एपिसोड 1
यदि जालसाज़ी कूटरचना या दस्तावेज़ों में हेरफेर करना है तो यह कहना होगा कि जालसाज़ी मूर्खों का नहीं बुद्धिमानों का काम है...
जा ली कि ता ब
(हिन्दी के प्रथम गद्य की दिलचस्प-दास्तान)
कृष्ण कल्पित
होती है गरचे कहने से यारो पराई बात
पर हम से तो थमी न कभी मुँह पे आई बात!
~ मीर तक़ी मीर
दिवंगत मित्र अशोक शास्त्री के लिए
।।प्रथम अध्याय।।
जालसाज़ी मूर्खों का नहीं बुद्धिमानों का काम है
पर अकाजु लगि तनु परिहरहीं।
जिमि हिम उपल कृषी दलि गरहीं।।
बंदउँ खल जस सेष सरोषा।
सहस बदन बरनइ पर दोषा।।
- गोस्वामी तुलसीदास : बालकाण्ड : रामचरितमानस
[जैसे ओले खेती का नाश करके ख़ुद भी गल जाते हैं, वैसे ही खल दूसरों का काम बिगाड़ने के लिए अपने शरीर का भी त्याग कर देते हैं। मैं दुष्टों को हज़ार मुख वाले शेष की तरह प्रणाम करता हूँ; जो पराए दोषों का हज़ार मुखों से और बड़े रोष से वर्णन करते हैं!]
मैं भी अर्थात इस उपन्यास का लेखक भी मनुष्यता के इतिहास में अब तक पैदा हुए एक से बड़े एक जालसाज़ों को प्रणाम निवेदित कर इस पुस्तक के, जिसका शीर्षक 'जाली किताब' है- प्रणयन में प्रवृत्त होता हूँ।
जाल या जाली क्या होता है?
जाली या जाल का अर्थ क्या है? यह किस भाषा का शब्द है? जाली शब्द संस्कृत और अरबी दोनों भाषाओं का है। संस्कृत में इसे जाल को जालम कहा जाता है जिसका अर्थ वामन शिवराम आप्टे के संस्कृत-हिन्दी कोश में फंदा, पाश, मकड़ी का जाला, कवच, जालियों का बना शिरस्त्राण, गवाक्ष, जादू, भ्रम, धोखा इत्यादि बताया गया है। और जाली का अर्थ बनावटी, कूटरचना, कपटलेख, धोखा और झूठा बताया गया है। पक्षियों को जाल में फँसाने वाले बहेलिए को संस्कृत में जालिक कहा जाता है।
अरबी वाले जाली का अर्थ होता है- कूटता, छल, धोखा, फ़रेब, बनावट और वंचकता। फ़रहंग-ए-आसफ़िया में इसे लुग़वी मानी बदलना, तब्दील करना, मक्रो फ़रेब और नक़ली चीज़ पर असली का दावा करना कहा गया है। इसी से जालसाज़ बना है।
दोनों भाषाओं में जाली शब्द का अर्थ अलग-अलग होते हुए भी मिलते-जुलते हैं। संस्कृत, अरबी, फ़ारसी भाषाएँ न केवल प्राचीन हैं बल्कि इन भाषाओं और संस्कृतियों में आवाजाही भी प्राचीन है इसलिए यह कोई अजूबा नहीं कि इन भाषाओं के बहुत से शब्दों के अर्थ मिलते-जुलते हैं।
