एपिसोड 1
थोड़ा जल्दी पहुंच गया था तो सड़क पर टहलने लगा। अचानक मुझे यह फाटक दिखलाई दिया और मैं दंग रह गया कि शहर के एकदम बीच में क़ब्रिस्तान भी हो सकता है। मुझे लगता था मरने की जगह शहर से दूर होती होगी, लोग दूर जाकर मरते होंगे।
क़ब्रिस्तान
एम।
तुमने उसे एम नाम इसलिए नहीं दिया होगा कि उसकी पिंडलियों पर मृत्यु के हस्ताक्षर नीले अक्षरों में खुदे होंगे या कि वह तुम्हारे संग उस पहाड़ी कस्बे के उजाड़ कब्रिस्तान में खो जाने को मचल रही होगी और न इसलिए कि तुम्हें वह एक हालिया पढ़े उपन्यास की नायिका लगेगी।
तुमने उसे पहली बार सात मार्च को अपने शहर के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर रात की रोशनियों के बीच काली टी-शर्ट, काली स्कर्ट और काले बूट्स में चमकते देखा था, और अगले दिन पहाड़ की यात्रा पर निकल पड़े थे। उन दिनों धर्मशाला में कोई तिब्बती महोत्सव हो रहा था। तिब्बत के मसले पर अपना समर्थन ज़ाहिर करने दुनिया भर के लोग धर्मशाला आए थे।
एम एक अमरीकी दल की सदस्य थी, जो अपने बाक़ी साथियों के साथ न आ सकी थी, कुछ दिन देर से आयी थी। तुम्हारे किसी अमरीकी दोस्त ने तुमसे आग्रह किया था कि क्या तुम उसे दिल्ली हवाई अड्डे से लेकर धर्मशाला छोड़ सकते हो क्योंकि उसकी स्थिति अकेले यात्रा करने लायक़ नहीं है। तुम्हें इस आग्रह में अपने लिए एक उम्मीद दिखाई दी थी।
पिछले दो महीने से तुम पृथ्वी जितना भार अपनी देह और रूह पर लिए जी रहे थे। तुम्हारा शहर तुम्हें चूहेदानी नज़र आता था जिसमें तुम फंस चुके थे। तुम्हें लगा कि इसी बहाने तुम्हें इस शहर से दूर जाने का बहाना मिल जाएगा। लेकिन तुम्हें नहीं मालूम होगा कि उस पहाड़ी क़स्बे में पहुँच तुम्हारे भीतर अपना स्वान-सॉन्ग लिखने की इच्छा जन्म ले लेगी।
तुम मुझे फिर अकेला छोड़ चले गये।
मैं यहीं तो था एम।
तुम नहीं थे। तुम मुझे अकेला छोड़ जाने को मचल रहे हो।
कैमरा गले में टांगे एम कब्रों के बीच उतरती आएगी। ठंडी हवा से बेपरवाह उसके काले ओवरकोट के बटन खुले रहेंगे, ओवरकोट पर्दे की तरह हिलता रहेगा। वह तुम्हारे नजदीक आ बैठ जायेगी। बैग खोल पानी की बोतल निकालेगी। उसकी गरदन पर लता की तरह उभरी हरी नसें नीचे उतरती धार से फूलती जायेंगी। तुम्हें लगेगा अगर नसें फट गयीं तो पानी गरदन की चमड़ी को चीरता बाहर आ जाएगा।
नौ मार्च की उस दोपहर पहाड़ी ढलान पर बिखरी कब्रों के परे गहरी खाई होगी — देवदार और बन के पेड़ों के बीच दुबकी हुई। सफेद पंख फड़फड़ाते फाख्ता ऊपर मंडराते रहेंगे। एम नीचे तलक चलती जाएगी। उसे शायद नहीं मालूम होगा कि आगे खाई है। पीछे किसी क़ब्र के सिरहाने बैठे तुम चाहोगे कि चिल्ला कर कहो — आगे मत जाओ।
