एपिसोड 1

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अनुक्रम:

एपिसोड 1-2 : यह मेरी मातृभूमि है
एपिसोड 3-6 : राजा हरदौल
एपिसोड 7-12 : त्यागी का प्रेम
एपिसोड 13-17 : रानी सारन्धा
एपिसोड 18-30 : शाप
एपिसोड 31-35 : मर्यादा की बेदी
एपिसोड 36-39 : मृत्यु के पीछे
एपिसोड 40-43 : पाप का अग्निकुंड
एपिसोड 44-50 : आभूषण
एपिसोड 51-53 : जुगनू की चमक
एपिसोड 54-59 : गृह दाह
एपिसोड 60-62 : धोखा
एपिसोड 63-65 : लाग डाट
एपिसोड 66-69 : अमावस्या की रात्रि
एपिसोड 70-71 : चकमा
एपिसोड 72-75 : पछतावा
एपिसोड 76-78 : आप बीती
एपिसोड 79-83 : राज्य भक्त
एपिसोड 84-85 : अधिकार चिंता
एपिसोड 86-88 : दुराशा (प्रहसन)

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अहा! यह वही नाला है जिसमें हम रोज़ घोड़े नहलाते थे और स्वयं भी डुबकियाँ लगाते थे किंतु अब उसके दोनों ओर काँटेदार तार लगे हुए थे। सामने एक बँगला था जिसमें दो अँग्रेज़ बंदूकें लिए इधर-उधर ताक रहे थे। नाले में नहाने की सख्त मनाही थी।

कहानी: यह मेरी मातृभूमि है

बचपन का गांव

आज पूरे 60 वर्ष के बाद मुझे मातृभूमि- प्यारी मातृभूमि के दर्शन प्राप्त हुए हैं। जिस समय मैं अपने प्यारे देश से विदा हुआ था और भाग्य मुझे पश्चिम की ओर ले चला था उस समय मैं पूर्ण युवा था। 

मेरी नसों में नवीन रक्त संचारित हो रहा था। हृदय उमंगों और बड़ी-बड़ी आशाओं से भरा हुआ था। मुझे अपने प्यारे भारतवर्ष से किसी अत्याचारी के अत्याचार या न्याय के बलवान हाथों ने नहीं जुदा किया था।

अत्याचारी के अत्याचार और कानून की कठोरताएँ मुझसे जो चाहे सो करा सकती हैं मगर मेरी प्यारी मातृभूमि मुझसे नहीं छुड़ा सकतीं। वे मेरी उच्च अभिलाषाएँ और बड़े-बड़े ऊँचे विचार ही थे जिन्होंने मुझे देश-निकाला दिया था।

मैंने अमेरिका जा कर वहाँ खू़ब व्यापार किया और व्यापार से धन भी खू़ब पैदा किया तथा धन से आनंद भी खू़ब मनमाने लूटे। सौभाग्य से पत्नी भी ऐसी मिली जो सौंदर्य में अपना सानी आप ही थी। 

उसकी लावण्यता और सुन्दरता की ख्याति तमाम अमेरिका में फैली। उसके हृदय में ऐसे विचार की गुंजाइश भी न थी जिसका सम्बन्ध मुझसे न हो। मैं उस पर तन-मन से आसक्त था और वह मेरी सर्वस्व थी। मेरे पाँच पुत्र थे जो सुन्दर हृष्ट-पुष्ट और ईमानदार थे।

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उन्होंने व्यापार को और भी चमका दिया था। मेरे भोले-भाले नन्हे-नन्हे पौत्र गोद में बैठे हुए थे जब कि मैंने प्यारी मातृभूमि के अंतिम दर्शन करने को अपने पैर उठाए। मैंने अनंत धन प्रियतमा पत्नी, सपूत बेटे और प्यारे-प्यारे जिगर के टुकड़े नन्हे-नन्हे बच्चे आदि अमूल्य पदार्थ केवल इसीलिए परित्याग कर दिया कि मैं प्यारी भारत-जननी का अंतिम दर्शन कर लूँ। मैं बहुत बूढ़ा हो गया हूँ। दस वर्ष के बाद पूरे सौ वर्ष का हो जाऊँगा। अब मेरे हृदय में केवल एक ही अभिलाषा बाक़ी है कि मैं अपनी मातृभूमि का रजकण बनूँ।

यह अभिलाषा कुछ आज ही मेरे मन में उत्पन्न नहीं हुई बल्कि उस समय भी थी जब मेरी प्यारी पत्नी अपनी मधुर बातों और कोमल कटाक्षों से मेरे हृदय को प्रफु़ल्लित किया करती थी। और जब कि मेरे युवा पुत्र प्रातःकाल आ कर अपने वृद्ध पिता को सभक्ति प्रणाम करते। उस समय भी मेरे हृदय में एक काँटा-सा खटखता रहता था कि मैं अपनी मातृभूमि से अलग हूँ। यह देश मेरा देश नहीं है और मैं इस देश का नहीं हूँ।

मेरे पास धन था, पत्नी थी, लड़के थे और जाएदाद थी मगर न मालूम क्यों मुझे रह-रह कर मातृभूमि के टूटे झोपड़े चार-छह बीघा मौरूसी ज़मीन और बालपन के लँगोटिया यारों की याद अक्सर सता जाएा करती। प्रायः अपार प्रसन्नता और आनंदोत्सवों के अवसर पर भी यह विचार हृदय में चुटकी लिया करता था कि यदि मैं अपने देश में होता।

जिस समय मैं बम्बई में जहाज़ से उतरा, मैंने पहिले काले कोट-पतलून पहने टूटी-फूटी अँग्रेज़ी बोलते हुए मल्लाह देखे। फिर अँग्रेज़ी दूकान ट्राम और मोटरगाड़ियाँ दीख पड़ीं। इसके बाद रबर टायर वाली गाड़ियों की ओर मुँह में चुरट दाबे हुए आदमियों से मुठभेड़ हुई।

