एपिसोड 1

1.43k पढ़ा गया
4 கருத்துகள்

अनुक्रम

एपिसोड 1-2 : जंगल का जादू तिल-तिल
एपिसोड 3-4 : सीढ़ियों के पास वाला कमरा
एपिसोड 5-7 : शिकार
एपिसोड 8 : चूड़ियों का डब्बा माने, कसम कसम
एपिसोड 9-11 : खु़शबू शबनम रंग सितारे
एपिसोड 12-15 : गए मौसमों की बातें
एपिसोड 16 : रात पाली के बाद
एपिसोड 17-21 : दिलनवाज़ तुम बहुत अच्छी हो! 
एपिसोड 22-23 : नीला जूता
एपिसोड 24 : एक और दिन
एपिसोड 25 : हनीमून
एपिसोड 26-27 : यही प्यार है क्या
एपिसोड 28 : डरने का डर
एपिसोड 29-32 : लालपरी@रीडिफमेल डॉट कॉम उर्फ ईमेल शीमेल
एपिसोड 33-35 : मछलीमार
एपिसोड 36-37 : चोरी
एपिसोड 38 : पिकनिक
एपिसोड 39 : बक्से का जादू
एपिसोड 40-42 : कैक्टस
एपिसोड 43-45 : कैसे कैसे दिन
एपिसोड 46 : पार्क में 
एपिसोड 47 : सिर्फ एक आईसक्रीम के लिए

एपिसोड 48-51 : फूलपुर की फुलवरिया मिसराईन

____________________________________

गांव का जंगल सच बिला गया। अब तो पूरा शहर ही जंगल है, जहां आदमी ही शिकार करता है और आदमी ही शिकार होता है। 

कहानी: जंगल का जादू तिल-तिल

शिकार, जंगल और सूखी धरती

मंगलवारी हाट का दिन था। लाल मोर्रम की ज़मीन रात की बरसा से भीगी थी। सागौन के पत्ते से पानी अब भी टपटप चू रहा था। नीले चिमचिमी को रस्सी से बाँधकर थोड़ी आड़ बना दुकानें सज रही थीं।

पेड़ के तने से लाल चींटों की मोटी कतार व्यस्त सिपाहियों-सी मुस्तैदी से काली लकीर खींचती थीं। नीचे ज़मीन पर भुरभुरी मिट्टी के टीले में फिर अचानक से बिला भी जातीं। किसी के पांव पर चढ़ गईं तो छिलमिला कर उछलने का औचक नृत्य भी दिख जाता।  

पढ़िए यह कहानी Bynge पर
जुड़िए 3 लाख+ पाठकों के समूह से

Bynge इंस्टॉल करें

मंगरू टोपनो, शिबू कुजूर, बालू, बिरसा, सब के सब बझे थे। छोटी मछली, रुगड़ा, कुकुरमुत्ता, केकड़ा पकड़ेंगे बजार के बाद। जंगल में आग जला के पकाएंगे। हडिया के संग खूब पकेगा छनेगा। पर पहले कमाई तो हो ले।

कमर के फेंटे में बांसुरी बांधे मंगरू छन-छन इंतज़ार करता है। इतवरिया और फूलटुसिया हथेलियों से मुंह दाबे हंसती छनकती मुड़-मुड़ के देखती हैं। बालों में बुरुश के फूल कान के पीछे लटक-लटक जाते हैं। पावों के कड़े काले बादल में, बिजली की चमक… मंगरू के दांत भी चमकते हैं, बिजली की कौंध से। 

हाट की भीड़ बढ़ रही है। ज़मीन पर बिखरी हैं चीज़ें, टोकरी, रस्सी, सूप और दौरी, सींक के झाड़ू, बालों का नाड़ा, सीप मोती के हार, जड़ी-बूटी, सूखी मछली, सुतली से बंधे साग के गट्ठर, जंगली डंठल, पत्ते के दोने में भुने हुए फतिंगे और भूरे चींटे, मोटे रस में पगे बेडौल देहाती चींटी सनी मिठाइयां, घड़ियां और काले रंगीन चश्मे, छींटदार कपड़े और न जाने क्या-क्या।