यह तो शब्द और उसके अर्थ की बात हुई लेकिन कोई किताब जाली कैसे हो सकती है? यह सही है कि अध्येताओं और आलोचकों ने बहुत सी किताबों को जाली सिद्ध किया है। वह इसलिए कि किसी ने किसी अन्य उद्देश्य से या इतिहास में भ्रम फैलाने के निमित्त किसी किताब की रचना की हो। जाली किताब का एक कानूनी पहलू भी है। जैसे दिल्ली की बारहखम्बा रोड पर ट्रैफिक रुकने पर जो बच्चे किताबों का बंडल उठाए किताबें बेचते हैं उनमें से अधिकतर दुनिया की बेस्टसेलर किताबों के अवैधानिक प्रिंट बेचते हैं। यह सही है कि इससे लेखक और किताब के मूल प्रकाशक को आर्थिक नुक़सान होता है; लेकिन इससे वह किताब जाली कैसे हो गई? यदि पाठक को इस कथित किताब में अविकल और मूल टेक्स्ट मिलता है तो किताब जाली कैसे हुई? प्रकाशक के लिए यह किताब जाली हो सकती है लेकिन साधारण पाठक के लिए किताब जाली नहीं होगी।
यदि जालसाज़ी कूटरचना या दस्तावेज़ों में हेरफेर करना है तो यह कहना होगा कि जालसाज़ी मूर्खों का नहीं बुद्धिमानों का काम है। निश्चय ही नक़ली दस्तावेज़ बनाना और हेरफेर करके किसी की सम्पति का अधिग्रहण करना या अन्य किसी तरह का किसी का नुक़सान करना नैतिक नहीं कहा जा सकता। यह आर्थिक अपराध की श्रेणी में आएगा। इससे किसी का नुक़सान यदि नहीं होता तो जालसाज़ी एक तरह की कलाकारी ही कही जाएगी। लेकिन अपनी प्रतिभा से कथित जाली किताब का प्रणयन करना अपराध की श्रेणी में नहीं आ सकता। तब किसी किताब को फ़र्ज़ी या जाली क्यों कहा जाता है? किताब अच्छी हो सकती है या बुरी लेकिन वह असली या नक़ली कैसे हो सकती है? किताब हज़ार साल तक पढ़ी जा सकती है या कल ही नष्ट हो सकती है लेकिन वह जाली कैसे हो सकती है?
लेकिन क्या किया जा सकता है? हिन्दी के प्रथम आलोचक रामचन्द्र शुक्ल ने 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' में ही कई ग्रन्थों को जाली ठहराया है। किसी किताब को उसके टेक्स्ट/पाठ से ही परखा जा सकता है। उसे श्रेष्ठ या निकृष्ट कहा जा सकता है। किसी भी सृजनात्मक किताब को जाली कैसे ठहराया जा सकता है? यह आलोचना का कौन सा पैमाना है? कुछ किताबों को तो इसलिए जाली ठहराया गया है कि उसका ऐतिहासिक कथानक इतिहास की किताबों से मेल नहीं खाता जबकि लिखने वाले का इतिहास नहीं साहित्य लिखने का दावा है। वैसे इतिहास की किताबों से अधिक झूठ बोलने वाली किताबें कहाँ हैं? यदि साहित्य कल्पना और प्रतिभा का काम है और कवि-लेखक वास्तविक और अवास्तविक के रसायन से बनता है, तो फिर कहना चाहिए कि साहित्यकार से अधिक जालसाज़ कौन है?
मैं जिस जाली ठहराई गई किताब की जो बेहद दिलचस्प दास्तान आपको सुनाने जा रहा हूँ; उसे कलकत्ता की एशियाटिक सोसाइटी ने इस जाली किताब को हिन्दी गद्य का प्रथम नमूना कहा है। यानी हिन्दी गद्य की प्रथम कृति। यह बात किंचित दुखी होने की है कि क्या हिन्दी गद्य की बुनियाद जालसाज़ी पर खड़ी है!
