एपिसोड 1

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अनुक्रम

एपिसोड 1-5 : पापा, तुम्हारे भाई

नए एपिसोड, नई कहानी 
एपिसोड 6-11 : क्वॉलिटी लाइफ़
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टीवी और अख़बार वाले भी अपने कैमरे ऐसी ही लड़कियों पर फोकस किए रहते हैं, खेल उनका चाहे जैसा हो। आजकल खिलाड़ी खेल से बनता है, लेकिन स्टार तो टांगें ही बनाती हैं।

कहानी : पापा, तुम्हारे भाई

तस्वीर

इस तस्वीर को देखिए, यह मैं हूं, झबरे बालों वाली लड़की जो जूते से अपनी एक आंख ढके हुए है। सामने घुटनों तक मोजे पहने, स्टिक को गिटार की तरह बजाते हुए जो आदमी नंगे बदन नाच रहा है, मेरे पापा हैं। आसमान पर बादल हैं, पानी बरसने वाला है। हम लोग बारिश में भी नाचेंगे और गरम जलेबी खाते हुए घर लौटेंगे। मेरे पापा को नहीं जानते आप, क्रिकेट से फुर्सत मिले तब न। जाट रेजिमेंट के थर्ड आर्टिलरी डिवीजन के सूबेदार मेजर भारत सिंह, वही बार्सिलोना ओलंपिक के गेममेकर मास्टरमाइंड लेफ्ट इन... और गेंद एक बार फिर भारत के कब्जे में, लचकदार कलाइयों की खूबसूरत ड्रिब्लिंग, दो को छकाया, बहुत आसान लगती जादुई फ्लिक, प्रतिद्वंद्वी भौचक, एकदम कॉर्नर से रिवर्स क्रॉस, फॉरवर्ड ने गेंद को ट्रैप करके समय गवाने का जोख़िम नहीं लिया, बेहिचक शॉट, गोलकीपर के बाएं पैर को छूती हुई गेंद अंदर और ये गोओओ....। गांव के लोग पापा की मौत को भी इसी तरह याद करते हैं। वे कारगिल की लड़ाई में मारे गए। नए ताबूत की वार्निश की भीगी महक और उनका सोया चेहरा मुझे याद है। लेकिन, यह तस्वीर मैं दिखा किसे रही हूं?

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ओह पापा, तुम ज़िंदा होते तो देखते, लोग कहते हैं, मैं एकदम तुम्हारी तरह खेलती हूं। विरोधियों के घेरे में उन्हें ललचाते हुए, खिलवाड़ करते हुए लेकिन घेरा तोड़ने की नई-नई चालें सोचते हुए। तुम्हारी अचानक छूटी गोली जैसी दौड़ अब मेरी पिंडलियों में ज़िंदा है। तुम्हारी यह स्टिक हमेशा मेरे किट में रहती है जिस पर किसी अल्हड़ लड़की की चलाई कैंची का निशान है। मां इसके लिए तुमसे कितना लड़ती थी। अक्सर कुढ़कर उसे चूल्हे में लगा देने के लिए खोजती थी और तुम उसे बच्चों की तरह कहीं अनाज के ढेर में तो कहीं दुछत्ती पर छिपाते फिरते थे। मां से घर में कोई कुछ भी छिपा सकता है क्या? वह भी जानती थी कि वह स्टिक कहां रखी है, फिर भी मुझसे पूछती थी। जैसे मैं बता दूंगी। मैं हमेशा शरारत से इनकार में सिर हिलाती थी और वह मुझ पर झल्लाने लगती थी। हम औरतें ऐसी ही होती हैं, पापा।

लेकिन तुम क्या जानो इस बार मैं कैसा घेरा तोड़कर भागी हूं, अचानक बहुत बड़ी होकर शर्म से लिथड़ गई हूं। ख़ून, रिश्ते, समाज, प्यार मेरे लिए सब बंजर-ऊसर हो गए हैं। अभी तो अपने कमरे से बाहर भी नहीं निकल सकती। अभी तो स्पोर्ट्स हॉस्टल के कमरे की इन चहारदीवारों के बीच सिर्फ़ तुमसे बात की जा सकती है, लेकिन यक़ीन रखो, एक दिन मैं सच्चे खिलाड़ी की तरह सब का सामना करूंगी। घेरा चाहे जितना मज़बूत हो, विरोधी चाहे जितने क्रूर और कमीने हों। तुम्ही मैच के बीच चिल्लाया करते थे 'मुश्किल वक़्त, कमांडो सख्त', और मैं फिर एक बार उठ कर जूझने के लिए तैयार हो जाती थी।

