एपिसोड 1
मैंने नीलू की हत्या उसकी बेहोशी की हालत में ही कर दी होती। मैंने अपने आप को रोका। मुझे उसकी हत्या से पहले अपने कुछ सवालों के जवाब चाहिए थे।
हत्या का ख़याल
यह नीलू की क़िस्मत का और मेरा मिला-जुला फ़ैसला था कि उसकी दुहरी हत्या होनी चाहिए। नीलू की शारीरिक हत्या का दिन होने का नेक मौका मैंने रविवार को दिया था पर उस रविवार की सुबह मेरी नींद ऐसे खुली जैसे किसी फांसी की सज़ा पाए मुजरिम की खुलती है।
एकदम अचानक और डरे हुए इंसान की तरह। दरअसल सिर्फ मेरे ही देश में यह सम्भव था, जहाँ किसी धोखे़बाज़ इंसान के क़त्ल को सचमुच का अपराध माना जाता है पर मैं अपने आप से परिचित हूँ और मुझे पता था कि नीलू कैसी है।
अब जब प्रेम और जीवन नष्ट हो चुका है, तब लगता है, नीलू नर्क की छत से फिसल कर मेरे जीवन में आ गिरी थी। नीलू, जिसने मेरा टूटना और टूटकर बिखरना नहीं देखा। फूल के बिखरने को लोग अक्सर कम देखते हैं पर नीलू ‘लोग’ नहीं थी। नीलू का दर्जा इतना ऊँचा था कि मैं चाह कर भी उसकी हत्या कर नहीं पाता।
जिस लड़की के रक्त के बहाव तक को मैंने सुना था, उसकी हत्या तभी सम्भव थी, जब मैं उसके वजूद को मार सकूं। उसकी चारित्रिक हत्या में कुल सात दिन लगे थे। ज़माने की सारी लड़कियों में वह सिर्फ नीलू ही क्यों थी, जो मुझे इतना विचलित करती थी, यह मैं नहीं जानता। पर यह ज़रूर जानता था कि अपनी प्रेमिका से मिली ध्वस्त कर देने वाली पराजय मेरे मष्तिष्क में, मेरे पूरे वजूद में जंग लगे पिन की तरह चुभ रही थी। लगातार। लगातार कोई पहाड़ी सूनापन मेरे मन में घूमता रहता था। मेरे जीवन की आपदा में उसकी अमिट मुस्कराहट हर वक़्त मौजूद रहने लगी थी।
मैं पेशे से डॉक्टर था, पर मेरी तकलीफ़ मेरे लिए लाइलाज थी। रोना मेरा इलाज होता तो शायद कोई बात बनती। रोने के जितने तरीके मैंने ईजाद किए, सब नाकाफ़ी निकले। दूसरे, मेरी रुलाई का कोई गवाह नहीं था। उदासी के भीषण दौरे मुझे नींद से जगा देते थे।
मुझे उसकी हत्या का ख़याल उस बुरे दिन नहीं आया था, जब उसका वह सन्देश मेरे मोबाइल पर आया, ‘गौतम, मुझे मालूम है तुम नाराज़ होगे पर बेहतर यही होगा कि आगे से अपने बीच कुछ ना ही रहे तो अच्छा। एक-दूसरे से हम दोनों को ही परेशानी हो रही है। मैं तुम्हें ख़ुश नहीं कर सकती। नादान बच्चा समझ कर मुझे माफ़ कर देना।’
क्या कोई प्रेम सम्बन्ध ऐसे भी ख़त्म हो सकता है? हमारे बीच जो इलाही प्रेम था उसे ख़त्म करने की तमाम ना-ज़ाहिर कोशिशें उसने की थी, पर यह लिखित सन्देश हमारे बीच पहला था। इस सन्देश के बाद हमने असली लड़ाई लड़ी। नागपुर और कलकत्ते के बीच कहीं मेरी रोटी खो गई थी। हमेशा-हमेशा के लिए।
नादान बच्चा! यही हमारे बीच के ख़ूबसूरत शब्द थे। नीलू की ही तरह अंतहीन ख़ूबसूरत शब्द। जीवन के सतत संघर्षों से हम दोनों ही जूझ रहे थे। सालोंसाल से हमारा अप्रतिम साथ लोगो की आँख की किरकिरी बना था। हम इनसे जूझते बड़ी चालाकी से थे और कहीं यह चालाकी हमारे जीवन का स्थाई भाव न बन जाए इसलिये हमने अपनी आत्मा को बचाए रखने की ख़ातिर आपसदारी में नादानियों का रास्ता चुना था।
एक-दूसरे को पता होते हुए भी हम आपस में तकलीफ़ की कोई बात साझा नहीं करते थे। जिस दिन घरवालों ने यह तय किया कि पढ़ने के लिए वह लखनऊ जाएगी, उस घातक दिन भी हम इसी बात पर लड़े थे- वह चोको बार आईसक्रीम क्यों नहीं खाती?