लेकिन तुम उसकी काली स्कर्ट के नीचे चमकती पिंडलियों पर मृत्यु के निशान धुंधले होते देखते रहोगे। वह इस पहाड़ी ठंड में भी स्कर्ट पहना करेगी। तुम्हें लगेगा जब वह एकदम गिरने वाली होगी तुम दौड़ कर उसे बचा लोगे या दौड़ते हुए उसके साथ ख़ुद भी खाई में गिर जाओगे और अगले दिन यहॉं एक क़ब्र तुम दोनों की भी होगी।
लेकिन कगार से ठीक पहले एम रुक जाया करेगी, पीछे मुड़ेगी तुम कहीं दिखलाई नहीं दोगे। सिर्फ़ सेमल के हिलते लाल फूल, पुरानी स्लेटी कब्रें और घास पर रेंगते कीड़े। उसके सफेद चेहरे पर सुन्न-सा सूनापन उमड़ने लगेगा। वह किसी चट्टान पर पत्थर से आकृतियॉं बनाने लगेगी और कुछ देर बाद अपने बैग से नोटबुक निकाल उस पर पेंसिल से लकीरें काढ़ने लगेगी। तुम्हें लगेगा कि वह जंगल में खो चुकी कोई छोटी बच्ची है जो बाहर निकलने का रास्ता बना रही है।
तुम इस पहाड़ी कस्बे में पहले भी आ चुके हो, पिछले साल और उससे दो साल पहले। कई दोपहर तुमने इस क़ब्रिस्तान में बिताई हैं। इन कब्रों पर डेढ़ सौ साल से भी पुरानी तारीखें खुदी हैं। क़ब्रिस्तान से सटी एक उजाड़ सड़क है जिसका एक सिरा कस्बे की ओर जाता है, दूसरा एक सूनी झील पर खत्म होता है। सड़क से परे पहाड़ी जंगल और देवदार और सेमल के पेड़। पिछली सर्दियों की एक रात तुम जंगली जानवरों से डरे बगैर इन क़ब्रों के बीच इस आस में सोते-जागते रहे थे कि कोई मुर्दा उठकर तुमसे बात करने लगेगा तुम्हें अपनी असमय मृत्यु की कथा सुनायेगा।
एक क़ब्रिस्तान तुम्हारे शहर में भी है, जहाँ तुम एम को ले गये थे। पिछले अक्टूबर में। एक भीड़-भरी सड़क के बायीं ओर अचानक एक फाटक आ जाता था, जिसके संकरे दरवाजे से सिर झुका अंदर जाकर कब्रों की कतार शुरु होती थीं। बाहर गाड़ियों के हॉर्न थे लेकिन अंदर सन्नाटा। पहाड़ी क़ब्रिस्तान में क़ब्र आकाश के नीचे बेतरतीब बिखरी थीं, यहां लोहे के फाटक के परे पत्थरों की निखरी हुई पंक्तियाँ थीं।
‘मैं इस शहर में बचपन से हूँ, इस सड़क से हजारों बार गुजरी हूँ। मुझे नहीं मालूम था यहां कोई कब्रिस्तान भी है।’
‘कुछ साल पहले जब मैं इस शहर में नया आया था, सामने फ़्रेंच सेंटर में फिल्म देखने गया था। मैं थोड़ा जल्दी पहुंच गया था तो सड़क पर टहलने लगा। अचानक मुझे यह फाटक दिखलाई दिया और मैं दंग रह गया कि शहर के एकदम बीच में क़ब्रिस्तान भी हो सकता है। मुझे लगता था मरने की जगह शहर से दूर होती होगी, लोग दूर जाकर मरते होंगे… तुम्हें एक चीज दिखाऊं?’
तुम एम के साथ कब्रों के बीच बनी संकरी पगडंडी पर चलते गये। क़ब्रों के बीच घास उगी थी। कई कब्रों के ऊपर पतवार सिमट आयी थी, उन पर लिखी इबारत दुबक गयी थी। तुम एक जगह जाकर रुक गये — ढेर सारी क़ब्रें जिन पर बाइबल की पंक्तियां खुदी थीं। तुम कुछ गिनती कर रहे थे।
‘क्या हुआ?’
'यहाँ एक क़ब्र थी…।’
‘किसी से पूछ लो?’
‘यहाँ कौन होगा?’
