एपिसोड 1
कार में डायना क्रॉल का गीत ‘द लुक ऑफ़ लव’ बज रहा था। वह उसके साथ सुर से सुर मिलाकर गा रही थी। गाते समय उसकी आँखें बंद हो जाती थीं। ऐसे मौक़ों पर वह किसी तरह अपने शरीर का कोई हिस्सा मेरे शरीर से सटा देती थी।
कहती, “प्यार एक करंट है, छूने से पास होता है— एक से दूसरे शरीर में, एक से दूसरी आत्मा में बहता है। मैं बिना छुए तुमसे प्यार नहीं कर सकती।”...
द लुक ऑफ़ लव
मेरा नाम डामर है। और मेरी उम्र 30 बरस है। मेरा यह नाम पहले नहीं था। एक दिन, कुछ ऐसा घटित हुआ कि मैंने अपने जीवन की सबसे अनमोल चीज़ खो दी। उसके बाद, मेरी ज़िंदगी ऐसी बदली कि बदलती चली गई, जैसे ढलान पर गेंद लुढ़कती जाती है। मैं चाहकर भी ज़िंदगी की गेंद को नहीं रोक पाया।
वह दिन— वह मनहूस दिन— मेरे जीवन का सबसे बुरा दिन— मैं उसे आज तक नहीं भूल पाया। और शायद मरने के बाद भी नहीं भूल पाऊँगा। घड़ी और कैलेंडरों में वह दिन बीत गया है, लेकिन मेरे लिए गुज़र नहीं पाया है।
मैं अपनी कहानी की शुरुआत उसी मनहूस दिन से करता हूँ, जब मैंने ईश्वर के भेजे सबसे सुंदर उपहार को अपनी आँखों के सामने खो दिया।
वह मेरी ग़लती नहीं थी, लेकिन इस बात से क्या फ़र्क़ पड़ता है? कोई ज़रूरी नहीं कि हम अपनी ही ग़लतियों से मारे जाएँ, जीवन में कई बार हम दूसरों की ग़लतियों की सज़ा भुगतते हैं। और सड़क पर गाड़ी चलाते समय तो यह बात बेहतर तरीक़े से समझ आती है।
मैं हमेशा की तरह चालीस-पचास की स्पीड पर था। मेरी हमउम्र, मेरी नूर-ए-नज़र, मेरी लख़्त-ए-जिगर, मेरी जान और मेरी ज़िंदगी के आसमान का चाँद- मंदिरा मेरी बग़ल में बैठी थी। कार में डायना क्रॉल का गीत ‘द लुक ऑफ़ लव’ बज रहा था। वह उसके साथ सुर से सुर मिलाकर गा रही थी। गाते समय उसकी आँखें बंद हो जाती थीं। ऐसे मौक़ों पर वह किसी तरह अपने शरीर का कोई हिस्सा मेरे शरीर से सटा देती थी।
कहती, “प्यार एक करंट है, छूने से पास होता है— एक से दूसरे शरीर में, एक से दूसरी आत्मा में बहता है। मैं बिना छुए तुमसे प्यार नहीं कर सकती।”
उसके छूने में जाने ऐसा क्या था कि मैं हर बार उसके प्यार के करंट को अपने पूरे वजूद से गुज़रता महसूस करता था। जिस्म का रेशा-रेशा ज़िंदा होने के एहसास से धड़क उठता था।
उस रोज़ भी, उसने मुझे छुआ। मेरे पूरे शरीर में कँपकँपी की लहर दौड़ गई। मुझे कँपित देख वह ज़ोर से हँसी, ऐसे खिलखिलाते हुए, जैसे सुपर्ण पक्षी उन्मुक्त होकर अपने पंख फड़फड़ाता है। मैंने सिर घुमाकर उसे हँसते हुए देखा— कायनात की सबसे हसीन हँसी!