इस जाली किताब का नाम है- चंद छंद बरनन की महिमा। इस किताब के लेखक कवि गंग कहे जाते हैं। आश्चर्य इस बात का है कि गंग रचनावली का सम्पादन करने वाले विद्वान बटे कृष्ण ने चंद छंद बरनन की महिमा ने इस गद्य पुस्तक को रचनावली में शामिल भी किया है और इस पुस्तक को जाली भी बताया है: यह ग्रन्थ जाली है सिरनामा से लेकर इतिश्री तक। इसकी रचना इसलिए हुई है कि जो लोग रासो को जाली बताते हैं उनके सामने एक ऐसा प्रमाण उपस्थित हो जाए, जो रासो की प्राचीनता को बखाने। इस ग्रन्थ का विषय भी यही है।
यह क्या तर्क हुआ किसी किताब को जाली ठहराने का? इस किताब में ऐसा वर्णन है कि बादशाह अकबर दिल्ली के हिन्दू शासक की शान में चंद बरदाई द्वारा लिखा गया युद्ध-काव्य "पृथ्वीराज रासो" सुनना चाहते हैं। कवि गंग को यह काम सौंपा गया। इसी घटना का विस्तृत, रोचक-रोमांचक वर्णन बरनन में है। अब बताइए यदि पुस्तक में रासो काव्य की श्रेष्ठता वर्णित की गई है तो किताब जाली कैसे हो गई। पृथ्वीराज रासो भी एक महाभारत है। यदि कोई किताब लोक को कुलीन से प्रतिष्ठित करना चाहता है तो यह इस किताब के लेखक के विचार हैं। इससे किताब कैसे जाली हो गई। उस अलौकिक काव्य-पाठ में जो राजे-रजवाड़े-सामन्त इत्यादि मौज़ूद थे वे यदि आपकी ऐतिहासिक किताबों से मेल नहीं खाते तब भी काली किताब जाली कैसे हो सकती है इसे तो उसकी कल्पनाशीलता और जादुई-विभ्रम पैदा करने वाले साहित्यिक गुणों से लैस समझना चाहिए।
यह भी कहा जा सकता है कि गंग तो ख़ुद अकबर को ऊँचे आसन पर बैठकर रासो सुना रहे थे। वे तो इस कथावाचन के नायक थे। और ख़ुद गंग ने यह किताब लिखी। यह गहरा सन्देह है? ठीक। यदि किसी और ने भी यदि यह उत्कृष्ट कृति कवि गंग के नाम से प्रसिद्ध कर दी हो तब भी इस कृति को जाली नहीं कहा जा सकता। यह एक साहित्यिक युक्ति भी हो सकती है। गंग की नहीं होकर भी चंद छंद बरनन की महिमा का साहित्यिक महत्त्व कम नहीं हो जाता। काशी के पण्डित यदि राजस्थान के एक भाट कवि चंद बरदाई के रासो को यदि फ़र्ज़ी ठहरा सकते हैं तो कोई बावला बरदाई महाभारत को भी जाली ठहरा सकता है।
अभी हम कोई फ़ैसला नहीं सुना रहे। न कोई साहित्यिक मूल्यांकन कर रहे। लेखक का काम यहाँ उस किताब की दिलचस्प दास्तान सुनाना है। आगे वह भी सुनाएंगे। आगे इस किताब का किस्सा सुनाते हुए आनन्द के अनगिनत क्षण आएँगे। किताबों में तो किस्से होते ही हैं लेकिन जब कोई किताब किस्सा बन जाए तो क्या कहने! वही किस्सा धीरे-धीरे आपको सुनाएंगे।
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कमेंट (36)
Zax Youtube
jali Bhai
0 likesPranjul Rajput
ha sahi baat hai
2 likesYashpal Vedji
बहुत ही सुन्दर
1 likesRAVINDRA SINGH
kahani best h
1 likesSonu Yashraj
रोचक शुरुआत
0 likesBhajanlal Gulwani
अभी तक सही है
1 likesmanisha kulshreshtha
बहुत रोचक पहला एपिसोड
1 likesRajendra Tiwari
रोचक
1 likesRasbihari Gaur
अभी तक तो कुछ भी नहीं निकला
1 likesMamta Kalia
अभी तो खल वंदना और प्राक़्क़थन हुआ है
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