फिर रेल का विक्टोरिया टर्मिनस स्टेशन देखा। बाद में मैं रेल में सवार होकर हरी-भरी पहाड़ियों के मध्य में स्थित अपने गाँव को चल दिया। उस समय मेरी आँखों में आँसू भर आए और मैं खू़ब रोया क्योंकि यह मेरा देश न था। यह वह देश न था जिसके दर्शनों की इच्छा सदा मेरे हृदय में लहराया करती थी। यह तो कोई और देश था। यह अमेरिका या इंग्लैंड था मगर प्यारा भारत नहीं था।

रेलगाड़ी जंगलों, पहाड़ों, नदियों और मैदानों को पार करती हुई मेरे प्यारे गाँव के निकट पहुँची जो किसी समय में फूल पत्तों और फलों की बहुतायत तथा नदी-नालों की अधिकता से स्वर्ग की होड़ कर रहा था। 

मैं उस गाड़ी से उतरा तो मेरा हृदय बाँसों उछल रहा था- अब अपना प्यारा घर देखूँगा- अपने बालपन के प्यारे साथियों से मिलूँगा। मैं इस समय बिल्कुल भूल गया था कि मैं 90 वर्ष का बूढ़ा हूँ।

ज्यों-ज्यों मैं गाँव के निकट आता था, मेरे पग शीघ्र-शीघ्र उठते थे और हृदय में अकथनीय आनंद का स्रोत उमड़ रहा था। प्रत्येक वस्तु पर आँखें फाड़-फाड़ कर दृष्टि डालता। अहा! यह वही नाला है जिसमें हम रोज़ घोड़े नहलाते थे और स्वयं भी डुबकियाँ लगाते थे किंतु अब उसके दोनों ओर काँटेदार तार लगे हुए थे। सामने एक बँगला था जिसमें दो अँग्रेज़ बंदूकें लिए इधर-उधर ताक रहे थे। नाले में नहाने की सख़़्त मनाही थी।

गाँव में गया और निगाहें बालपन के साथियों को खोजने लगीं, किन्तु शोक! वे सब के सब मृत्यु के ग्रास हो चुके थे। मेरा घर-मेरा टूटा-फूटा झोंपड़ा- जिसकी गोद में मैं बरसों खेला था जहाँ बचपन और बेफ़िक्री के आनंद लूटे थे और जिसका चित्र अभी तक मेरी आँखों में फिर रहा था, वही मेरा प्यारा घर अब मिट्टी का ढेर हो गया था।

यह स्थान गै़र-आबाद न था। सैकड़ों आदमी चलते-चलते दृष्टि आते थे जो अदालत-कचहरी और थाना-पुलिस की बातें कर रहे थे, उनके मुखों से चिंता निर्जीवता और उदासी प्रदर्शित होती थी और वे अब सांसारिक चिंताओं से व्यथित मालूम होते थे। 

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मेरे साथियों के समान हृष्ट-पुष्ट बलवान लाल चेहरे वाले नवयुवक कहीं न दिख पड़ते थे। उस अखाड़े के स्थान पर जिसकी जड़ मेरे हाथों ने डाली थी, अब एक टूटा-फूटा स्कूल था। उसमें दुर्बल तथा कांतिहीन रोगियों की-सी सूरतवाले बालक फटे कपड़े पहिने बैठे ऊँघ रहे थे। 

उनको देख कर सहसा मेरे मुख से निकल पड़ा कि नहीं-नहीं यह मेरा प्यारा देश नहीं है। यह देश देखने मैं इतनी दूर से नहीं आया हूँ- यह मेरा प्यारा भारतवर्ष नहीं है।

बरगद के पेड़ की ओर मैं दौड़ा जिसकी सुहावनी छाया में मैंने बचपन के आनंद उड़ाए थे, जो हमारे छुटपन का क्रीड़ास्थल और युवावस्था का सुखप्रद वासस्थान था। 

आह! इस प्यारे बरगद को देखते ही हृदय पर एक बड़ा आघात पहुँचा और दिल में महान शोक उत्पन्न हुआ। उसे देख कर ऐसी-ऐसी दुःखदायक तथा हृदय-विदारक स्मृतियाँ ताज़ी हो गईं कि घंटों पृथ्वी पर बैठे-बैठे मैं आँसू बहाता रहा। 

हाँ! यही बरगद है जिसकी डालों पर चढ़ कर मैं फुनगियों तक पहुँचता था जिसकी जटाएँ हमारा झूला थीं और जिसके फल हमें सारे संसार की मिठाइयों से अधिक स्वादिष्ट मालूम होते थे।

मेरे गले में बाँहें डाल कर खेलने वाले लँगोटिया यार जो कभी रूठते थे, कभी मनाते थे, कहाँ गए? हाय! बिना घर-बार का मुसाफ़िर अब क्या अकेला ही हूँ। क्या मेरा कोई भी साथी नहीं? इस बरगद के निकट अब थाना था और बरगद के नीचे कोई लाल साफ़ा बाँधे बैठा था। 

उसके आस-पास दस-बीस लाल पगड़ीवाले करबद्ध खड़े थे! वहाँ फटे-पुराने कपड़े पहने दुर्भिक्षग्रस्त पुरुष जिस पर अभी चाबुकों की बौछार हुई थी, पड़ा सिसक रहा था। मुझे ध्यान आया कि यह मेरा प्यारा देश नहीं है, कोई और देश है। यह योरोप है, अमेरिका है, मगर मेरी प्यारी मातृभूमि नहीं है- कदापि नहीं है।

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