और ठीक तभी, सामने से आ रही ट्रक ने अपना संतुलन खो दिया।
मैं दूर से उसे आता देख रहा था। वह सड़क पर किसी भी आम ट्रक की तरह शराफ़त से चल रहा था। उसे देखकर आप ऐसी कोई आशंका नहीं कर सकते कि सीधी राह चलते-चलते यह अचानक लहराएगा, सामने से आ रही एक कार को ठोंक देगा और उसके बाद इस तरह निकल जाएगा, मानो कुछ हुआ ही नहीं।
लेकिन उस बदतमीज़ ट्रक ने यही किया। अचानक लहराया, मेरी कार की दाहिनी हेडलाइट वाले किनारे से टकराया। घड़ाम की भयानक आवाज़ हुई। मेरी कार पहले मुड़ी, फिर पलटी, फिर गुलाटी मारकर सड़क पार पेड़ से जा टकराई। इतनी देर में मुझे कहाँ-कहाँ चोट लग गई, पता भी नहीं चला।
बस, इतना याद है कि उस एक क्षण, मैंने मंदिरा की ओर देखा था। उसका सिर फट गया था, जिससे बहते ख़ून के कारण उसका चेहरा लाल हो गया था। उस समय भी, वह बायाँ हाथ बढ़ाकर मुझे छूने की कोशिश कर रही थी, जैसे प्यार का करंट पास करना चाहती हो।
मुझे नहीं पता था कि मैं उसे आख़िरी बार देख रहा हूँ, वरना मैं उसे जी-भर देखता, होशो-हवास-भर देखता, लेकिन ठीक उसी क्षण, मेरी आँखें मुँद गईं और मेरी गरदन लुढ़क गई।
जब होश आया, तो मैंने पाया, मैंने मंदिरा को सदा-सदा के लिए खो दिया है। मुझे अपने बचे रहने पर गहरा एतराज़ और भारी हैरानी थी। मुझे पता भी नहीं था, मेरे बदन की जाने कौन-कौन सी हड्डियां टूट गई थीं, जाने कहाँ-कहाँ चोट आई थी।
जाने कितना दर्द हो रहा था, लेकिन मेरा असली दर्द तो मंदिरा का जाना था। उसके सामने सारे दर्द छोटे थे। मैं अस्पताल के बेड पर किसी ज़िंदा लाश की तरह पड़ा हुआ था— अपने बचे रह जाने के अफ़सोस में डूबता हुआ।
यह मेरे दुर्भाग्य का चरम था कि मुझे पता भी नहीं चला, किस घड़ी डॉक्टरों ने मंदिरा को मृत घोषित किया, किस घड़ी उसका अंतिम संस्कार हुआ, किस तरह उसे इस दुनिया से विदा किया गया।
मैं उसकी ज़िंदगी में शामिल था और मौत में भी, लेकिन उसके अंतिम वक़्त में, उसे अंतिम बार नहीं देख पाया। उस दिन मुझे यह बात शिद्दत से महसूस हुई कि ज़िंदगी का अंतिम पल, बता कर नहीं आता।
हम सबसे ज़्यादा इसी बात से डरते हैं – एक अप्रत्याशित अंत! जिसके बारे में हमें पहले से पता ही न हो। जैसे अपनी पत्नी के साथ ड्राइव करते हुए आप सुनहरे भविष्य की योजनाएँ बना रहे हों, और ठीक उसी समय मौत आ जाए। ईश्वर करे कि ऐसा किसी के साथ न हो।
मौत आए, तो कम से कम सजने-सँवरने, अच्छे कपड़े पहनने और अलविदा का आख़िरी चुम्बन दर्ज करने की मोहलत ज़रूर दे।
मैं रोया, चीखा, चिल्लाया, अस्पताल के उस कमरे को मैंने सिर पर उठा लिया। मैं हर तरीक़े से, मृत्यु के देवता के विरुद्ध अपना प्रतिरोध दर्ज कराना चाहता था। डॉक्टरों ने मुझे नींद का इन्जेक्शन लगा दिया। मंदिरा की मृत्यु से दुखी मैं, मृत्यु जैसी ही एक गहरी नींद में सो गया।
