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वहाँ पतन और विनाश को कोई नहीं पहचानता और वर्जनाओं का प्रवेश भी वर्जित है। वहाँ रिश्ते इतने तरल और पारदर्शी हैं कि उन्हें परिभाषित नहीं किया जा सकता। 

ख़्वाबगाह

मैंने तकलीफ़ें बहुत सही हैं। मुझे दिवास्वप्नों से प्यार है। मुश्किल पड़ते ही मैं अपनी अलसाई हुई निर्द्वंद्व स्वप्निलता में उतर जाता हूँ और तैरते-तैरते एक ऐसे टापू में पहुँच जाता हूँ जहाँ किसी का राज नहीं चलता। वहाँ मैं अच्छी तरह से धुने हुए, मुलायम, शगुफ़्ता और पुरखुलूस लम्हों पर सोता हूँ और गुज़रे हुए वक़्त की सबसे हसीन, सबसे दिलकश और गुदाज़ रानाइयों से लिपटकर पड़ा रहता हूँ जब तक जिस्मो जाँ से असली दुनिया का असर ख़त्म नहीं हो जाता, जब तक ठोस सच्चाइयों से पूरी तरह फ़ारिग़ नहीं हो जाता। 

फिर मैं एक पवित्र श्वास को अपने भीतर आने देता हूँ। मेरी रूह एक हैरतअंगेज़ जुम्बिश के साथ तमाम ख़ुशगवार रौशनियों, रंगों और ख़ुशबुओं से भर उठती है। फिर मैं बिल्कुल हल्की-फुल्की दिमाग़ी कैफ़ियत के साथ अपनी उस ख़ुद ख़्वाबिदा साज़गार फिज़ां में टहलने निकल पड़ता हूँ, जिसके आगे ख़ुदा की जन्नत भी पनाह माँगती है। 

वहाँ मुझे न कुछ पाने की लालसा रहती है, न खोने का डर। न बीती बातों का अफ़सोस, न भविष्य का कोई अंदेशा। न कोई कॉम्पिटिशन, न परफ़ॉर्मेंस लेवल। न भागदौड़, न तनाव। न बड़ी-बड़ी योजनाएँ, न डरावने लक्ष्य। न अमानवीय पैमाने, न अयोग्य करार दिए जाने का डर। न बेदख़ली, न आक्रोश, न नर्वस ब्रेकडाउन।

ऐसी तमाम बेमुरव्वत, बेकार, बदसूरत, बदअंजाम और बदनाम चीज़ें वहाँ प्रतिबंधित हैं, जिनसे मनुष्य निजात पाना चाहता है, जो बहुतायत में हमारी दुनिया में मौजूद हैं और जिनका न होना ही ज़्यादा अच्छा है, जो कभी किसी व्यक्ति को चैन की एक साँस नहीं लेने देतीं। जन्म से पहले भ्रूणावस्था में ही उसे जकड़ लेती हैं और मरते दम तक, बल्कि मरने के बाद भी उसका पीछा नहीं छोड़तीं। 

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ये सब चीज़ें मेरी उस दुनिया में नहीं हैं और यही वजह है कि वहाँ तकलीफे़ं भी नहीं हैं। वहाँ की फ़िज़ाओं में प्रागैतिहासिक स्वर लहरियों के साथ नूतन नादानियाँ थिरकती रहती हैं। वहाँ बीयर के झागदार झरने बहते हैं और आसमान पर मासूम-सा नशा छाया रहता है। वहाँ दूध की नदियाँ बहती हैं और उन नदियों में सेहतमंद दिलचस्पियाँ तैरती रहती हैं। वहाँ पकी फसलों के सुनहरे फैलाव पर फलों और फूलों की सुगन्ध-सहेलियाँ इठलाती फिरती हैं।

