुबो दें।’

‘तुझे बाइक की फ़ीलिंग की परवाह है। बस मेरी नहीं’

‘ना ना। मैं तो बस बाइक हड़पने आया हूँ। चल। पागल’

पलक झपकते तन्मय ने बाइक की चाभी ले ली थी और क़रीने से सज़ा कर रखा हुआ कस्टम-मेड हेल्मेट भी। पंद्रह मिनट के अंदर दोनों हाईवे पर हवा से रेस लगा रहे थे।  

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