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रम्या की आंखों में अब भी दहशत थी। प्रतीक की बांहों में सिर रख कर वह लेट गई। प्रतीक ने उसे चूमने की कोशिश की, रम्या पसीने से तर-बतर थी। धीरे-धीरे उसका कांपना रुका।

अम्मा ने कहा था

लगातार घंटी बज रही थी, मंदिर की। 

हवन खत्म होने को था। अम्मा जी आंख बंद किए, हाथ जोड़े बैठी थीं। बीच में आंखें खोल कर देखा था, रम्या कहां है? घंटे भर पहले आई थी वो लाल पाड़ की साड़ी पहन कर। अम्मा के पास बैठी थी। जैसे ही पूजा शुरू हुई, अम्मा ने आंखें बंद की, रम्या शायद उसी समय उठ गई थी वहां से।

पंडित जी की आवाज़ थोड़ी कर्कश थी। उसने जोर से कहा, ‘घर के सदस्यों को बुलाइए…’

अम्मा पीछे मुड़ीं, गुड्डी की तरफ देखा। वो सिर हिलाती हुई चली गई। धीरे-धीरे मंदिर में एक-एक करके सब आ गए। प्रतीक, प्रखर, रज्जो… 

रम्या नहीं आई।

पंडित जी ने सबके हाथ में कलावा बांधना शुरू किया। ऊंची आवाज़ में पूछा, ‘बहू कहां गई?’

अम्मा ने प्रतीक की तरफ देखा, प्रतीक ने पुकारा, ‘रम्या, रम्या…’

गुड्डी आई और अम्मा के कान के पास जा कर फुसफुसा कर बोली, ‘कमरे में नहीं हैं भाभी, इधर-उधर ढूंढ लिए, कहीं भी नहीं।…’

प्रतीक ने अम्मा का चेहरा देखा, फिर खुद बोल पड़ा, ‘मैं देख कर आता हूं… कुछ काम करवा रही होगी…’

पंडित जी ने आरती पढ़ना शुरू किया। अम्मा साथ-साथ बुदबुदाने लगी। 

प्रतीक तेजी से आया, ‘रम्या, कहीं नहीं दिख रही… कहां गई? बाहर वॉचमैन से पूछा। घर से बाहर नहीं गई है। घर के अंदर भी नहीं है। है कहां?’

अम्मा ने अपनी आवाज़ को दबाते हुए कहा, ‘तुम्हारी पत्नी है। पता करो। नई बात तो नहीं…’

पूजा खत्म। अम्मा ने ही पंडित जी के खाने का इंतजाम किया। रसोई में खड़े हो कर गर्म पूरियां तलीं। पंडित जी ने बस खाना छुआ भर। बीच में बोल उठे, ‘अम्मा जी, बस। अब आराम करूंगा।’

अम्मा रुक गईं। कोठी की दूसरी मंजिल में मेहमानों का कमरा था। वहीं पंडित जी के रहने का इंतजाम किया गया था। हफ्ता भर पहले से पंडित वहीं आ कर रुके थे।

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हाथ धो कर पंडित जी अपनी पीली धोती संभालते हुए सीढ़ियां चढ़ गए। 

अम्मा ने प्रतीक की तरफ इशारा किया, गुड्डी से कहा, गर्म चाय पिलाने को और सोफे में पसर गईं।

परेशान सब थे। प्रतीक पहले ही पूछ चुका था, पुलिस को खबर करें?

अम्मा ने तब कुछ कहा नहीं। गुड्डी चाय का कप ले आई। एक घूंट भर कर अम्मा सीधी होती हुई बोलीं, ‘पुलिस आने को तो आ जाएगी प्रतीक… कोई यकीं भी आसानी से नहीं करेगा। पिछली दोनों बार क्या हुआ? अपनी मर्जी से गई थी… देखते हैं कुछ देर और…’

प्रतीक बेचैनी से चहलकदमी करने लगा। 

टेबल पर खाना लग चुका था। अम्मा और प्रतीक बैठे रहे। अम्मा ने प्रतीक से कहा, ‘पूजा वाले दिन भूखे नहीं रहते। जा कर कुछ खा ले।’

प्रतीक ने अम्मा का हाथ पकड़ कर उठाया और डाइनिंग टेबल पर बिठाते हुए कहा, ‘आप भी कुछ खा लो अम्मा। कल रात से काम में लगे हो।’

अम्मा बस पूरी का एक गस्सा तोड़ पाईं। एक चम्मच हलवा। उठ कर अपने कमरे में चली गईं। प्रतीक भटकता रहा, घर के अंदर-बाहर। अब उसे भयंकर रूप से चिंता होने लगी थी।


रम्या के साथ छह साल पहले उसकी शादी हुई थी। उन्हीं की तरह जमींदार की विदेश में पली बेटी। अम्मा की पसंद। सुंदर थी रम्या। पर कुछ अलग। या बहुत अलग? रम्या को देख कर अम्मा मुग्ध हो गई। अपने आसपास हमेशा एक रहस्य का चक्र बनाए रखती थी। एक अलग तरह की खामोशी में लिपटी। दुनिया से बेखबर। अम्मा ने उसे देख कर कहा था, एकदम फिल्म सितारा रेखा की तरह… अपने को कई आवरणों को छिपा कर रखना। हमारे घर के लिए यही ठीक है प्रतीक… अम्मा ने कहा था।

प्रतीक के पास न तर्क थे न विकल्प। अम्मा ने जो कहा, वो तो बस होना ही था। 

शादी की तैयारियां शुरू हो चुकी थीं। कार्ड बस प्रिंट होने की देर थी। रात अम्मा ने इमेर्जेंसी मीटिंग बुलाई। अम्मा कुछ घबराई सी लग रही थीं। अम्मा के छोटे भाई खबर ले कर आए थे। 

दो दिन से रम्या बेहोश है। कैलिफोर्निया के एक अस्पताल में है। यह पहली बार नहीं है। क्या करें?

