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यूँ तो किसी धुएं को ये पता नहीं होता है कि वादी क्या है, दरिया क्या है, मैदान क्या है.......कोई भी धुआं ये जनता ही नहीं कि वह किस वादी से निकला हुआ दरिया है.......वह बस एक ही चीज़ जानता है...... एक ही चीज़......और वह है दूर तक फैली हुई चुप्पी; जिसे मैं और आप साफ़-साफ़ लहजे में मौत कहते हैं।

धुआँ 

मैं जहाँ हूँ वहाँ की हवा चुप है, शांत है, उसकी लरज़ में एक ठहराव है। ऐसा ठहराव जैसा वादी छोड़ने के बाद पानी में धीरे-धीरे आने लगता है। यही पानी जब किसी तलहटी से निकल कर मैदान के किनारे जा लगता है तो एक दम ख़ामोश धुएं में तब्दील हो जाता है जो बिना हलचल आगे बढ़ता है। यूँ तो किसी धुएं को ये पता नहीं होता है कि वादी क्या है, दरिया क्या है, मैदान क्या है.......कोई भी धुआं ये जनता ही नहीं कि वह किस वादी से निकला हुआ दरिया है........वह बस एक ही चीज़ जानता है......एक ही चीज़........और वह है दूर तक फैली हुई चुप्पी; जिसे मैं और आप साफ़-साफ़ लहजे में मौत कहते हैं। 

साल चौदह में जब राहिला मरी तो वह अड़तीस की थी और अमून सत्रह का। राहिला का असल नाम तलजीत था पर हीरेन्द्र ने जब उसे दयालबाग के पार अँधेरे में ‘सहन-रोशनआरा” कोठे पर छोड़ा तो वहाँ उसका नाम राहिला हुआ। रोशन ने नाम के अलावा कुछ और कभी बदलना ज़रूरी ही नहीं समझा..... तब से कुल जमा यही पहचान रही उसकी, नाम की राहिला और सुमिरन नानक की। वह अपने जन्म के तीसरे साल रोशन-बी के हाथों में सौंप दी गई थी। 

“तैनूं कुड़ी चायदीं या नी चायदीं....... छेत्ती-छेत्ती दस मैंनू....... चुप रह के माथा न फेर मेरा।” 

रोशन जानती थीं कि हीरेन्द्र के अन्दर कुछ चल रहा पर वह ऐसा कुछ कहेगा इसका उसे अंदाज़ा नहीं था। 

“शर्म है या बेच खाई तुमने हीरू........ अपनी औलाद को यहाँ का रास्ता दिखाता है कोई?”

“हुंड़ दस्सो कौन ऐसी सुथरी-सुथरी गल्ल कर रहा है? तू भूल गई रोशन बीबी तेरा ताऊ और चाचा चादरे में लपेट के फ़ेंक गए थे तुझे छीपीटोले.............कित्ते पैसे मिले थे उन्हें तेरे????” हीरेन्द्र ने हाथ में ग्लास घुमाते हुए कहा।

“पर वो मेरे बाप नहीं थे।”

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“तू वह छोड़.... पहले मैंनू दस्स कित्ते पैसे मिले थे उन्हें तेरे?”

“सत्रह सौ।”

“और मैं तो इसे मुफ़्त में दे रहा हूँ तुझे, रख ले इसे तेरा आण वाल्ला वक़्त सुधर जायेगा। ओ! बीबी तेरी अदाएं अच्छी थीं जो तू यहाँ तक पहुँच गयी, कल का सोच और अब तो तेरा काम भी मंदा है आगे क्या करेगी तू। मेरी गल्ल मान जा, बाकी ये तुझे कहाँ से कहाँ पहुंचा दे ये तो रब्ब जाने।”

“तू पाल ही जो ले उसे, अरे! तेरी जोरू का अपना हिस्सा है वह। आस-औलाद तो घर सींच के रखती है हीरू।”

“तू बकवास ना करीं.......... हम रंधावे हैं रोटी-साग का घी-तेल भी खालिस रखते हैं फिर ये तो खून की गल्ल है इसमें मेल-मिलावट कैसे चलेगी रोशन बीबी।”

“तुझे चढ़ गई है हीरू, अब तू घर जा एक बजने आया रात का।”   

“एक्क ही तो वजा है ........ अभी चला जावंगा थोड़ी देर में।”    

हीरेन्द्र के जाने के बाद रोशन देर तक छत पर लेटे-लेटे आकाश निहारती रही। 

‘मेरा कौन आगा-पीछा है.......... लड़की आएगी तो कुछ रौनक बनेगी इस घर में। हीरेन्द्र तो यूँ भी जोरू के मरने के बाद से लड़की से छुटकारा पाने को बैचैन है....... यहाँ न आई तो जाने कहाँ किसके हाथ निकाल दे, जाने क्या बने उसका? रोशन ने करवट ली और एक टूटे तारे को गिरते हुए देख सोचा कि जोरू भी कौन अपनी आई पर मरी थी उसे भी तो हीरेन्द्र ने मन भीतर गढ़ी कील से ऐसे ही गिरा दिया था जैसे अभी-अभी इस तारे को आसमान से बेदख़ल किया गया है, शुबाह का अजगर अपने रास्ते बीच आने वाली हर छाँव को निगल जाता है। 

