एपिसोड 1

23.51k पढ़ा गया
29 கருத்துகள்

नदी जब सड़क बनती है, तो सबसे पहले अपनी रफ़्तार खोती है। फिर नमी। फिर ख़ुद को खो देती है।

खोना  

सबसे पहले एक नदी थी। नदी, सड़क बन गई और सड़क शाखाओं में बँटकर पूरी दुनिया में फैल गई। और चूंकि सड़क एक ज़माने में नदी थी, इसलिए वह हमेशा भूखी रहती थी।
- बेन ओकरी (द फैमिश्ड रोड)

मेरा नाम ‘मैं’ है - 1

मैं इसी सड़क पर चलता था। सड़क का आसपास बदल जाता, लेकिन सड़क नहीं बदलती थी। नदियों को एक दिन समंदर में जाकर गिरना होता है, लेकिन सड़क कहाँ जाकर गिरती है, कोई नहीं देख पाया। वह कहती, दुनिया-भर की सड़कों को इकट्‌ठा कर दिया जाए, तो वे उसके बालों का जूड़ा बन जाएँगी। 

पढ़िए यह कहानी Bynge पर
जुड़िए 3 लाख+ पाठकों के समूह से

Bynge इंस्टॉल करें

इस तरह हर सड़क एक जूड़े में तब्दील होने के लिए अपनी जगह से चलती है।

फिर मैं उसके बालों में हाथ फिराता और कहता, देखो, कितनी सारी सड़कें मेरी उँगलियों में आ फँसी हैं। 

मैं उँगलियों से नहीं चलता था। उँगलियों के बाद हाथ ख़त्म हो जाता है, पर हाथ का अहसास बना रहता है। वैसे ही एक किनारे जाकर सड़क मुड़ जाती थी, लेकिन सामने फिर भी उसका अहसास बना रहता था। 

अब तक सबसे ज़्यादा बार मैं इसी सड़क पर चला हूँ। नेहरू चौक से लेकर फ्लॉवर्स लेन तक। मैं नेहरू चौक पर नहीं रहता और न ही फ्लॉवर्स लेन पर मेरा कोई काम है, फिर भी। इन दोनों के बीच जो दुनिया चलती है, उसमें मुझे हर रंग दिख जाता है। इस तरह मेरा चलना दुनिया के चलने के भीतर होता है। 

वह मेरी उँगलियों में फँसी सड़क को देख कहती, तुम्हारे हाथ में लंबा सफ़र लिखा है। मैं मुस्करा देता और चाहकर भी उसे नहीं बता पाता कि मैं रोज़ शाम इतने चक्कर मारता हूँ कि सड़क ख़ुद-ब-ख़ुद मेरी उँगलियों में आकर बैठ जाती है।

उँगलियों में मेरे सिगरेट फँसी हुई है, लेकिन मैं उसे जलाना नहीं चाहता। मैं किसी बूढ़े की तरह मंथर गति से चलूँगा और बाद में सेंट्रल अस्पताल के सामने किसी पत्थर पर बैठकर देर तक सिगरेट को देखूँगा, फिर पास से जाते किसी से माचिस माँगूँगा और तीन-चार के मना करने के बाद चौथा कोई मुझे माचिस दे देगा और फिर मैं इसे जलाऊँगा। ऊब से भरी मणि कौल की किसी फिल्म की तरह। या उस तरह, जैसे पेस्तनजी दरवाज़ा खोलता है।

पढ़िए यह कहानी Bynge पर
जुड़िए 3 लाख+ पाठकों के समूह से

Bynge इंस्टॉल करें

और यह सारा काम पूरी लंबाई में होता है, इस तरह कि मैं ख़ुद को एक सड़क की तरह महसूस करने लगता हूँ। जो दरअसल चल रही होती है, पर इतना धीरे कि रुकी हुई लगती है। नदी जब सड़क बनती है, तो सबसे पहले अपनी रफ़्तार खोती है। फिर नमी। फिर ख़ुद को खो देती है। जैसे अगले पन्नों में चलने वाले ये सारे लोग खो गए। 

सड़क बन जाना नदी के साथ हुई सबसे बड़ी क्रूरता है। 

अगले एपिसोड के लिए कॉइन कलेक्ट करें और पढ़ना जारी रखें