जाने कितनी लम्बी नींद! जाने कितना समय गुज़र गया! इस बीच जाने क्या-क्या चीज़ें घटित हो गईं! जब मेरी आँख खुली, तो मैं सड़क पर बदहवास दौड़ रहा था। मेरी टूटी हुई हड्डियां जुड़ चुकी थीं, पुराने घाव भर गए थे, लेकिन मेरे गाल, पेट और सिर में नये तरह का दर्द हो रहा था। जैसे किसी ने मुझे पीटा हो।
दौड़ते-दौड़ते मैंने महसूस किया, मेरा बायाँ गाल सूजा हुआ था। वहाँ की त्वचा रह-रहकर झनझना रही थी। साँस लेने के लिए मैं एक पल को रुका, लेकिन पीछे से कुत्तों के भौंकने की आवाज़ तेज़ होने लगी। गाल और पेट को हाथों से दबाकर मैंने पलटकर देखा, तीन भयंकर जर्मन शेफर्ड दौड़कर मेरी ओर आ रहे थे।
अचानक, मुझे यह समझ में आया कि मैं ख़ुद से नहीं दौड़ रहा था, बल्कि मुझे इन कुत्तों ने दौड़ा रखा था। मैंने एक बार फिर अपने भीतर की पूरी हिम्मत जुटाई और ख़ुद को बचाने के लिए दौड़ लगा दी। अगर मैं इन कुत्तों के हाथ आ गया, तो ये मुझे चीर डालेंगे। मेरे शरीर के साथ-साथ दिमाग़ में भी कोलाहल दौड़ रहा था, लेकिन मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था।
कौन थे वे लोग, जिन्होंने मेरे पीछे कुत्ते लगा दिए थे? जिन्होंने मुझे इस तरह पीटा था? क्या मंदिरा की मौत का इन सबके साथ कोई रिश्ता था? क्या उसकी ज़िंदगी इनमें से किसी धागे से जुड़ी हुई थी? क्या अभी-अभी मेरी हत्या का प्रयास हुआ था?
कुत्ते मेरे क़रीब पहुँचने वाले थे, जबकि मेरी टाँगों ने जवाब देना शुरू कर दिया था। कोई चमत्कार ही मुझे बचा सकता था।
तभी सफ़ेद रंग की एक सिडान चींssss की आवाज़ के साथ मेरे ठीक सामने रुकी। मेरी घबराहट कई गुना बढ़ गई— शायद मेरे क़ातिलों ने मुझे फिर से पकड़ लिया है। मैं रुककर हाँफने लगा।
कार का दरवाज़ा खुला और अंदर से एक चिल्लाती हुई आवाज़ आई, “जल्दी घुसो। जल्दी।”
कुत्ते बिल्कुल मेरे पास पहुँच गए थे। या तो मैं कार में घुसता या ख़ुद को कुत्तों के हवाले कर देता। अंदर से दुबारा पुकार आई और मैं उछलकर कार के दरवाज़े में घुस गया। धप्प की आवाज़ के साथ दरवाज़ा बंद हुआ, ठीक उसी समय एक जर्मन शेफर्ड ने कार की खिड़की पर मुँह मारा। लेकिन एक पल को भी रुके बिना कार हवा से बातें करने लगी।
मैं बच गया था। यह किसी चमत्कार से कम नहीं था। जिस आदमी ने मुझे बचाया, वह मेरा फ़रिश्ता था।
मेरी ज़िंदगी एक बार फिर बदलने वाली थी।
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कमेंट (220)
- Ajay Singh
bahut hi dardnaak
1 likes - VIJAY BHATT
क्या कमेंट करूँ?? कुछ समझ नहीं आ रहा!
1 likes - anil gangal
सुंदर
2 likes - Anamika 2907
अकाट्य सत्य
2 likes - Vats Kartik
kisi ko.kho dena ka.asar aisa hota hai insaan jita to hai magar kami ki vaisakhi le kar...
1 likes - Vishal Mishra
साधारण पर अदभुत बात
0 likes - राम पंचाल भारतीय
जहाँ इनायत नज़रों की हो, वहाँ लफ़्ज़ों की नहीं है दरकार।
1 likes - Pushpa Malviya
very nice
0 likes - Pushpa Malviya
अप्रत्याशित अलविदा.....कितना दुखद होता है...
1 likes - Mariam Beevi
fantastic
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