एपिसोड 1
चंद्रकांता मरी नहीं, जीती है, वह देखो महाराज शिवदत्त के ऐयार उसे लिए जाते हैं। जल्दी दौड़ो, छीनो, नहीं तो बस ले ही जाएँगे। क्या इसी को वीरता कहते हैं।
ऐयार छूट गए
बयान- 1
इस आदमी को सभी ने देखा मगर हैरान थे कि यह कौन है, कैसे आया और क्या कह गया। तेज सिंह ने जोर से पुकार के कहा - ‘आप लोग चुप रहें, मुझको मालूम हो गया कि यह सब ऐयारी हुई है, असल में कुमारी और चपला दोनों जीती हैं, यह लाशें उन लोगों की नहीं हैं।’
तेज सिंह की बात से सब चौंक पड़े और एकदम सन्नाटा हो गया। सभी ने रोना-धोना छोड़ दिया और तेज सिंह के मुँह की तरफ देखने लगे।
महारानी दौड़ी हुई उनके पास आईं और बोलीं - ‘बेटा, जल्दी बताओ यह क्या मामला है। तुम कैसे कहते हो कि चंद्रकांता जीती है? यह कौन था जो यकायक महल में घुस आया?’
तेज सिंह ने कहा - ‘यह तो मुझे मालूम नहीं कि यह कौन था मगर इतना पता लग गया कि चंद्रकांता और चपला को शिवदत्त सिंह के ऐयार चुरा ले गए हैं और ये बनावटी लाश यहाँ रख गए हैं जिससे सब कोई जानें कि वे मर गईं और खोज न करें।’
महाराज बोले - ‘यह कैसे मालूम कि यह लाश बनावटी हैं?’
तेज सिंह ने कहा - ‘यह कोई बड़ी बात नहीं है, लाश के पास चलिए मैं अभी बतला देता हूँ।’ यह सुन कर महाराज तेज सिंह के साथ लाश के पास गए, महारानी भी गईं। तेज सिंह ने अपनी कमर से खंजर निकाल कर चपला की लाश की टाँग काट ली और महाराज को दिखला कर बोले – “देखिए इसमें कहीं हड्डी है।”
महाराज ने गौर से देख कर कहा - ‘ठीक है, बनावटी लाश है।’ इसके पीछे चंद्रकांता की लाश को भी इसी तरह देखा, उसमें भी हड्डी नहीं पाई। अब सभी को मालूम हो गया कि ऐयारी की गई है। महाराज बोले – “अच्छा यह तो मालूम हुआ कि चंद्रकांता जीती है, मगर दुश्मनों के हाथ पड़ गई इसका गम क्या कम है?”
तेज सिंह बोले - ‘कोई हर्ज नहीं, अब तो जो होना था हो चुका। मैं चंद्रकांता और चपला को खोज निकालूँगा।’
तेज सिंह के समझाने से सभी को कुछ ढाँढ़स बँधा, मगर कुमार वीरेंद्र सिंह अभी तक बदहोशो-हवास पड़े हैं, उनको इन सब बातों की कुछ खबर नहीं। अब महाराज को यह फिक्र हुई कि कुमार को होशियार करना चाहिए।
वैद्य बुलाए गए, सभी ने बहुत-सी तरकीबें की मगर कुमार को होश न आया। तेज सिंह भी अपनी तरकीब करके हैरान हो गए मगर कोई फायदा न हुआ, यह देख महाराज बहुत घबराए और तेज सिंह से बोले - ‘अब क्या करना चाहिए?’
बहुत देर तक गौर करने के बाद तेज सिंह ने कहा कि कुमार को उठवा के उनके रहने के कमरे में भिजवाना चाहिए, वहाँ अकेले में मैं इनका इलाज करूँगा।’
यह सुन महाराज ने उन्हें खुद उठाना चाहा मगर तेज सिंह ने कुमार को गोद में ले लिया और उनके रहने वाले कमरे में ले चले । महाराज भी संग हुए।
तेज सिंह ने कहा - ‘आप साथ न चलिए, ये अकेले ही में अच्छे होंगे।’ महाराज उसी जगह ठहर गए। तेज सिंह कुमार को लिए हुए उनके कमरे में पहुँचे और चारपाई पर लिटा दिया, चारों तरफ से दरवाजे बंद कर दिए और उनके कान के पास मुँह लगा कर बोलने लगे -
‘चंद्रकांता मरी नहीं, जीती है, वह देखो महाराज शिवदत्त के ऐयार उसे लिए जाते हैं। जल्दी दौड़ो, छीनो, नहीं तो बस ले ही जाएँगे। क्या इसी को वीरता कहते हैं। छीः चंद्रकांता को दुश्मन लिए जाएँ और आप देख कर भी कुछ न बोलें? राम राम राम।’
इतनी आवाज कान में पड़ते ही कुमार में आँखें खोल दीं और घबरा कर बोले - ‘हैं। कौन लिए जाता है? कहाँ है चंद्रकांता?’ यह कह कर इधर-उधर देखने लगे। देखा तो तेज सिंह बैठे हैं। पूछा – ‘अभी कौन कह रहा था कि चंद्रकांता जीती है और उसको दुश्मन लिए जाते हैं?’
तेज सिंह ने कहा - ‘मैं कहता था और सच कह रहा था। कुमारी जीती हैं मगर दुश्मन उनको चुरा ले गए हैं और उनकी जगह नकली लाश रख कर इधर-उधर रंग फैला दिया है जिससे लोग कुमारी को मरी हुई जान कर पीछा और खोज न करें।’
कुमार ने कहा - ‘तुम हमें धोखा देते हो। हम कैसे जानें कि वह लाश नकली है?’