तुम्हारे चले जाने के बाद मेरी प्रेक्टिस धवरी और उसके बछड़े ने कराई। वह जानती तो थी ही कि तुम नहीं रहे, यह भी जान गई थी कि तुम्हारा सपना क्या था। इसलिए उसने यह काम अपने हाथ में ले लिया। आए दिन दुहे जाने से ठीक पहले रोज़ सुबह वह खूंटे को झटका देकर भाग निकलती थी और मैं उसके पीछे। दूर खेत में खड़ी होकर वह और उसका बछड़ा मुझे शरारत से देखते थे, जैसे चिढ़ा रहे हों। गांव की ऊबड़-खाबड़ संकरी गलियों से होते हुए फसलों से भरे खेतों, खलिहान, टीलों, कीचड़ और तालाब के छिछले पानी में मां-बेटे पकड़ने की चुनौती देते हुए मुझे दौड़ाते रहते थे। थककर पस्त हो जाने के बाद जब मैं हांफते हुए दोनों को कोसने, मुंह चिढ़ाने, या गालियां देने लगती थी तो वे चुपचाप खड़े हो जाते थे। गले का पगहा पकड़ाते समय वह मुझे उसी तरह देखती थी जैसे तुम सुबह की कठिन प्रैक्टिस के बाद हंसती आंख से देखते थे। घर की ओर लौटते हुए उसका बछड़ा मुझे पीछे से ठेलकर छेड़ता था। अब वह पूरा बैल हो गया है और गंभीर रहता है। वह किसी और को अपने थन पर हाथ भी नहीं लगाने देती थी। एक दुलत्ती और बाल्टी मुंह पर, पैर ऊपर। लाठियों का असर उस पर नहीं होता था। मेरे हाथ लगाते ही चुपचाप खड़ी हो जाती थी, और जैसे दूध का झरना बहने लगता था। मुटियार, दूध भी इतना देती थी कि दुहते-दुहते बाहें भर जाती थीं और बाल्टी संभाले टांगें थरथराने लगती थीं। इतना थक जाती थी, आधे दिन तक मुझे नींद में पूरा स्कूल हिलता हुआ लगता था। मेरे हॉस्टल आ जाने के बाद सनकी, मनमौजी और ज़बर समझी जाने वाली इस शानदार गाय को बेच दिया गया।

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और घर के आंगन में! वहां भी 'स्किल हॉनिंग सेशन' चलता रहता था। मां बड़ी देर से बाहर का दरवाज़ा बंद करने के लिए बड़बड़ा रही है। एक ड्रैग हिट, धड़ाक! दरवाज़ा बंद। पिसने के लिए सूख रहे गेहूं पर कौवे टूट रहे हैं, स्कूप...भाग गए साले! चाची का बेटा रो रहा है , एक रंग-बिरंगी कैप उसके सिर पर रखने के बाद टांगों के बीच से ड्रिब्लिंग, टूटे दांतों की खिड़की खुल गई। हर वक़्त की मेरी खट-खट से और सभी चाहे जितना नाराज़ हों मां ने कभी कुछ नहीं कहा।  शायद उन्हें तुम्हारी याद आती होगी और अच्छा लगता होगा, है न! कभी-कभार बड़बड़ाती थीं कि पता नहीं हज़ारों मर्दों के सामने बित्ता भर की स्कर्ट पहने नंगी टांगें दिखाते हुए कैसे दौड़ती है। उन्हें क्या पता, जिन लड़कियों की टांगें सूखी और डिशेप हो जाती हैं वे उन्हें भरी-भरी बनाने के लिए क्या-क्या उपाय करती हैं ताकि सेलेक्टरों और कोच की नज़र उन पर से हटे नहीं। टीवी और अख़बार वाले भी अपने कैमरे ऐसी ही लड़कियों पर फोकस किए रहते हैं, खेल उनका चाहे जैसा हो। आजकल खिलाड़ी खेल से बनता है, लेकिन स्टार तो टांगें ही बनाती हैं।

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