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इधर जबसे हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की चर्चा छिड़ी है, तबसे इसके विरोधी बड़े प्रचंड वेग से इसकी गति रोकने के अनेक उपाय रचने में लग गए हैं।...

एक आलोचक के पत्र ...

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हिन्दी प्रेमियों से अनुरोध

हमारी परम्परागत भाषा को हमारे व्यवहारों से अलग करने का प्रयत्न बहुत दिनों से चल रहा है, पर अपनी स्वाभाविक शक्ति से यह अपना स्थान प्राप्त करती चली आ रही है। इधर जबसे हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की चर्चा छिड़ी है, तबसे इसके विरोधी बड़े प्रचंड वेग से इसकी गति रोकने के अनेक उपाय रचने में लग गए हैं। इस अवसर पर अपनी भाषा की रक्षा का भरपूर उद्योग हमने न किया तो सब दिन के लिए पछताना पड़ेगा। पर हममें से अधिकतर लोगों को यह भी पता नहीं है कि हिन्दी को उखाड़ फेंकने के लिए कितने चक्र किन-किन रूपों में कहाँ-कहाँ चल रहे हैं। यही देखकर यह 'हिन्दी' पत्रिका निकाली गई है, यह इस बात पर बराबर दृष्टि रखेगी कि अनिष्ट की आशंका कहाँ-कहाँ से है और समय-समय पर अपनी सूचनाओं द्वारा हिन्दी प्रेमियों से स्थिति पर विचार करने और आवश्यक उद्योग करने की प्रेरणा करती रहेगी।

हमें पूरा विश्वास है कि समस्त देशभक्त और मातृभाषा प्रेमी सज्जन इस पत्रिका की सहायता हर प्रकार से-धन से, लेख से, आवश्यक बातों की सूचना से, अवसर के अनुकूल परामर्श से-करेंगे और यह अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त करेगी।

रामचन्द्र शुक्ल

सभापति

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-काशी नागरीप्रचारिणी सभा

(नागरीप्रचारिणी सभा, काशी से 'हिन्दी' नाम से मासिक पत्र निकालने की योजना थी। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल उस समय सभा के सभापति थे। उन्होंने इस पत्र के माध्यम से 'हिन्दी' पत्रिका के सहायतार्थ हिन्दी प्रेमियों से अनुरोध किया था।)

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