एपिसोड 1
दस अनोखी लोककथाएं, भारत भूमि के कोनों से निकली और फैली कथाओं का संग्रह है। इसमे साहित्य भी उतना है जितनी संस्कृति; दैवीय भी उतना जितना मानवीय। सभी कथाओं से हम क्षेत्रीय इतिहास और उसके विकास की संजीवनी को जान सकते हैं। इस संग्रह में देश की हर कोने की खुशबू ,उनकी किवंदतियों से आपका राबता होगा।
अनुक्रम-
देवता और असुर : मणिपुरी लोक-कथा
खूंटे में मोर दाल है: बिहार की लोक-कथा
सोहनी-महीवाल: पंजाब की लोक-कथा
मुफ़्त ही मुफ़्त: गुजराती लोक-कथा
अय्यप्पन का अवतार: केरल की लोक-कथा
फूलों की घाटी: उत्तराखंड की लोक-कथा
शेखचिल्ली और कुएं की परियां: उत्तर प्रदेश की लोक-कथा
कालहस्ती मंदिर की कथा: आंध्र प्रदेश की लोक कथा
बारिश हुई मोर बना : असमिया लोक-कथा
आर्किड के फूल: अरुणाचल प्रदेश की लोक-कथा
असोर ने उत्तर दिया, “तुम लोग मनुष्यों को मूर्ख बनाते हो इसलिए मैं आग जलाना बंद नहीं करूँगा। तुम लोग चाहे जो करो।” असोर के उत्तर से नाराज होकर सभी देवता ऊपर उड़ गए। तब से आकाश और स्वर्ग धरती से बहुत दूर हो गए।
1. देवता और असुर : मणिपुरी लोक-कथा
प्राचीन काल की बात है। उस समय आकाश बहुत नीचे था, इतना नीचे कि स्वर्ग के देवता और पृथ्वी के मनुष्य आपस में बातचीत कर लेते थे। देवों और मनुष्यों में विवाह-संबंध भी होते थे। उसी काल में असोर नाम का एक व्यक्ति था। वह देवों के सेवक की पुत्री से प्यार करता था, इस कारण सभी देव उसकी हंसी उड़ाते थे।
एक दिन असोर ने देव-पुत्रों से पूछा कि आज गर्मी होगी या वर्षा? देव-पुत्रों ने कहा कि आज गर्मी पड़ेगी। यह सुनकर वह अपने खेत पर काम करने चला गया लेकिन गर्मी के बजाय बहुत तेज बारिश हुई। असोर को बुरा लगा, तब भी वह देव-पुत्रों से कुछ नहीं बोला। उसने दूसरे दिन फिर मौसम के बारे में पूछा। देव-पुत्रों ने बताया कि आज वर्षा होगी। असोर उन पर विश्वास करके खेत पर चला गया किंतु उस दिन बहुत तेज गर्मी पड़ी। अब असोर समझ गया कि देव-पुत्र उसे मूर्ख बना रहे हैं। वह बहुत क्रोधित हुआ और बदला लेने का विचार करने लगा।
एक दिन जब कड़ी धूप पड़ रही थी, असोर ने घास-फूस इकट्ठा करके आग जलानी शुरू कर दी। इससे ऊपर रहने वाले देव परेशान हो गए। वे असोर से बोले, “तुम आग मत जलाओ। हम लोग धुएं और गर्मी से मरे जा रहे हैं।”
असोर ने उत्तर दिया, “तुम लोग मनुष्यों को मूर्ख बनाते हो इसलिए मैं आग जलाना बंद नहीं करूँगा। तुम लोग चाहे जो करो।” असोर के उत्तर से नाराज होकर सभी देवता ऊपर उड़ गए। तब से आकाश और स्वर्ग धरती से बहुत दूर हो गए।
नाराज देवताओं ने कई वर्ष तक पृथ्वी पर पानी नहीं बरसाया। इससे असोर का बुरा हाल हो गया। एक दिन उसके यहाँ खाना पकाने तक के लिए पानी नहीं था। वह दूर-दूर तक पानी की खोज में गया। किंतु सभी नदी-नाले और तालाब सूख गए थे। वह निराश होकर घर की ओर लोटने लगा। तभी उसने देखा कि उसके मुर्गे के पंख पानी से भीगे हुए हैं। अगले दिन वह छिपकर मुर्गे के पीछे गया। मुर्गा एक तालाब पर पहुँचा और नहाने लगा। असोर यह देख कर बहुत खुश हुआ। उसने पानी भरा और घर आकर खाना बनाया। अब वह प्रतिदिन ऐसा ही करने लगा।
यह सूचना देव-पुत्रियों को मिल गई। उन्होंने उस तालाब के चारों ओर जाल लगा दिया। अगले दिन जब असोर पानी भरने पहुँचा तो जाल में फँस गया। देव-पुत्रियों ने उसे स्वर्ग में खींच लिया। वे उसे देवताओं के राजा के पास ले गईं। राजा ने देखा कि असोर बहुत कमजोर हो गया है, अतः उसने आदेश दिया कि उसे अच्छी-अच्छी चीजें खिलाई जाएँ। असोर को अच्छा भोजन मिलने लगा। वह जल्दी ही हृष्ट-पुष्ट हो गया।
थोड़े दिनों बाद उहोंबा नामक त्योहार आया। स्वर्ग के सभी लोग लकड़ियाँ काटने जंगल चले गए। असोर वहीं रह गया । जब उसका मन नहीं लगा तो वह घूमने निकल पड़ा। वह एक बुढ़िया के घर पहुँचा। बुढ़िया ने उससे पूछा, “बेटा, तुम कौन हो?”