जिस बरस राहिला पैदा हुई वह आपातकाल के बीच का साल था, साल छियत्तर.........  यूँ तो हीरेन्द्र का घर-कुनबा बहुत खुश हुआ कि उसकी बेटी सोने की कनी सी सुनहरी, ओस पड़े गेंहू सी नाज़ुक, बारिश की बूँद सी उजली है; पर इतने के बाद भी कहीं उस घर में कोई ऐसी आंच सुलग रही थी कि जिससे धीरे-धीरे इस ख़ुशी की नमी में भाप उठने लगी थी। 

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पिचहत्तर का ये वो वक़्त था जब हर ओर खौफ़, डर और सुगबुगाहट थी। घरों के दरवाज़े इस मुस्तैदी से बंद थे कि उन्हें कोई परछाईं तो क्या सांस भी पार करके बाहर नहीं जा सकती थी, फिर भी अमले के अफ़सर भेड़-बकरियों की तरह पूरे मोहल्ले के जवान लड़कों के साथ हीरेन्द्र को भी खदेड़ते हुए अस्पताल ले गए थे, दूसरे दिन वह अस्पताल से घर नहीं सीधे रोशन के पास पहुँचा और दिनों तक वहीं रहने के बाद जब उसकी झिझक-हिचक खुली, हादसे की शर्म कुछ कम हो उतरी और इन सब से भी ज़्यादा जब साल भर पहले-पहले बियाही जोरु की याद ने अन्दर हरा होना शुरू किया तब उसने घर की राह ली। लौट के आने के बाद वह पहले जैसा नहीं रहा था, उसके भीतर एक नई ज़मीन उभरने लगी थी जो मुलायम नहीं थी; कोई साया उसके अन्दर से झाँकने लगा था और ये साया उस दिन बाहर निकल अपने पूरे रंग में उसके ऊपर छा गया जिस दिन उसे खटका हुआ कि उसकी नसबंदी के बाद जोरू को औलाद कैसे हो सकती थी, उस दिन के बाद वह बार-बार ताकीद करता रहा, बार-बार जवाब मांगता रहा। वह दिन में सबके सामने जितना चुप रहता रात में अकेले होते ही जवाब जानने को उतना ही बैचैन हो जाता। धीरे-धीरे आस-पास ये बात पसारने लगी कि रंधावों के घर की हवा गरम हो चली है। उसका अब ‘सहन’ में आना-जाना बढ़ने लगा था, इसी आने-जाने के बीच उसने रोशन से अपने मन की बात कही थी। घर तो यूँ भी हीरेन्द्र के लिए अब वीराना था जहाँ सबके होते हुए भी चुप्पी उतर आई थी। वह बार-बार अपनी बात का जवाब मांगता, जब जवाब न मिलता तो चुप्पी की उस दीवार पर दुगनी तेजी से चोट करता कि शायद ये दीवार गिर जाये और उस पर इस बच्ची का भेद खुले। ऐसा कम ही होता था कि जवाब की जगह वहाँ चुप्पी पसरी हो अक्सर तो राहिला की माँ सारी-सारी रात हीरेन्द्र को समझाती रहती, गिड़गिड़ाती रहती कि............

"साईं हो जाता है ऐसा। मालिक करिश्मे करे तो ठूंठों से पत्तियां फूट पड़ती हैं, सूखी-चटकी ज़मीन में भी बारिश के आने से फूल उग जाते हैं। वह बादल के बाद धूप दिखा ही देता है, बरसते मेह के बीच भी वह रंगीन इन्दरधनुष रख ही जाता है। नानक की मूरत जिस घर में हो वहां उसके उजाले में कभी कोई बादल ठहरता है साईं।" 

फिर एक गहरा काला बादल नानक की मूरत को पार कर उन दोनों के ऊपर छा गया।

एक दिन अल-सुबह राहिला की माँ आँगन पार की सीढ़ियों से बाहर सड़क पर चोट खाई ख़ूनमखूँ लिथड़ी पड़ी थी और तीन साल की वह किसी अँधेरे कमरे में नशे में धुत्त बाप की चीख-पुकार से डर के दीवार से चिपक के रो रही थी। शाहपुरा वाले जब सर काँधे में डाले बेटी की लाश दरवाज़े से उठाने आये तो घर के अंदर से रह-रह कर हीरेन्द्र के चीखने की आती आवाज़ों से डर के वे बच्ची के बारे में कुछ पूछ ही नहीं सके।

इस घटना के बाद हीरेन्द्र जब उसे रोशन के पास छोड़ने आया तो रोशन ने उसे गोद में उठाते हुए कहा।

“आज के आइंदा सहन में दाखिल न होना हीरू।”  

उसने रोशन को देखा और बिना एक शब्द कहे सीढ़ियों से उतर गया......... आवारा धूल का एक बवंडर जो बड़ी देर से गली में मंडरा रहा था धीरे-धीरे बोझ से भारी हुई रोशन की बाहों की तरह निढाल हो कर नीचे बैठ गया। रोशन ने बच्ची को गोद से नीचे उतारा और फाटक बंद कर लिया। उसके बाद रोशन को इधर-उधर से उड़ते-उड़ते इतना ही पता चला कि हीरेन्द्र ने जोड़-जुगाड़ से एक फ़र्ज़ी मामले में खुद की गिरफ़्तारी दी है ताकि उस पर क़त्ल का कोई हिसाब ही न बैठे, पुलिस ने छह महीने बाद उसे रिहा कर दिया था।

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