गांव के गिरजे का पादरी फ़ादर जॉन एक्का अपने उजले चोगे को उठाए, संभाले गुज़र जाता है। पिछले इतवार ही तो मारिया कुजू़र के बच्चे का बपतिस्मा कराते, बच्चे ने पेशाब की धार से नहला दिया था। बच्चे को लगभग गिरा ही दिया था फ़ादर ने। तब प्रभु यीशु की दयानतदारी कहां ग़ायब हुई थी। औरतों का झुंड मुंह बिचकाता है। 

भनभन-भनभन आवाज़ इधर-उधर घूमती है, इस छोर से उस छोर। तेज़ तीखी, मोलभाव करती, हाड़िये के नशे में झगड़ती, उकसाती, दबे-छिपे हंसते किलकते और फिर दिन ढलते थकी हारी, बेचैन थरथराती, बुझते ढिबरी के कांपते सिमटते लौ सी।

अंधेरा होते ही सब सिमटता है। अलाव की रौशनी में उजाड़ पड़े चौकोर गुमटियों के निशान, काग़ज़ की चिंदियाँ, पत्तल और कुल्हड़। रेज़गारी की छनछनाहट,नोटों की करकराहट। कुछ बुझे उदास चेहरे, धूसर मिट्टी में सने पैरों के तलवे, रबर की चप्पलें और जंगल में सुन सन्नाटे में खोते-पाते अकेले रास्ते। जंगल का जादू कहीं बिला गया है। सच कहीं बिला गया है। जंगल अब कुछ नहीं देता।

पानी सूख गया है। पत्थर से आग निकलती है। जानवर सब भी कहीं लुकछिप गए हैं। कोई शिकार बरसों से नहीं हुआ है। तीर और भाले किसी और ही समय के खिलौने हैं। सिंगबोंगा, सूरज देवता भी रूठ गया है, तभी आग बरसाता है। मुंडा, खड़िया, ओरांव, सब आसमान ताकते हैं। पानी टप-टप चूता है आसमान से लगातार। अंधेरा परत बनाता है, इतना-इतना कि हाथ को हाथ न सूझे।

पढ़िए यह कहानी Bynge पर
जुड़िए 3 लाख+ पाठकों के समूह से

Bynge इंस्टॉल करें

गांव के लड़के अब अंधेरा पीते हैं। दिन भर, रात भर। और कुछ जो करने को नहीं। इतना घुप्प अंधेरा है कि सपना तक नहीं दिखता। मंगरू बांसुरी बजाए तो भी नहीं।

हाट की दुकानें हर मंगलवार घटती जाती हैं। ट्रक पर हर हफ़्ते आलू और प्याज़ और बीड़ी के बंडल के साथ दो-तीन लड़के भी निकल जाते हैं पैर लटकाए, थोड़ी-सी लाल मिट्टी नाखूनों में दबाए। एकाध लड़कियां भी, कलाई और माथे के गोदने को छुपाये, शहर में चौका बर्तन और मजूरी करने। गांव का जंगल सच बिला गया। अब तो पूरा शहर ही जंगल है, जहां आदमी ही शिकार करता है और आदमी ही शिकार होता है। 

लाहा पाहिल धरती लोसोत गे
थो थोले तहेकान
सेकाते धरती रोहोर एना
लोसोत हावेत लागित पँखी राजा
होये माय बेनाव केत
ओना हादार होये तेगे रोहोर एना 

(शुरू में धरती दलदल थी 
फिर इतनी सूखी कैसे हुई
धरती सूखे सो पक्षी राजा ने
बनाई हवा 
और उसकी फूँक से सूखी धरती )

अगले एपिसोड के लिए कॉइन कलेक्ट करें और पढ़ना जारी रखें