एपिसोड 1
सबसे भयानक घटना का आधार वह वन्यजीव होता जिसकी घटती संख्या के कारण ऊपरी कुर्सियों का भारी दबाव होता था - बाघ। अब तक यही सब होते देखा लेकिन यह मोर वाला मामला कुछ नया था।
एक मोर की हत्या
“आपको मेरे शब्द सुनने चाहिए।” - लड़की ने अनगिनत आग्रह किये।
“मैं तैयार हूँ” - मैंने अंततः हारकर कहा “लेकिन ध्यान रहे, जिस काम के लिए आया हूँ, तुम्हारी दलीलों के बाद भी फैसले का अधिकार मेरे पास है।”
“थैंक्स सर, मुझे नहीं पता मेरे शब्द कितना महत्व रखते हैं लेकिन विश्वास दिलाती हूँ कि वे सच्चे शब्द होंगे। इससे पहले कि आप कोई नतीजा निकालें, मेरा एक और आग्रह है” - उसने कहा “मेरे शब्दों के साथ-साथ आपको मेरी कहानी में उतरना होगा।”
मैं उतरा। मैं उसके साथ उसकी दुनिया में उतर गया। मैंने उसके सारे शब्द सुने। वे मुझे एक बिखरी हुई आत्मा के शब्द लगे और उसकी दुनिया कई अनसुलझे सवालों से भरी दिखाई दी।
बावजूद इसके - कहानी का ‘नतीजा’ पहले से मेरे सामने था।
मैं उस समय जंगल में था। जंगल में रहने वालों को लेकर यह एक अधूरी धारणा है कि उजाड़ में केवल जानवर या देवता ही रह सकते हैं - नहीं! इनके अलावा कुछ अन्य प्राणी भी हैं जो जंगल में रहते या अपने अंदर ही एक जंगल बसाए रखते हैं। दरअसल यह दुनिया उनके लिए कुछ कम पड़ गई होती है इसलिए वे अंततः अकेले में चले जाते हैं - कोई कवि, सन्यासी, यायावर… कोई वन विभाग का आदमी। मैं ऐसा ही आदमी हूँ।
वह जुलाई का एक सुन्दर सबेरा था जब मैं अपने सरकारी कमरे में सोया हुआ था। पिछले हफ्ते मौसम की शुरूआती बूँदें बरसी थीं इसलिए राहत में आँखें ज्यादा देर तक लगी हुईं थीं। यह जैसे बदले का भाव था जब हम गर्मियों की सूखी नींद का बदला बारिश में ज्यादा सोकर लेते हैं। मैं गहरी नींद में था और शायद कोई स्वप्न देख रहा था कि अचानक बढ़ते हुए क़दमों के साथ मेरे सहयोगी की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी -
“वहाँ देवता वाली पहाड़ी पर” - उसने कहा “एक मोर की हत्या हुई है।”
मेरा स्वप्न टूटा, पता नहीं क्या अज्ञात कारण था कि मैंने इस सूचना को उल्टा सुन लिया।
“वहाँ मोर वाली पहाड़ी पर” - मैंने सुना “एक देवता की हत्या हुई है।”
मैं आश्चर्य में था और आँखें फाड़कर साथी को घूर रहा था, जब उसने दुबारा दोहराया कि ‘उठो यार! वहाँ किसी ने एक मोर को मार डाला है’ तो मेरा भ्रम दूर हुआ। मैंने वापस आँखें मूँद लीं और करवट बदलते हुए सिर्फ इतना-सा महसूस किया कि यह दुनिया लगातार बहुत बेरंग होती जा रही है।
कई वर्षों से ऐसी घटनाओं के बारे में सुनना और फिर कोई कदम उठाना मेरे लिए बहुत सामान्य बात थी। जंगल में हमारा पहला काम वृक्षों की रक्षा करना था क्योंकि लकड़हारों का काफी डर था। वे अक्सर अँधेरी रातों में साहस दिखाते और सुबह हमें धरती से चिपके ठूँठ मिलते। किसी पेड़ की लाश देखना दुःखद है लेकिन इससे भी दुःखद वे घटनाएँ हैं जिनका सम्बन्ध ‘खून’ से होता।
इन खूनी कारनामों को वे शिकारी अंजाम देते जो बंदूकों के साथ जंगल में प्रवेश करते और खरगोश, हिरन या किसी नीलगाय को लहूलुहान करके उठा ले जाते। सबसे भयानक घटना का आधार वह वन्यजीव होता जिसकी घटती संख्या के कारण ऊपरी कुर्सियों का भारी दबाव होता था - बाघ। अब तक यही सब होते देखा लेकिन यह मोर वाला मामला कुछ नया था। इसे लेकर कहीं से कोई दबाव नहीं आया। जो भी दबाव था, मेरे अंदर का था।