‘कोई चौकीदार… उसके पास हिसाब होगा कौन कहॉं है।’
लेकिन तुम ख़ुद ही ढूंढते रहे थे, जो कुछ देर बाद तुम्हें मिल गयी थी। गेंदे के पीले फूलों के बीच एक मॉडल सोयी थी जिसके माथे पर किसी ने सिर्फ़ इसलिये गोली मार दी थी कि उसने बार बंद हो जाने के बाद शराब देने से मना कर दिया था।
चमकते काले संगमरमर के ऊपर एक लाल कारनेशियन रखा था, जो भले हफ्ता-भर पुराना था, उसकी पंखुड़ियॉं कुम्हलाई नहीं थी। तुम बचपन में सोचते थे कि अगर किसी को देने से पहले फूलों को देर तक देखा जाये तो वे कई दिनों तक ताजे रहे आते हैं।
उस रात अपने घर लौट एम डायरी में लिखेगी —
‘आज हम देर तक उस सुनसान में घूमते रहे। वह मुझे क़ब्रें दिखाता रहा, उनकी कथाएँ सुनाता रहा…लम्बी क़तारों में चुपचाप सोते लोग। कुछ देर बाद हमें प्यास लगी, हम फाटक के पास बैठे बूढ़े चौकीदार के पास गये और उसने कब्रों के बीच लगे हैंडपंप की ओर इशारा कर दिया। उसने चौकीदार से पूछा कि यह क़ब्रिस्तान तो लगभग भर चुका है नये मुर्दे अब कहां आते होंगे।
चौकीदार ने कहा इस शहर के क़ब्रिस्तानों में अब बहुत कम जगह बची है, उनकी एडवांस बुकिंग चलती है लोग अब नज़दीक के शहरों में अपने मुर्दों को दफनाने ले जाते हैं। फिर उसने कहा कि वह अपनी बुकिंग करवाना चाहता है तो चौकीदार हॅंसने लगा कि इतनी कम उम्र वाले की बुकिंग थोड़े होती है, वो तो अंतिम समय पर आ पहुंचे किसी इंसान की जगह ही आरक्षित की जाती है।
उसने ज़िद की कि मृत्यु का कोई भरोसा नहीं अगर उसकी क़ब्र आरक्षित हो जाएगी तो उसे मौत का डर नहीं होगा कि वह आज मर भी गया तो उसका कोई घर तो होगा।
बूढ़े चौकीदार को लगा शायद वह मौत से डरा हुआ कोई लड़का है या उसे कोई लाइलाज रोग है और जब चौकीदार ने उसकी चर्च के बारे में पूछा तो उसने झूठ बोल दिया डायोसीज चर्च जबकि वह ईसाई है ही नहीं फिर चौकीदार ने उसे सुझाया कि वह क़ब्रिस्तान की कमेटी वालों से या अपनी चर्च के अधिकारियों से बात कर ले तो शायद लाइलाज रोग के आधार पर वे उसकी जगह आरक्षित कर दें उसने बूढ़े को शुक्रिया कहा और हम पानी पीने चले गये…।
’कुछ दिन बाद तुमने एम को इस पहाड़ी कब्रिस्तान के बारे में बताया था। तभी तुम दोनों ने तय किया था इस पहाड़ी कस्बे में आओगे, इस उजाड़ कब्रिस्तान में रातों में तब्दील होती दोपहरियॉं बिताओगे...कहॉं मालूम था तुम्हें कि तुम बहुत जल्द इन सूनी कब्रों के बीच होगे लेकिन तुम्हारे साथ एम नहीं होगी, और तुम चुप उसकी पिंडलियों पर चमकते मृत्यु के हस्ताक्षर देखते रहोगे। इर्द-गिर्द बिखरी चट्टानों के बीच बीयर की एक ख़ाली बोतल पड़ी रहेगी।
अगले एपिसोड के लिए कॉइन कलेक्ट करें और पढ़ना जारी रखें
कमेंट (2)
- C Priyadarshini
बहुत सुंदर भाषा शिल्प। अमरिकी पात्र एम के चित्रण में और रिसर्च किया जा सकता था।
0 likes - Shaili A
samajhne ki koshish
1 likes