ज़माने से अलग जो हमारी आपस की तीखी लड़ाइयाँ थीं, उनसे हमें ख़ुद को तैयार करने में भारी मदद मिली थी। यही खू़बी हमें आठ अपरिपक्व वर्षों तक साथ रखे रही, पर साथ का यह जहाज़ अब डूब चुका था। आज मैं तमाम बहानों से उसके नए फ़्लैट तक गया और मेरी आंखों मे अपनी मृत्यु को साक्षात देख वह दरवाजे़ की तरफ़ भागी थी। अगर उसके पेट पर चढ़कर मैंने उसके हाथ बांध नही दिए होते तो शायद वह बाहर का दरवाज़ा खोलने मे कामयाब हो गई होती।
पर सिर्फ मेरी ही नहीं, उसकी भी क़िस्मत मेरे साथ थी और वह बंधे हाथों से दरवाज़ा खोलने का प्रयास कर ही रही थी, जब मैंने उस खड़ी स्त्री को पैरों से पकड़ कर सीधा संगमरमर के फ़र्श पर पटक दिया था। उसके गिरने से जो धमाके जैसी आवाज़ हुई, उससे मैंने जाना कि लोग कटे पेड़ के गिरने की तुलना क्यों करते हैं? उसका सिर कुचलने जैसा हो गया था। मुँह के बल गिरने से नाक की हड्डी टूट गई थी।
उसके होश में आने से पहले मैंने पूरा फ़्लैट छान मारा। जिस जगह मैं नितांत पहली बार आया था, वहाँ भी मेरी हज़ारहा यादें बिछी पड़ी थी। ईर्ष्या की याद, जिसने नीलू की हत्या के मेरे संकल्प को दृढ़ किया।
किताब को बीच से काट कर बनाया गया वह खोखल, जो जब वह हॉस्टल में थी, तब हमने काँडोम्स छुपाने के लिए तैयार किया था, अब वहाँ मेरे पसन्दीदा ब्रैंड की जगह किसी दूसरे ने ले ली थी। नीलू का दूसरा मोबाइल फ़ोन, जिसके बारे मे उसने मुझे कभी नहीं बताया। कभी नहीं का मतलब पिछले दो सालों से। मात्र! सुन्दर परंतु अनुपयोगी उपहारों की कतार।
मेरे गुस्से और जलन का पारावार तब नहीं रहा जब मैंने उसके नए फ़्लैट का वॉशरूम देखा। इस जगह पहुंचते ही उसके पुराने हॉस्टल के वॉशरूम तथा नागपुर वाले मेरे फ़्लैट के वॉशरूम की कुछ यादों ने गुच्छों में मुझ पर हमला कर दिया था। बिस्तर से अलग जहाँ कहीं भी मैं उसे चूमता था, वह अपना सारा वज़न मुझे सौंपने के बजाय पीछे किसी सहारे पर डाल देती थी। जैसे वॉशरूम में हुए तो नल पर। यह दरअसल नीलू का ख़ुद को खोलने का तरीका था, जिसे अब वह मेरे लिए नहीं, किन्हीं दूसरे लोगों पर आज़मा रही थी।
यह ख़याल इतना नीच था कि मैंने नीलू की हत्या उसकी बेहोशी की हालत में ही कर दी होती। मैंने अपने आप को रोका। मुझे उसकी हत्या से पहले अपने कुछ सवालों के जवाब चाहिए थे। उसे बताना था कि मैंने तुम्हें कभी माफ़ नहीं किया। धोखे़ की कोई माफ़ी नहीं। झूठईल प्रेम की कोई गौरव-गाथा नहीं थी।
उसकी बेहोशी जितनी लम्बी खिंचती जा रही थी, मेरे दिल-दिमाग़ पर ईर्ष्या की तकलीफ़ बादल की तरह छाती जा रही थी। अच्छा हुआ जो अनुराधा का फ़ोन आ गया। वह बता रही थी कि मेरे पीएफ़ वग़ैरह के काग़ज़ात आ गए हैं। अस्पताल में क्या-क्या नया चल रहा है, ऐसे जैसे एक हफ़्ते मे कितना कुछ बदल गया हो। अब मुझे पीएफ़ से क्या लेना-देना था, पर सच कहूँ तो वह बस मुझसे किसी ना किसी बहाने बात करते रहने के लिए बात कर रही थी। इधर वह मेरी एडमिनिस्ट्रेटिव बॉस बन चुकी थी और जीएफ़ के बाद मुझे पसन्द कर रही थी।
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कमेंट (19)
Geeta Malik
रोमांचक
0 likesArkaan Sayed
Very nice I loved it very muchh !!
0 likesJahnavi Sharma
awesome
0 likesVandana Singh
ये एक अपराधी के विचारो का वरण है।
0 likesVishaka V
good one good
0 likesNaveen Tiwari
शुरुवात अच्छी है
1 likesAvinash Vibhandik
Looking for Next
1 likesVj Singh likes
Manish Pandey 'Rudra' likes
Mp Sinha likes