एपिसोड 1
आंखें लाल, गर्म चेहरा, थरथराती उंगलियां। वो हंसी और बोली, ‘क्या करूं, आदत है मेरी। रोक नहीं पाती। आप भी सोच रहे होंगे कि किस किस्म की अफलातून खातून से पाला पड़ा है…’
अफलातून खातून
दो घंटे पहले सलिल का यह हाल था कि वह होटल के कमरे में खिड़की के पास खड़े हो कर बियर की बोतल मुंह में लगाए अपने आपको तमाम लानत-मलामत भेजता हुआ कोस रहा था। उसे क्या ज़रूरत थी इतनी ठंड में यहां आने की। दोस्त की शादी। हो सकता है सुनने में बड़ा रोमांटिक लगता हो, पर ऐसा है नहीं।
उसके बचपन का चढ्ढी-बड्डी रोमेश, जो इन दिनों अमेरिका में खासा पैसा पीट रहा था, राजस्थान के इस छोटे से शहर में एक पुरानी हवेली में डेस्टिनेशन वेडिंग कर रहा था। सलिल कोलकता से आया था। कोलकता से जयपुर सुबह की फ्लाइट से। फिर जयपुर से तीन घंटे की थकाने वाली यात्रा। ऊपर से हाड़ कंपाने वाली ठंड। होटल पहुंचते-पहुंचते सलिल पस्त हो गया।
मन कर रहा था, रजाई में घुस कर लंबी तान ले। पर नहीं, उसी वक्त रोमेश को आना था। हंसते हुए, गले लगते हुए। पीछे नगाड़े बजाते, नाचते-कूदते, मेहमानों को गले लगाने, माला पहनाने, तिलक करने को आतुर वेडिंग प्लानर की टीम के उत्साही बाशिंदे। रोमेश को लग रहा था इस शान ओ शौकत से सलिल को इम्प्रैस हो जाना चाहिए। अपना बंदा कुछ अलग टाइप का है। ऐसी चीजों से वह खौफ खाता है। ज्यादा शोरशराबा, बैंड बाजा, दिखावे से दूर ही रहता है।
सलिल को ज़बरदस्ती सबके साथ लंच पर जाना पड़ा। वहां भी वही नाच-गाना। आखिरकार सलिल को अपने कमरे में जाने का मौका मिला, इस शर्त पर कि शाम छह बजे वह हवेली की लॉन में पहुंच जाएगा, जहां आज संगीत का भव्य आयोजन होना है।
सलिल का मन कर रहा था कि सब भूलभाल, छोड़छाड़ कर बस कुछ घंटे के लिए सो जाए।
भुनभुनाता हुआ वह हाथ में बियर की बोतल लिए खिड़की के पास आ कर खड़ा हो गया। शाम के चार बज रहे हैं, अगर अभी सोने गया तो खाक उठ पाएगा छह बजे।
खिड़की के बाहर हवेली की लॉन सज, संवर रही थी। लॉन के बाहर एक फूलों का कुंज सा बना था, बीच में झूला। झूले में सफेद शरारा-कुर्ता में एक युवती। दूर से बस यही दिख रहा था, वह मस्ती में झूल रही है। उड़ रही है हवा में। अपने दुपट्टे से बेखबर। शायद हंसती भी जा रही है। पैर जब हवा में होते हैं तो वह अपना सिर पीछे की तरफ बहने देती है। ऐसा लग रहा है मानो सफेद झरना।
सलिल ने झांक कर उसकी शक्ल देखने की कोशिश की। एकबारगी तो लगा, चेहरा देखने के चक्कर में वह कहीं खिड़की से नीचे गिर ही ना जाए।
फौरन बोतल नीचे रख, जैकेट पहन वह कमरे से बाहर निकल आया। लॉन में सलिल के पापा मिल गए। दो मिनट उनसे हाय-हैलो क्या की, लड़की झूले से उतर पता नहीं कहां चली गई। सलिल देर तक इधर-उधर देखता रहा, सफेद शरारे वाली को ढूंढ़ता रहा।
अब लॉन में ठंड उतरने लगी थी। जगह-जगह अलाव जल गए। बैरा गर्म चाय और स्नेक्स सर्व करने लगे। हाथ में मसाला चाय का कुल्हड़ ले कर वह हवेली की पिछली तरफ चलने लगा।
और वह नज़र आ गई…
पोखर के पास। खिले हुए कमलों को निहारती हुई। सलिल ठिठक गया। वह कोई कमसिन लड़की नहीं थी। छरहरी देह थी, पर चेहरा थोड़ा भरा हुआ था। घुंघराले बालों को उसने अब जूड़ा सा बना पिन खोस लिया था। आंखों में भर-भर काजल। हाथों में छलकती चूड़ियां।
सलिल पर नज़र पड़ते ही वह चहक कर बोली, ‘अरे, आपको कहां से मिल गई चाय? कितनी देर से तलब लगी है।’
सलिल ने बाएं हाथ को हिलाते हुए इशारे से कहा, लॉन में। फिर पूछ बैठा, ‘मैं ले आऊं?’