असोर ने उत्तर दिया कि वह धरती का रहने वाला है और उसे देव-पुत्रियों ने स्वर्ग में खींच लिया है । बुढ़िया समझ गई कि उसकी जान की खैर नहीं है क्योंकि उहोंबा के दिन उसकी बलि दे दी जाएगी। उसे असोर पर बहुत दया आई। वह बोली, “बेटा, कल तुम्हारी बलि दे दी जाएगी। देवता लोग तुमसे एक गड्ढा खोदने को कहेंगे। तुम्हें उसी में मार दिया जाएगा। यदि तुम बचना चाहते हो तो दो गड्ढा खोदना। उसके बाद जब देवता लोग तुमसे गड्ढे में जाने के लिए कहें तो तुम उनसे आटा, एक नली तथा एक हैज्राँ (चाकू) माँगना। गड्ढे के अंदर घुसकर दूसरे छिपने वाले गड्ढे में चले जाना और नली से आटा फूँक देना। देवता लोग समझ लेंगे कि तुम मर गए हो। इस प्रकार तुम बच जाओगे।”
असोर ने बुढ़िया से कहा, 'हे माँ, मैं तुम्हारा यह उपकार कभी नहीं भूलूंगा।” इसके बाद वह लौट गया। अगले दिन जब देवताओं ने उसे गड्ढा खोदने के लिए कहा तो उसने बुढ़िया के कहे अनुसार दो गड्ढे खोदे। फिर जब उसे गड्ढे में उतरने के लिए कहा गया,तब उसने ठीक वैसा ही किया जैसा कि बुढ़िया ने बताया था। नली से आटा फूँक दिए जाने के कारण देवताओं ने उसे मृत समझ लिया और सभी देवता अपने-अपने घर लौट आए।
इधर असोर रात के समय गड्ढे से बाहर निकल आया। वह सीधा बुढ़िया के घर पहुंचा। बुढ़िया उसे देखकर बहुत प्रसन्न हुई। असोर को बुढ़िया के घर ही अपनी प्रेमिका मिल गई। दोनों प्रेमी-प्रेमिका खुश हो गए।
इसके बाद असोर अपनी प्रेमिका के साथ पृथ्वी पर लौट आने का उपाय सोचने लगा। उसने पक्षियों को अपने पास बुलाया और कहा, “तुम लोग हम दोनों को पृथ्वी पर पहुँचा दो। वहाँ मैं अपने खेत में बीज बोऊंगा। जब फसल पकेगी तो सबसे पहले तुम्हीं को खाने दूंगा।”
पक्षी तैयार हो गए। वे असोर और उसकी प्रेमिका को पंखों पर बैठा कर पृथ्वी तक ले आए। जब असोर के खेत में फसल पकी तो सबसे पहले उन्हीं पक्षियों ने खाई। तभी से आज तक फसल का दाना सबसे पहले पक्षी ही चुगते हैं।
असोर जीवन-भर अपनी प्रेमिका के साथ सुखपूर्वक रहा।
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कमेंट (17)
- Pravin Kalar
nice story
0 likes - Abhishek Tiwari
पौराणिक कहानियां कितनी प्यारी होती है..आप कई दिनों तक पढ़ते रह सकते हैं.. और हमेशा किसी ऐसी बात से जुड़ी हुई जो अब भी हमारी संस्कृति पर विद्यमान है जैसे फसल का पहला हिस्सा पक्षियों के लिए
0 likes - Vijay Singh
nice story
0 likes - Om Kanwar
अच्छी जानकारी
0 likes - Sunil Kumar
coin kaise milega
0 likes - anil makariya
इस लोककथा में असोर के प्रति देवताओं की नफ़रत और असोर का संघर्ष आकर्षित करता है।
0 likes - Pravin Kalar
सुंदर
0 likes - Jagdishchandra Khinchi
अच्छी
0 likes - Jagdishchandra Khinchi
बहुत अच्छी ।
0 likes - Yashpal Vedji
बहुत ही सुन्दर
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