एपिसोड 1
विजू सावंत बहुत देर तक जमीन पर पड़े पछताते रहे और उन्हें तब रोना आ गया, जब ख़ुद श्री. पुं. जोशी, एमएससी ने उन्हें उठाया और अपने घर के भीतर ले गए।
पार्ट-टाइम मुहब्बत
वह मई के महीने की चिपचिपी दोपहर थी, जब कई लोगों के एक साथ चिल्लाने से पैदा हुआ शोर, जाने किन रास्तों से, रातपाली कर सो रहे विजू सावंत के कानों में बड़े फूहड़़ तरीक़े से घुसा। वह हड़बड़़ाकर उठे। उन्होंने अनजाने लोगों को कोसते हुए कुछ प्रचलित सूक्तियां कहीं और बालकनी की तरफ बढ़े।
विजू सावंत, जिनकी छाती के भीतर एक कुआं बना हुआ था और जिसमें से बाल्टियों के टकराने और पानी के छलक जाने की आवाज़ आती थी, को इसीलिए रातपाली की नौकरी कभी पसंद नहीं रही। दिन में उनकी चारों लड़कियां किसी न किसी बात पर लड़ पड़तीं और उनकी नींद ख़राब होती।
चारों को एक ही वक़्त अख़बार पढऩे की सूझती और एकमात्र ‘लोकसत्ता’ पर वे टूट पड़तीं, एक ही वक़्त उन्हें फिल्म देखने का मन करता और वे घर में पड़ी तीन फिल्मों की कैसेटों की दौलत पर लड़ लेतीं। वे कोई फिल्म नहीं देख पाती थीं, क्योंकि उनके शोर से विजू सावंत की नींद टूट जाती और वे बिना किसी को डांटे-मारे कैसेटों या अख़बार को अपनी दादी की ओर से एक दिवाली की भेंट मिली आलमारी में बंद कर देते और चाभी तकिए के नीचे।
उनकी मां भी रातपाली की नौकरियों को गाली देती थीं। उनके पिता रातपाली करते थे और मां को रात अकेले घर में रहने पर बड़ा डर लगता था। मां सच कहती थीं या झूठ, कि एक बार एक चोर रात को उनके टीन के पतरे पर चढ़ गया और उसे तोड़ऩे की कोशिश करने लगा। उनके पिता अच्छा कमा लेते थे और वह दिवाली का वक़्त था।
घर में बोनस के रुपए पड़े थे और मां की जान सूख गई थी कि न केवल रुपए गए, बल्कि चोर उनकी जान भी ले लेगा। मां के मन में चोर का डर ऐसा बैठा कि उन्होंने पिताजी की वह नौकरी छुड़ा कर ही दम लिया। उसके बाद उनके पिताजी को ताउम्र कोई ढंग की नौकरी नहीं मिली और विजू सावंत को ताउम्र इस बात का मलाल रहा कि कोल्हापुर के इंजीनियरिंग कॉलेज में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में उनका दाख़िला सिर्फ़ इस कारण रुक गया कि उनके पिता सही समय पर पैसों का इंतज़ाम नहीं कर पाए।
सिर्फ़ 17 साल की उम्र में उस दिन विजू सावंत पहली बार शराब पीकर घर आए और अपने बाप के जिस अंग से वह पैदा हुए थे, वहां घूंसा मार दिया। (वह वाक़या बड़ा अजीब था, क्योंकि घूंसे अक्सर टारगेटेड मिसाइल की तरह चेहरे पर गिरा करते हैं। शायद विजू सावंत ने पेट का निशाना लिया हो और शराब ने निशानेबाज़ी का हुनर भुला दिया हो।) वैसे, शराब पीने की आदत उनमें, इस घटना के भी एक-दो साल पहले से आ गई थी और दसवीं की परीक्षाओं में एक परचा उन्होंने दो पैग मारकर ही दिया था।