मुझे ऐसी खूबसूरत चीजों की मृत्यु बहुत बुरी लगती है। ड्यूटी के समय जब हम अपने कुत्तों की चेन पकड़े पगडंडियों से गुजरते और अचानक पैरों तले कोई फूल कुचल जाता तो मैं अपने साथियों से कहता - ‘फूलों की मृत्यु बहुत बुरी बात है, इन्हें अमर रहना चाहिए।’ इस शोक-संवाद के बाद मेरे दोस्त ‘साला सनकी’ कहकर मेरा मजाक बनाने लगते और मैं खामोश हो जाता।
मुझे ख़ामोशी का लम्बा अनुभव है इसीलिए मैं शब्दों की तलाश में रहता हूँ।
जब इस हत्या का पता चला तो मैं देर तक विभिन्न पहलुओं पर गौर करता रहा और अंततः इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि यह किसी पेशेवर शिकारी का काम नहीं हो सकता। मैं जितना जानता हूँ - इस इलाके के लोग मांसाहारी नहीं हैं, और अगर कोई है तब भी धार्मिक कारणों के चलते मोर को मारना लगभग असंभव कृत्य है। हाँ! एक-दो बार नीलगायों की हत्या की पुष्टि जरूर हुई थी जब फसल नष्ट करने के जवाब में उन्हें मारा गया लेकिन यह बात किसी मोर पर लागू नहीं होती।
वह एक सीधा-सादा सुन्दर पक्षी है जो कभी कोई ऐसा ‘असहनीय-हस्तक्षेप’ नहीं करता कि उससे व्यथित होकर उसे मार ही डाला जाए। जब मैं कोई ठोस कारण नहीं सोच पाया तो घटनास्थल पर जाकर तहकीकात के बारे में सोचने लगा। मैं अभी खाली था और घर जाने के लिए जिन छुट्टियों के इंतज़ार में था, वे थोड़ी दूर थीं। मैंने फैसला किया कि यहाँ ऊबते हुए वक्त बिताने से बेहतर है कि आज जंगल से बाहर निकलकर कुछ नए दृश्य देखें जाएँ।
इस तरह मैं उस पहाड़ी की ओर रवाना हुआ।
मैंने सरकारी खटारा जीप ली और घंटे-भर के सर्पिले रास्तों से बढ़ता गया।
मैं जंगल को पीछे छोड़ता गया, पहाड़ी के करीब आता गया।
मैं पहुँचा।
मुझे दूर से वह पहाड़ी दिखाई दी - वह एक सूखी पहाड़ी थी जो कई कतरों में बँटकर समतल मैदानों में लेटी थी। उसे देखकर कोई भी कह सकता था - वह किसी सुंदर साँवली ग्रामीण स्त्री की तरह है जो करवट लेकर धरती पर लेटी हुई है।
अब मैं पहाड़ी पर था। मुझे सबसे पहले उसकी चोटी पर बना वह मंदिर दिखाई दिया जिसकी वजह से इसे ‘देवता वाली पहाड़ी’ कहा जाता है। मंदिर के पास एक पीपल का पेड़ था जिसकी बनावट को मैंने कड़कती बिजली से जोड़कर देखा - जैसे कोई बिजली पहाड़ी से उठकर आकाश की ओर फैली हो। मैं एक पत्थर पर बैठ गया और आँखों की अंतिम सीमा तक ये दृश्य देखने लगा - मुझे दूर-दूर तक टुकड़ों में बँटे खेत दिखाई दिए।
उनके बीच से जाती हुई सड़क एक नदी-सी लगी जिसमें इंसान वाहनों के साथ बह रहे थे। वहीं छोटे-छोटे फासलों पर बिजली के खम्भे थे। उन्होंने एक-दूसरे को तारों से बाँध रखा था। इन्हीं खम्भों की एक कतार चढ़ती हुई मंदिर तक आती थी। मुझे मंदिर के दरवाजे पर लटका बल्ब दिखा। वह दिन में भी जल रहा था। मुझे सामने के मैदानों में कुछ गड़रिए दिखाई दिए जो छोटे-छोटे पशुओं के संग रेंग रहे थे।
वहीं आम के पेड़ खड़े थे जो मुझे किसी पेपर पर टपकी स्याही की बूँदों-से लगे। मैंने नीचे उन घरों को देखा जो अलग-अलग झुंडों में बँटे थे और आँगनों से धुआँ उठ रहा था। मैंने गर्दन मोड़ी और पहाड़ी की दूसरी दिशा को देखने लगा। मुझे वहाँ बहुत दूर रेल की पटरियाँ दिखाई दीं जो सुनसान-सी लगीं। पटरियों के पार वह आबादी थी जिसे कुछ लोग ‘छोटा शहर’ और कुछ ‘बड़ा क़स्बा’ कहते हैं। जीवन की ये सारी झलकियाँ मुझे कविता के शब्दों की तरह प्रतीत हुईं।
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कमेंट (5)
- Suman Kanwat
nice sir
0 likes - Suman Kanwat
nice
0 likes - Yashpal Vedji
बेहतर
0 likes - Gudiyadubey Gudiyadubey
padhane me achchi lag rahi hai story
0 likes - नताशा
बेहतरीन! बलु कावंट को पढ़ना सुखद है।
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