तेज सिंह ने कहा - ‘मैं अभी आपको यकीन करा देता हूँ।’ यह कह कमरे का दरवाजा खोला, देखा कि महाराज खड़े हैं, आँखों से आँसू जारी हैं।
तेज सिंह को देखते ही पूछा - ‘क्या हाल है?’ जवाब दिया - ‘अच्छे हैं, होश में आ गए, चलिए देखिए।’ यह सुन महाराज अंदर गए, उन्हें देखते ही कुमार उठ खड़े हुए, महाराज ने गले से लगा लिया। पूछा - ‘मिजाज कैसा है।’
कुमार ने कहा - ‘अच्छा है।’ कई लौंडियाँ भी उस जगह आईं जिनको कुमार का हाल लेने के लिए महारानी ने भेजा था। एक लौंडी से तेज सिंह ने कहा - ‘दोनों लाशों में से जो टुकड़े हाथ-पैर के मैंने काटे थे उन्हें ले आ।’ यह सुन लौंडी दौड़ी गई और वे टुकड़े ले आई। तेज सिंह ने कुमार को दिखला कर कहा – “देखिए यह बनावटी लाश है या नहीं, इसमें हड्डी कहाँ है?”
कुमार ने देख कर कहा - ‘ठीक है, मगर उन लोगों ने बड़ी बदमाशी की।’ तेज सिंह ने कहा - ‘खैर, जो होना था हो गया, देखिए अब हम क्या करते हैं।’
सवेरा हो गया। महाराज, कुमार और तेज सिंह बैठे बातें कर रहे थे कि हरदयाल सिंह ने पहुँच कर महाराज को सलाम किया। उन्होंने बैठने का इशारा किया। दीवान साहब बैठ गए और सभी को वहाँ से हट जाने के लिए हुक्म दिया।
जब निराला हो गया हरदयाल सिंह ने तेज सिंह से पूछा - ‘मैंने सुना है कि वह बनावटी लाश थी जिसको सभी ने कुमारी की लाश समझा था?’ तेज सिंह ने कहा - ‘जी हाँ ठीक बात है।’ और तब बिल्कुल हाल समझाया।
इसके बाद दीवान साहब ने कहा - ‘और गजब देखिए। कुमारी के मरने की खबर सुन कर सब परेशान थे, सरकारी नौकरों में से जिन लोगों ने यह खबर सुनी दौड़े हुए महल के दरवाजे पर रोते-चिल्लाते चले आए, उधर जहाँ ऐयार लोग कैद थे पहरा कम रह गया, मौका पा कर उनके साथी ऐयारों ने वहाँ धावा किया और पहरे वालों को जख्मी कर अपनी तरफ के सब ऐयारों को जो कैद थे छुड़ा ले गए।’
यह खबर सुन कर तेज सिंह, कुमार और महाराज सन्न हो गए।
कुमार ने कहा - ‘बड़ी मुश्किल में पड़ गए। अब कोई भी ऐयार उनका हमारे यहाँ न रहा, सब छूट गए। कुमारी और चपला को ले गए यह तो गजब ही किया। अब नहीं बर्दाश्त होता, हम आज ही कूच करेंगे और दुश्मनों से इसका बदला लेंगे।’ यह बात कह ही रहे थे कि एक चोबदार ने आ कर अर्ज किया कि लड़ाई की खबर ले कर एक जासूस आया है, दरवाजे पर हाजिर है, उसके बारे में क्या हुक्म है?’
हरदयाल सिंह ने कहा - ‘इसी जगह हाजिर करो।’
जासूस लाया गया। उसने कहा - ‘दुश्मनों को रोकने के लिए यहाँ से मुसलमानी फौज भेजी गई थी। उसके पहुँचने तक दुश्मन चार कोस और आगे बढ़ आए थे। मुकाबले के वक्त ये लोग भागने लगे, यह हाल देख कर तोपखाने वालों ने पीछे से बाढ़ मारी जिससे करीब चौथाई आदमी मारे गए। फिर भागने का हौसला न पड़ा और खूब लड़े, यहाँ तक कि लगभग हजार दुश्मनों को काट गिराया लेकिन वह फौज भी तमाम हो चली, अगर फौरन मदद न भेजी जाएगी तो तोपखाने वाले भी मारे जाएँगे।’
यह सुनते ही कुमार ने दीवान हरदयाल सिंह को हुक्म दिया – ‘पाँच हजार फौज जल्दी मदद पर भेजी जाए और वहाँ पर हमारे लिए भी खेमा रवाना करो, दोपहर को हम भी उस तरफ कूच करेंगे।’
हरदयाल सिंह फौज भेजने के लिए चले गए।
महाराज ने कुमार से कहा - ‘हम भी तुम्हारे साथ चलेंगे।’
कुमार ने कहा - ‘ऐसी जल्दी क्या है? आप यहाँ रहें, राज्य का काम देखें। मैं जाता हूँ, जरा देखूँ तो राजा शिवदत्त कितनी बहादुरी रखता है, अभी आपको तकलीफ करने की कुछ जरूरत नहीं।’
थोड़ी देर तक बातचीत होने के बाद महाराज उठ कर महल में चले गए। कुमार और तेज सिंह भी स्नान और संध्या-पूजा की फिक्र में उठे। सबसे जल्दी तेज सिंह ने छुट्टी पाई और मुनादी वाले को बुला कर हुक्म दिया कि तू तमाम शहर में इस बात की मुनादी कर आ कि - ‘दंतारबीर का जिसको इष्ट हो वह तेज सिंह के पास हाजिर हो।’
बमूजिब हुक्म के मुनादी वाला मुनादी करने चला गया। सभी को ताज्जुब था कि तेज सिंह ने यह क्या मुनादी करवाई है।
अगले एपिसोड के लिए कॉइन कलेक्ट करें और पढ़ना जारी रखें