इस वक़्त मार तमाम लोग उनकी बालकनी के सामने उलझे हुए थे। दूसरी मंज़िल से साफ़ दिख रहा था कि एक लड़का जमीन पर पड़ा है और उसकी छाती पर सवार दत्तू पाटील उसे दनादन घूंसे मारे जा रहा है। भीड़ में से कोई दत्तू पाटील को खींचने की कोशिश करता, तो दत्तू उसे ही एकाध जड़ देता।
दत्तू पाटील कॉलोनी का माना हुआ लड़ाका था और हफ्ते-दस दिन में ज़रूर किसी न किसी पर अपनी उंगलियों की खाज मिटा लिया करता। अगर कोई न मिले, तो वह अपने बेटों में से किसी को चुनता और इसी तरह सडक़ पर लिटाकर उसकी छाती की सवारी का आनंद लेता। उसका यह ओपन थिएटर इतना प्रभावोत्पादक होता कि दौड़ा कर पीटना कॉलोनी का एक संक्रामक उत्सवधर्मी कर्म बन गया था।
छह-एक महीने पहले उसने अपने छोटे बेटे बबल्या, जो उस वक़्त शायद 17 का था, को सरेआम नंगा करके बेल्ट से मारा था। बबल्या कॉलोनी में हीरो बना फिरता था और कुछ ख़ास क़िस्म की लड़कियां उससे नोट्स की अदला-बदली के बहाने लेटर लिया-दिया करती थीं। उन्होंने बबल्या को क़रीब सौ मीटर तक दौड़ाया था और श्री. पुं. जोशी, एमएससी के क्वार्टर के सामने चित कर दिया था।
फिर जबरन उसके कपड़े उतारे थे और बेल्ट से दे दनादन। उसी बीच विजू सावंत ने उसे रोका और उसकी बेल्ट छीन ली। उन्होंने उसे समझाने की कोशिश की कि इतना जवान लड़का, जो संभवत: अब बच्चा भी पैदा कर ले, उसे इस तरह सार्वजनिक रूप से अपमानित करना अच्छा नहीं है, तो दत्तू पाटील को इतना बुरा लगा कि उसने सावंत को धक्का मार कर गिरा दिया और बेल्ट छीनकर एक उन्हें ही लगा दी। बबल्या और दत्तू पाटील एक-दूसरे को गालियां देते ओझल हो गए, बबल्या आगे-आगे दौड़ता और दत्तू पाटील उसके पीछे-पीछे।
विजू सावंत बहुत देर तक जमीन पर पड़े पछताते रहे और उन्हें तब रोना आ गया, जब ख़ुद श्री. पुं. जोशी, एमएससी ने उन्हें उठाया और अपने घर के भीतर ले गए। बबल्या को छह महीने तक कॉलोनी में किसी ने नहीं देखा और मारे पछतावे के, विजू सावंत तीन दिन तक घर से बाहर नहीं निकल पाए। उनके घर पहुंचने से पहले ही सारा समाचार वहां पहुंच गया था और उन्होंने देखा कि उनकी पत्नी पार्वती और सबसे बड़ी बेटी नंदू तकिए में मुंह गाड़े रो रही थीं।
उन्हें फिर रोना आ गया, लेकिन उन्होंने उसे स्थगित रख अपनी बीवी और बच्चे को चुप कराया। उनकी बीवी ने रोते-रोते ही कहा कि बबल्या अच्छा लड़का था और उसके बाप को उसे ऐसे नहीं पीटना चाहिए था, तो उन्हें कुछ राहत महसूस हुई। बीवी ने उन्हें हौसला दिया कि वह सही थे और दत्तू पाटील तो है ही शैतान; सुनकर उनके दिल में मुस्कान लौटी, जो होंठों तक आने में शर्मिंदगी महसूस करती थी।
शाम को जब वह भीतर के कमरे में बैठकर ‘मार्मिक’ का ताज़ा अंक देख रहे थे, तो उनकी दूसरे नंबर की बेटी ने रहस्य उद्घाटित करते कहा कि आपके अपमान के कारण नहीं, बल्कि बबल्या की पिटाई के कारण नंदू रो रही थी, क्योंकि बबल्या और नंदू में “पार्ट टाइम मुहब्बत” चलती है।
