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यह तो कहो कि महाराज के मरने के बाद मैं गद्दी का मालिक कैसे बनूँगा? लोग कैसे मुझे राजा बनाएँगे।

क्रूर सिंह की मंशा 

बयान – 1

शाम का वक्त है, कुछ-कुछ सूरज दिखाई दे रहा है, सुनसान मैदान में एक पहाड़ी के नीचे दो शख्स वीरेंद्र सिंह और तेज सिंह एक पत्थर की चट्टान पर बैठ कर आपस में बातें कर रहे हैं।

वीरेंद्र सिंह की उम्र इक्कीस या बाईस वर्ष की होगी। यह नौगढ़ के राजा सुरेंद्र सिंह का इकलौता लड़का है। तेज सिंह राजा सुरेंद्र सिंह के दीवान जीत सिंह का प्यारा लड़का और कुँवर वीरेंद्र सिंह का दिली दोस्त, बड़ा चालाक और फुर्तीला, कमर में सिर्फ खंजर बाँधे, बगल में बटुआ लटकाए, हाथ में एक कमंद लिए बड़ी तेजी के साथ चारों तरफ देखता और इनसे बातें करता जाता है। इन दोनों के सामने एक घोड़ा कसा-कसाया दुरुस्त पेड़ से बँधा हुआ है।

कुँवर वीरेंद्र सिंह कह रहे हैं – ‘भाई तेज सिंह, देखो मुहब्बत भी क्या बुरी बला है जिसने इस हद तक पहुँचा दिया। कई दफा तुम विजयगढ़ से राजकुमारी चंद्रकांता की चिट्ठी मेरे पास लाए और मेरी चिट्ठी उन तक पहुँचाई, जिससे साफ मालूम होता है कि जितनी मुहब्बत मैं चंद्रकांता से रखता हूँ उतनी ही चंद्रकांता मुझसे रखती है, हालाँकि हमारे राज्य और उसके राज्य के बीच सिर्फ पाँच कोस का फासला है इस पर भी हम लोगों के किए कुछ भी नहीं बन पड़ता। देखो इस खत में भी चंद्रकांता ने यही लिखा है कि जिस तरह बने, जल्द मिल जाओ।’

तेजसिंह ने जवाब दिया - ‘मैं हर तरह से आपको वहाँ ले जा सकता हूँ, मगर एक तो आजकल चंद्रकांता के पिता महाराज जयसिंह ने महल के चारों तरफ सख्त पहरा बैठा रखा है, दूसरे उनके मंत्री का लड़का क्रूर सिंह उस पर आशिक हो रहा है, ऊपर से उसने अपने दोनों ऐयारों को जिनका नाम नाजिम अली और अहमद खाँ है इस बात की ताकीद करा दी है कि बराबर वे लोग महल की निगहबानी किया करें क्योंकि आपकी मुहब्बत का हाल क्रूरसिंह और उसके ऐयारों को बखूबी मालूम हो गया है।

चाहे चंद्रकांता क्रूर सिंह से बहुत ही नफरत करती है और राजा भी अपनी लड़की अपने मंत्री के लड़के को नहीं दे सकता फिर भी उसे उम्मीद बँधी हुई है और आपकी लगावट बहुत बुरी मालूम होती है। अपने बाप के जरिए उसने महाराज जयसिंह के कानों तक आपकी लगावट का हाल पहुँचा दिया है और इसी सबब से पहरे की सख्त ताकीद हो गई है। आप को ले चलना अभी मुझे पसंद नहीं जब तक की मैं वहाँ जा कर फसादियों को गिरफ्तार न कर लूँ।’

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‘इस वक्त मैं फिर विजयगढ़ जा कर चंद्रकांता और चपला से मुलाकात करता हूँ क्योंकि चपला ऐयारा और चंद्रकांता की प्यारी सखी है और चंद्रकांता को जान से ज्यादा मानती है। सिवाय इस चपला के मेरा साथ देने वाला वहाँ कोई नहीं है। जब मैं अपने दुश्मनों की चालाकी और कार्रवाई देख कर लौटूं तब आपके चलने के बारे में राय दूँ। कहीं ऐसा न हो कि बिना समझे-बूझे काम करके हम लोग वहाँ ही गिरफ्तार हो जाएँ।’

वीरेंद्र – ‘जो मुनासिब समझो करो, मुझको तो सिर्फ अपनी ताकत पर भरोसा है लेकिन तुमको अपनी ताकत और ऐयारी दोनों का।’

तेज सिंह – ‘मुझे यह भी पता लगा है कि हाल में ही क्रूर सिंह के दोनों ऐयार नाजिम और अहमद यहाँ आ कर पुनः हमारे महाराजा के दर्शन कर गए हैं। न मालूम किस चालाकी से आए थे। अफसोस, उस वक्त मैं यहाँ न था।’