‘जी, अगर दिक्कत न हो …’
सलिल अपना कुल्हड़ किनारे पर एक पत्थर पर रख कर मिनट भर बाद दोनों हाथों में कुल्हड़ में गर्म चाय ले कर लौटा।
सलिल के हाथ से लपक कर कुल्हड़ ले लिया मोहतरमा ने। लंबा घूंट भरने के बाद सांस लेती हुई बोली, ‘शुक्रिया जनाब।’
सलिल सिर हिलाते हुए सामने पत्थर पर टेक लगा कर खड़ा हो गया, ‘आप यहां की नहीं लगतीं…’
वह हंसी। खुल कर। इस समय उसकी बिल्लौरी कजरारी आंखें हीरे सी चमक रही थीं। उसने सिर हिलाते हुए कहा, ‘हां, क्या करूं? अपना वजूद छिपा ही नहीं पाती। जनाब, वैसे तो मैं पाकिस्तान से हूं। पर मुद्दतों हो गए, वहां गए। अर्से से उज़बेकिस्तान में रहती हूं।’
वह ठठा कर हंस पड़ी, ‘अजीब है ना? और एक अजीब शय है। मेरा नाम शायरा है, पर शायरी से दूर-दूर तक वास्ता नहीं…’
कोई तो बात थी उसकी आवाज़ में। अलग थी, नशीली सी, कहीं दूर से आती हुई।
सलिल ने धीरे से, गौर से, प्यार से उसकी तरफ देखते हुए पूछा, ‘आप यहां किसकी तरफ से आई हैं?’
शायरा मुस्कराई। रुक कर बोली, ‘एक दास्तां है यहां आने की। न मैं ब्राइड की तरफ से हूं, न ग्रूम की तरफ से। मैं चंद दिनों पहले इंडिया आई थी। दिल्ली में जानने वाले थे, वहां रुकी थी। उनके यहां एक जलसे में शौकत से मिली, जब उसने कहा कि वह वेडिंग प्लानर का काम करता है, तो मुझे जरा सी भी दिलचस्पी न हुई।
पर उसने जब जोड़ा कि चंद दिनों बाद वह राजस्थान जा रहा है एक डेस्टिनेशन वेडिंग के लिए, तब मैं उछल पड़ी। मैं इंडिया कुछ तलाशने आई हूं। मेरे फोरफादर्स राजस्थान गुजरात से सटे एक गांव चमेलीगढ में रहते थे। बचपन से अब्बा और अम्मी की जुबां से कई दास्ताने सुनी हैं। एक बार देखना चाहती हूं, उनकी जमीं। सुना है यहां से कोई तीन-चार घंटे का सफर है। बस वहां जाने के लालच में शौकत की टीम का एक मेंबरान बन कर साथ आ गई।…’
सलिल ने सिर हिलाया, ‘तो आप कब तशरीफ ले जा रही हैं चमेलीगढ़…’
‘कल…’ वह फुसफुसाई।
‘लेकिन कल तो शादी है ना…’
‘हां, है तो। पर आपसे कहा ना, तीन-चार घंटे का सफर है। शाम तक लौट आऊंगी। शौकत गाड़ी का इंतेजाम किए दे रहे हैं… ड्राइवर हमें सुल्तानपुर तक ले जाएगा, वहां से पूछ लेंगे किसी से…’
‘आप अकेली जाएंगी?’
‘जी, जनाब। इरादा तो यही है…’
सलिल उठा, उसके साथ शायरा भी उठ गई। लंबी थी, सलिल से भी दो-तीन इंच। सलिल के साथ चलते हुए वह लॉन में आ गई। दोनों वहां करीने से सजी कुर्सियों पर बैठ गए। गीत-संगीत का दौर शुरू हो चुका था। खाना-पीना। कुछ देर बाद जब शराब का दौर आया, तो सलिल ने हलके से पूछा, ‘आप कुछ लेंगी?’
वह मुस्कराई, ‘जी, वाइन पिला दें तो रूह को करार आ जाए…’
सलिल उठ कर बार काउंटर से दो लार्ज वाइन के गिलास उठा लाया। चियर्स के बाद शायरा ने गिलास उठाया और एक सांस में खाली कर गई।
आंखें लाल, गर्म चेहरा, थरथराती उंगलियां। वो हंसी और बोली, ‘क्या करूं, आदत है मेरी। रोक नहीं पाती। आप भी सोच रहे होंगे कि किस किस्म की अफलातून खातून से पाला पड़ा है…’
सलिल हंसने लगा, ‘सही कह रही हैं आप। अफलातून तो नहीं, हां दिलचस्प ज़रूर हैं। सच कहूं तो कुछ देर पहले तक मैं यह सोच रहा था कि मैं यहां क्यों चला आया। वैसे मैं रोमेश का बचपन का दोस्त हूं। सालों पहले वादा किया था, उसकी शादी में ज़रूर आऊंगा।’
‘ये तो आपने सही किया…दोस्तों के निकाह में तो शामिल होना तो फर्ज बनता है।’
सलिल ने अचानक कहा, ‘कल मैं भी चलूं आपके साथ?’
‘अरे, आप तो ठीक से मुझे जानते भी नहीं… साथ चलने की फरमाइश कर रहे हैं?’ वह ठहाका लगा कर हंसी।
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