एपिसोड 1

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अनुक्रम

एपिसोड 1-3 : पटेलन की नींद
एपिसोड 4-7 : जीप उड़ाते परिंदे
एपिसोड 8-9 : सेवड़ी रोटियां और जले आलू

नए एपिसोड, नई कहानी
एपिसोड 10-12 : घोंसला
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घर में हो रहे इस अंधेर को वह पटेल के संज्ञान में लाईं, लेकिन इस समस्या को निबटाने का काम उन्होंने उल्टे पटेलन के मत्थे डाल दिया और अपने काम में उलझ गए।

कहानी : पटेलन की नींद

टोका-टाकी

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पटेलन को नींद नहीं आ रही है।

अभी कुछ देर पहले उनके पति घर से निकले हैं, अपनी क्लीनिक पर जाने के लिए जो विदिशा के गंज-बासौदा रोड पर, नाके के पास थी। घर से बीस किलोमीटर का सफ़र था मोटरसाइकिल से। सुबह नौ बजे जाने वाले पटेल दोपहर बारह बजे जा रहे हैं। कल शाम को एक मरीज़ को देखने के लिए देहात चले गए थे। रात नौ बजे लौट आना था, सुबह छह बजे घर आ पाए थे।

खै़र, पटेल हेलमेट पहने, चश्मा चढ़ाए सपाटे से चले जा रहे थे। पटेलन का तीन बार मोबाइल फ़ोन बजा इस दरम्यान। पटेल करें भी तो क्या करें- पत्नी हैं, उस पर नि:संतान, कई बीमारियों से पीड़ित। उनका ध्यान रखना पड़ता है। मोटरसाइकिल सड़क किनारे लगा के, हेलमेट निकाल के मोबाइल फ़ोन कान पर लगाया। पूछा, हां, बोलो। क्या हुआ? पटेलन बोलीं, कुछ नहीं। कहाँ पहुंचे अभी? पटेल बोले- अभी तो बीच रास्ते में हैं। बो हरगोविंद मैथिल और ब्रज माटसाब मिल गए, वहीं सगोरिया आ गया, वही भौंरावाला, अपनी लढ़िया लिए। खै़र, उनका ब्लडप्रेशर चेक किया, फिर चाय चल गई इसलिए और भी देर हो गई। तुम सोई नहीं? तीसरा फ़ाेन है तुम्हारा। बोलो। पटेलन बोलीं, अरे, बाइयां चली गईं, गेट पर ताला  लगा रही हूँ। सोचा, तुम्हें खटखटा लें। 

पटेलन को नींद नहीं आती है तो वह मोबाइल फ़ोन उठा लेती हैं और पटेल की पल-पल की सूचना लेती हैं। पटेल उनके एक-एक सवाल का जवाब देते हैं, कंधे पर मोबाइल फंसाए गरदन टेढ़ी करके, मरीज़ को देखते हुए नर्सों को फलाँ मरीज़ को फ़लाँ इंजेक्शन लगा देने का इशारा  करते हुए। 

पटेलन इधर लगभग एक माह से नींद न आने से भारी परेशान हैं। पटेल की ढेर सारी दवाइयां खाने और इंजेक्शन लेते रहने के बाद भी। उन्हें याद है कि इसके पहले उन्हें खूब अच्छी नींद आती थी। दोपहर को भी, रात को भी। वह भी गहरी नींद जो पटेल के मोबाइल फ़ोन बजने और दरवाज़े की घंटी बजाने और ग्रिल पीटने पर भी नहीं खुलती थी। फिर क्या हो गया यकायक। पटेलन सोचतीं और परेशान हो जातीं। उन्हें कोई बात समझ में न आती जो उनकी नींद उड़ाने के किसी ठोस कारण से जुड़ी हो। 

दिमाग़ पर बहुत ज़ोर देने पर एक दिन उन्हें उस वक़्त एक बात समझ में आई जब रोटी बनाने वाली बाई घर में दाख़िल हुई। यह बाई खूब सज-सजा के याने गहरे मेकअप में आती। चटक लिपिस्टिक के साथ कसे जूड़े में सूत भर मांग भरे मोबाइल फ़ोन पर किसी से बात करती। उसकी धज के चलते पटेलन पता नहीं क्यों मन ही मन उसे मटक्को कहतीं। अपना मोबाइल वह साउंड पर रखती इसलिए उसकी और जिससे बात कर रही होती उसकी बात सुनाई पड़ती। पटेलन को वह फूटी आंख न  सुहाती, लेकिन करें भी तो क्या करें? उनके वश में कुछ न था। कुछ उल्टा-सीधा बोला और वह तिड़क के चली गई तो! इसलिए किसी तरह की टोका-टाकी नहीं करती थीं। 

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इस बाई के साथ ही नहीं, बरतन-झाड़ू करने और कपड़े धोने वाली बाइयों से  भी खटकने वाली बात होने पर भी नहीं करती थीं। खै़र, जब रोटी बनाने वाली बाई घर में घुसी और पटेलन को देखते हुए, मोबाइल फ़ोन पर किसी से बात करते हुए मुस्कुराई और फ्रिज की ओर रहस्यात्मक ढंग से देखा, पटेलन को लगा कि चोरी की वजह से सब घपला शुरू हुआ। उस दिन उन्होंने पांच सौ का नोट फ्रिज के ऊपर रखा था, फिर किसी वक़्त नोट उठाया और अलमारी में डाल दिया और यह बात सिरे से भूल गईं। जब रोटी बनाने वाली बाई खाना बनाकर गई और उन्होंने फ्रिज पर निगाह डाली, नोट न था! 

उनका दिमाग चकरा गया। एक-दो दिन बाद यह हुआ कि बासमती चावल का एक पैकेट पड़ोसन को दिया और भूल गईं। ज़रूरत पड़ने पर चावल का पैकेट न  मिला- वह सन्न रह गईं। इसी तरह बहुत ही सुन्दर नमकदानी जो शेर के मुँह के आकार की थी और एक चांदी की चम्मच सफ़ाई के दौरान इधर-उधर हो गई। पटेलन को पक्का यकीन हो गया कि घर में चोरी हो रही है, उन्हें लूटा जा रहा है। हालांकि पांच सौ का नोट और दूसरे सामान मिल गए, लेकिन चोरी या लूटे जाने की बात उनके दिमाग में कहीं गहरे उतर गई जिसे वह मिटा न पाईं। घर में हो रहे इस अंधेर को वह पटेल के संज्ञान में लाईं, लेकिन इस समस्या को निबटाने का काम उन्होंने उल्टे पटेलन के मत्थे डाल दिया और अपने काम में उलझ गए।

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