वहाँ आदिम पुरखों के अनुभव और नए तौर-तरीके बाँहों में बाँहें डाले घूमते हैं। वहाँ के हर दाने पर खाने वाले का नाम लिखा होता है, वहाँ उम्मीदों पर कभी पानी नहीं फिरता, न ही कभी सिर के ऊपर से निकलता है। पानी का काम है प्यास बुझाना, हवा का काम है सुगन्ध-सहेलियों को टहलाना। बादल हैंग ग्लाइडिंग के काम आते हैं, चाँद प्रेमियों की कश्ती का माझी है और सितारे बच्चों के हाथ के खिलौने। सूरज को रास्तों से बर्फ़ हटाने के काम पर लगाया जाता है। गर्मियाँ आम, आइसक्रीम, शरबत और लस्सी बाँटने आती हैं, सर्दियाँ शर्मीली लड़कियों की तरह चाय सर्व करती हैं और बरसात का मौसम सबको गरमागरम पकौड़े खिलाता है। 

वहाँ पतन और विनाश को कोई नहीं पहचानता और वर्जनाओं का प्रवेश भी वर्जित है। वहाँ रिश्ते इतने तरल और पारदर्शी हैं कि उन्हें परिभाषित नहीं किया जा सकता। 

वहाँ निरर्थकता और विसंगति को कोई जगह नहीं मिलती क्योंकि गहन से गहनतर कामनाओं को भी स्वर मिल जाते हैं । 

इन्हीं सब ख़ासियतों की वजह से मेरी ख़्वाबगाह के हर इन्सान के चेहरे पर नूर है। उसकी सरलता में वो भव्यता है, जो बाहर की आलीशान दुनिया में सजावट की लाख कोशिशों से भी नहीं हासिल होती । 

वह पर्वटेंड तृप्ति के लिए छटपटाता कोई उत्तर आधुनिक कीड़ा नहीं है क्योंकि भावनाओं के इज़हार के उसके सारे माध्यम नैसर्गिक हैं। 

वह तेज़ और क्रूर गति से चलने वाला मैकेनिकल आदमी नहीं है। उसके पास धीमी गति से चलने वाला समय है और अपनी आत्मा के लिए अवकाश भी | 

उसकी सकारात्मक शक्ति में असीम धैर्य है और वचन और कर्म में अपूर्व संतुलन। 

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वह एक आला दर्जे की रवायती बैल्यूज़ से तआल्लुक रखने वाली बिरादरी का बिरादर है और यही वजह है कि उसके चेहरे पर कांसे और लोहे जैसी गाढ़ी रंगत वाली वो आभा चमचमाती रहती है, जिसे सिर्फ़ एक ही शब्द से परिभाषित किया जा सकता है : गरिमा। 

मेरे इस अनूठे संसार में अगर कमी है तो सिर्फ़ सच की। लेकिन जहाँ इतनी ज़ायकेदार अच्छाइयाँ हों, वहाँ किसी कड़वे सच का भला क्या काम? फिर भी, सच रहित ज़िन्दगी फीकी-फीकी सी लगती है। सुख की अधिकता से कभी- कभी मन ऊब जाता है। डर लगा रहता है कि चेतना पर कहीं चर्बी न चढ़ जाए कि निर्द्वंद्व स्वप्निलता कहीं नपुंसक अकर्मण्यता में न बदल जाए। 

इस डर से फ़ारिग़ होने के लिए मैं अपने सपने में सोचने लगता हूँ। सोच- सोचकर एक वास्तविक दुनिया बनाता हूँ और तब मुझे दिखाई देता है कि यथार्थ इधर-उधर मारा-मारा फिर रहा है, उसे देखने-पूछने वाला कोई नहीं है। 

मैं अपने दिमाग़ की वर्जिश के लिए उसके साथ छेड़-छाड़ शुरू करता हूँ। उसे भरपूर तरीकों से सताने के बाद दूर-दूर तक खदेड़ता हूँ और उसकी ऐसी-तैसी करने में कोई कसर नहीं छोड़ता। 

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