शादी की तारीख टाल दें?

शादी?

मामा पूछ रहे थे, प्रतीक, क्या कहते हो?

प्रतीक ने अम्मा की तरफ देखा। अम्मा की आंखें बंद थीं। अचानक आंखें खोलते हुए वे बोलीं, ‘कल तक देखते हैं। अगर लड़की ठीक हो जाएगी तो …’ 

रम्या को शाम तक होश आ गया। खबर सुन कर अम्मा ने लंबी सांस ली। शादी की तारीख तय हो गई। पंद्रह दिन पहले रम्या का परिवार यहां आया। अम्मा की शर्त थी शादी यहीं, हमारे घर से होगी। इधर-उधर के रिश्तेदार जमा होने लगे। रम्या पहली बार कोठी में आई, अम्मा ने कुछ रस्म रखवाई थी। पीली जरी की साड़ी में। लंबे बालों की ढीली सी चोटी। आंखों में गहरा काजल, छोटी सी लाल बिंदी। हाथों में लाल-पीली चूड़ियां।

अम्मा खुश थी रम्या को देख कर। रम्या अनमनी सी थी। घर के अंदर सब बैठे थे और वह बाहर जाने को बेचैन सी दिख रही थी। प्रतीक उससे बात करना चाहता था। घर दिखाना चाहता था। रम्या ने पहली बार उससे बात भी की तो यह कह कर - मेरा दम घुट रहा है यहां, बाहर जाऊं?

कहने के बाद वह लगभग दौड़ती हुई बाहर लॉन चली गई थी…

अमेरिका में पली-बढ़ी रम्या को हिंदुस्तानी तौर-तरीके सीखने में कुछ वक्त तो लगेगा… अम्मा ने हंस कर कहा था, ‘सीख जाएगी, मैं भी तो ऐसी ही थी… बस शुरुआती दिक्कतें हैं…’

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अम्मा रम्या को बस जल्द से जल्द घर लाना चाहती थीं। 

शादी हो गई। पहली रात की वो अजीब बात। प्रतीक से पहले कमरे में आ गई थी रम्या।  

एक रात पहले शादी हुई थी। पूरा दिन रस्म-ओ-रिवाज में गुजर गया। रात को डिनर के बाद प्रतीक कमरे में आया, तो चौंक गया। 

कमरे में अलमारियों के सारे दराज़ खुले हुए थे। सामान नीचे बिखरे पड़े थे। खिड़कियां खुली थीं। परदे के पीछे एक साया सा चमका, गुलाबी नाइटी में डरी-सहमी सी रम्या…

प्रतीक ने आगे बढ़ कर उसे संभाला, रम्या कांप रही थी।

‘क्या हुआ? तुम इतना डरी हुई क्यों हो?’

धीरे से रम्या बोल पाई, ‘कमरे में कोई है। यहां… उसने अलमारी की तरफ इशारा किया…’

प्रतीक ने अलमारी में देखा, सारा सामान बाहर था। बस लकड़ी के पल्ले थे और कुछ फाइल, बस।

हाथ का सहारा दे कर प्रतीक रम्या को बिस्तर पर ले आया। रम्या उसके कंधे पर सिर रख कर रोने लगी, ‘मैं यहां नहीं रह सकती। मुझे प्लीज यहां से ले चलो…’

प्रतीक ने प्यार से उसके बालों को सहलाते हुए कहा, ‘कोई नहीं है रम्या, नई जगह है तुम्हारे लिए… बाहर जो चीड़ के पेड़ हैं ना, बहुत आवाज़ करते हैं। लगता है, कोई है वहां पर। तुम्हें आदत हो जाएगी इस आवाज़ की। देखो, मैं खिड़की बंद कर देता हूं। अब आवाज़ नहीं आएगी…’

प्रतीक ने खिड़की बंद कर दी। रम्या उसी तरह आंखें बंद किए बैठी रही। प्रतीक ने अलमारियों का सामान अंदर ठूंस कर पल्ले बंद कर दिए। 

रम्या का हाथ पकड़ कर उसके पास बैठ गया। रम्या ने धीरे से आंखें खोल कर कहा, ‘मैं सच कह रही हूं प्रतीक, कोई है इस कमरे में।’

प्रतीक ने उसका चेहरा अपनी तरफ मोड़ते हुए कहा, ‘रम्या, कोई नहीं है यहां। मैं इतने साल से रहता हूं ना इस कमरे में। कोई होता तो पता चलता न मुझको। तुम घबराओ मत, आराम से सो जाओ। मैं हूं ना…’

रम्या की आंखों में अब भी दहशत थी। प्रतीक की बांहों में सिर रख कर वह लेट गई। प्रतीक ने उसे चूमने की कोशिश की, रम्या पसीने से तर-बतर थी। धीरे-धीरे उसका कांपना रुका। सांस लौटने लगी। यह आवाज़ धीमे सुरों में खर्राटों में बदल गई। प्रतीक से लिपट कर सोती हुई एक मायाविनी। प्रतीक को बहुत देर में नींद आई। इतनी उलझनें थी दिमाग में। क्या दिक्कत है रम्या को? कहीं सिज्योफ्रेनिक तो नहीं?

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