एपिसोड 1

जो आदमी वक़्त की कद्र नहीं करता, वक़्त उसके साथ कभी वफ़ा नहीं करता।

मुहूर्त 

कहानी का हीरो बनने का सपना कौन नहीं देखता! हर आदमी को लगता है कि उसकी ज़िंदगी एक ग़जब की कहानी है। वह कहानी का हीरो है। यदि उसकी कहानी छप कर आ गई, तो तहलका मच जाएगा। दुनिया अपने दांतों से नाखून कुतरते-कुतरते उंगलियां तक चबा लेगी, वह किसी लेखक को ढूंढ़ता है, कहानी के लेखक को। लेकिन सच तो लिखने वाले जानते हैं। कहानी लिखना इतना मुश्किल काम है कि दुनिया वाले इसे काम ही नहीं मानते। जबकि ज़्यादातर ज़िंदगियों की कहानियाँ फ्लॉप होती हैं। कोई पूछता नहीं उन्हें। वही दुखड़े, वही रोना, वही घिसे-पिटे दृश्य, वही अंत। ऐसे में एक अच्छी कहानी लिखना! ख़ुदा ख़ैर करे। इन्हीं सारी बातों के बीच मेरे सबसे पक्के दोस्त सैफ के दिल में 'कभी-कभी' की तरह ख़याल आया, मेरी कहानी में हीरो बनने का। इस बार वह गंभीर था। उसे जबसे मैंने यह 'स्टोरी' बताई थी, वह इसमें हीरो बनने के लिए बावला था। चूंकि हमारी दोस्ती उतनी पुरानी है कि जब हम आपस में चड्डियां बदल लिया करते थे। इसीलिए उसकी इच्छा का मेरे लिए क्या महत्व होगा, यह सहज ही समझा जा सकता है। पूरी गंभीरता के साथ जब सैफ का इस कहानी में हीरो बनना तय हो गया, तो मैंने उससे कहानी के 'मुहूर्त' पर पहुंच जाने को कहा, ठीक समय पर ताकि कहानी 'हिट' हो सके। कहानी के हीरो के तौर पर सैफ को 'साइन' करने का प्रश्न ही नहीं उठता था। कारण, हमारी दोस्ती और एक-दूसरे पर विश्वास।

आख़िर वह समय आ ही गया, जब मुझे इस कहानी को शुरू करना था, लेकिन सैफ गायब! मुहूर्त सरपट घोड़े की तरह भागा जा रहा था। अपने पीछे गर्दोगुबार छोड़ कर। मुहूर्त निकल गया, तो कहानी का सत्यानाश निश्चित है। कोई संपादक-प्रकाशक छुएगा भी नहीं इसे। बिना लिफ़ाफ़ा खोले और पढ़े ही लौटा देगा। यदि किसी गरीब-गुरबे संपादक ने कहानी छाप भी दी, तो पाठक रद्दी न्यूजप्रिंट और दो-चार सौ के सर्कुलेशन वाली पत्रिका में इसे भला पढ़ेंगे भी? इससे पहले कि मुहूर्त का सरपट घोड़ा अपने ही गर्दोगुबार में गुम हो जाए, मैंने फैसला किया ख़ुद ही हीरो बन जाने का। अपनी कहानी का ख़ुद ही हीरो! किसी भी कहानीकार के लिए आग के दरिया में छलांग लगाने समान है यह कहना कि वही अपनी कहानी का हीरो है। लेकिन मेरी मजबूरी है। सैफ आया नहीं और मुहूर्त को मैं हाथ लगे बटेर की तरह निकल जाने देना नहीं चाहता। अतः प्रिय पाठक, आपसे निवेदन है कि कहानी का हीरो मुझे मान कर इसका रसास्वादन करें। भूल जाएं सैफ को। जो आदमी वक़्त की कद्र नहीं करता, वक़्त उसके साथ कभी वफ़ा नहीं करता। सैफ के हाथ से हीरो बनने का सुनहरा मौका निकल चुका है और देखिएगा एक दिन उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। वह पछताएगा। ख़ैर। उसके साथ दुर्भाग्य से हुई इस तुच्छ दुर्घटना को भूल कर, आइए हम-आप कहानी की रोचक दुनिया में प्रवेश करें।

प्लीज, जस्‍ट अ मिनट।

कहानी चूंकि एक अकेले शख़्स के बस की बात नहीं है, इसीलिए मैं इसकी ‘स्‍टारकास्‍ट’ को स्‍पष्‍ट कर दूँ। मुख्‍य भूमिका में मैं हूँ और प्रीतो है, जिस इमारत में रहता हूँ, वहीं ऊपर रहने वाली। सहयोगी भूमिकाओं में हैं, मेरी माँ और पिता जी, त्यागी जी यानी प्रीतो के पिता। गेस्ट एपीयरेंस है मिसेज सहाय का, जिन्हें मैं कभी 'आंटी' नहीं कह पाता हूँ।

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