यह जानकर विजू सावंत सन्न रह गए। बबल्या के पिटने पर बेटी के रोने को वह जोड़ नहीं पा रहे थे। बचपन से उनका गणित ख़राब था।
आज फिर दत्तू पाटील का दंगल चल रहा था और दूसरी मंज़िल की बालकनी में खड़े विजू सावंत को अपनी नींद ख़राब होने का हिंसक कोफ़्त हो रहा था। उन्होंने धारीदार कच्छे पर मलकर चश्मे का कांच साफ किया और देखा, दत्तू पाटील उस लड़के की छाती पर बैठा हांफ रहा था। लड़का चित पड़ा हुआ था, उसके माथे से ख़ून बह रहा था और उसकी आंखें ऐसे खुल-बंद रही थीं, मानो मौत आ रही हो, नहीं-नहीं, जा रही हो!
दत्तू पाटील शायद थक गया था, वह काफ़ी देर तक उसकी छाती पर बैठा रहा। फिर पस्त-सा उठा और हवा में मार करने वाली गालियां देने लगा। उसी तरह बड़बड़ाते हुए वह पार्क के पास वाली सडक़ पकड़ अपने घर की ओर चला गया। पिटा हुआ लड़का देर तक चित रहा। नीचे के फ्लोर पर रहने वाले दामू अण्णा के बेटे ने उस पर पानी छिड़का।
लोग अब उसके और नजदीक आ गए। उसकी आंखें खुलीं, वह दहशत में था, लोगों के हाथ की छोटी-सी हरकत पर भी वह आंखें इस तरह मींच लेता, मानो घूंसा पड़ने वाला हो। लोगों ने उसे उठाकर बिठाया, जानना चाहा कि माजरा क्या है और दत्तू पाटील को ख़ूब बुरा-भला कहा।
लड़का कांपती टांगों से उठा, एक-एक का चेहरा देखा, अपनी फटी हुई शर्ट समेटी, कमज़ोरी के कारण धप् से बैठ गया, जग के पानी से अपना ख़ून साफ़ करने लगा। फिर, कुछ लोगों के सहारे वह खड़ा हुआ और बिना पीछे देखे वहां से भागा। सरपट।
दौड़ते हुए वह चिल्ला रहा था, ‘दत्तू पाटील, तेरी मां का भो..., तेरे सामने तेरी बेटी की गां.. मारूंगा... तेरी मां की ... मारूंगा.....’
कुछ लोगों के चेहरे खुले के खुले रह गए और कुछ लोग ठठाकर हंस पड़़े।
रामचंद्र तिडक़े ने हंसते हुए ऊपर देखा और विजू सावंत से कहा, ‘काय हो सावंत साहेब। अकेले तुम्हीच बालकनी के दर्शक, हम लोग तो गरीब डीसी वाले...’
और खुलकर हंसा। जिस तरफ़ वह लड़का भागा था, उस तरफ़ इशारा करते हुए हंसा।
विजू सावंत ने उसे एक काल्पनिक क़िस्म की मुस्कान दी, जो कुछ ही पलों में जम्हाई में बदल गई और हवा में उड़ते हुए एक कमरे में प्रविष्ट हो गई।
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कमेंट (3)
- Imran Ali
hasi nahi ruk rahi he 😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂
0 likes - Imran Ali
😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂
0 likes - Sunny Kumar Bozo
हालांकि किसी को भी सार्वजनिक अपमानित करना ठीक नहीं है। अपमानित करना किसी भी चीज़ को सुधारने के लिए किया गया पहल कभी भी नहीं हो सकता।
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