वीरेंद्र – ‘मुश्किल तो यह है कि तुम क्रूर सिंह के दोनों ऐयारों को फँसाना चाहते हो और वे लोग तुम्हारी गिरफ्तारी की फिक्र में हैं, परमेश्वर कुशल करे। खैर, अब तुम जाओ और जिस तरह बने, चंद्रकांता से मेरी मुलाकात का बंदोबस्त करो।’

तेजसिंह फौरन उठ खड़े हुए और वीरेंद्र सिंह को वहीं छोड़ पैदल विजयगढ़ की तरफ रवाना हुए। वीरेंद्र सिंह भी घोड़े को दरख्त से खोल कर उस पर सवार हुए और अपने किले की तरफ चले गए।

बयान - 2

विजयगढ़ में क्रूर सिंह अपनी बैठक के अंदर नाजिम और अहमद दोनों ऐयारों के साथ बातें कर रहा है।

क्रूर सिंह – ‘देखो नाजिम, महाराज का तो यह ख्याल है कि मैं राजा होकर मंत्री के लड़के को कैसे दामाद बनाऊँ, और चंद्रकांता वीरेंद्र सिंह को चाहती है। अब कहो कि मेरा काम कैसे निकले? अगर सोचा जाए कि चंद्रकांता को ले कर भाग जाऊँ, तो कहाँ जाऊँ और कहाँ रह कर आराम करूँ? फिर ले जाने के बाद मेरे बाप की महाराज क्या दुर्दशा करेंगे?

इससे तो यही मुनासिब होगा कि पहले वीरेंद्र सिंह और उसके ऐयार तेज सिंह को किसी तरह गिरफ्तार कर किसी ऐसी जगह ले जा कर खपा डाला जाए कि हजार वर्ष तक पता न लगे, और इसके बाद मौका पा कर महाराज को मारने की फिक्र की जाए, फिर तो मैं झट गद्दी का मालिक बन जाऊँगा और तब अलबत्ता अपनी जिंदगी में चंद्रकांता से ऐश कर सकूँगा। मगर यह तो कहो कि महाराज के मरने के बाद मैं गद्दी का मालिक कैसे बनूँगा? लोग कैसे मुझे राजा बनाएँगे।’

नाजिम - हमारे राजा के यहाँ बनिस्बत काफिरों के मुसलमान ज्यादा हैं, उन सभी को आपकी मदद के लिए मैं राजी कर सकता हूँ और उन लोगों से कसम खिला सकता हूँ कि महाराज के बाद आपको राजा मानें, मगर शर्त यह है कि काम हो जाने पर आप भी हमारे मजहब मुसलमानी को कबूल करें?

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क्रूर सिंह – ‘अगर ऐसा है तो मैं तुम्हारी शर्त दिलोजान से कबूल करता हूँ?’

अहमद – ‘तो बस ठीक है, आप इस बात का इकरारनामा लिख कर मेरे हवाले करें। मैं सब मुसलमान भाइयों को दिखला कर उन्हें अपने साथ मिला लूँगा।’

क्रूर सिंह ने काम हो जाने पर मुसलमानी मजहब अख्तियार करने का इकरारनामा लिख कर फौरन नाजिम और अहमद के हवाले किया, जिस पर अहमद ने क्रूर सिंह से कहा - ‘अब सब मुसलमानों को एक (दिल) कर लेना हम लोगों के जिम्मे है, इसके लिए आप कुछ न सोचिए।

हाँ, हम दोनों आदमियों के लिए भी एक इकरारनामा इस बात का हो जाना चाहिए कि आपके राजा हो जाने पर हमीं दोनों वजीर मुकर्रर किए जाएँगे, और तब हम लोगों की चालाकी का तमाशा देखिए कि बात-की-बात में जमाना कैसे उलट-पुलट कर देते हैं।’

क्रूर सिंह ने झटपट इस बात का भी इकरारनामा लिख दिया जिससे वे दोनों बहुत ही खुश हुए। इसके बाद नाजिम ने कहा - ‘इस वक्त हम लोग चंद्रकांता के हालचाल की खबर लेने जाते हैं क्योंकि शाम का वक्त बहुत अच्छा है, चंद्रकांता जरूर बाग में गई होगी और अपनी सखी चपला से अपनी विरह-कहानी कह रही होगी, इसलिए हम को पता लगाना कोई मुश्किल न होगा कि आज कल वीरेंद्र सिंह और चंद्रकांता के बीच में क्या हो रहा है।’

यह कह कर दोनों ऐयार क्रूर सिंह से विदा हुए।

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