एपिसोड 1

कितनी तीखी आंखें थीं उसकी, जैसे पल भर में उसे भेद कर जाएंगी। ये कैसी आंखें हैं, इन आंखों में अजनबीयत नहीं, कुछ और है… न चाहते हुए भी होंठ जैसे बुदबुदा उठे, लस्ट…

अजीब सी खुशबू

-तुम्हें यहां पहले तो कभी नहीं देखा?

- मैं तो तुम्हें ही देख रहा हूं, जब से तुम यहां आई हो…

- रियली? हम अभी तो मिले हैं एक घंटा पहले।

- जिस दिन तुम यहां आई थी, तुमने नीले रंग की शर्ट पहन रखी थी, जीन्स के साथ। शाम को तुम अपने कमरे से बाहर निकली थी, सफेद गाउन में। रात को जब तुम अपने दोस्तों के साथ रेज़ॉर्ट लौटी तो तुम्हारे बाल बंधे हुए थे, तुमने बालों में एक मोगरे का गजरा भी लगा रखा था…

-उफ्फ़। तुमने इतना कुछ कैसे, कहां देख लिया? हम लोग तो रात एक बजे के बाद लौटे थे रेज़ॉर्ट।

-तो? क्या उस समय बाहर कर्फ्यू लगा था?

मौली हंसने लगी। रजत बस उसकी तरफ देखता रहा।

मौली रुक गई, ‘अब क्या? ऐसे क्यों देख रहे हो? अब यह मत कहना कि मेरे अलावा तुमने और किसी को देखा नहीं।’

‘सच तो यही है।’

‘नो वे। ऐसा नहीं हो सकता। हमारे ग्रुप में एक मॉडल है, एक फिरंगी। दोनों मुझसे कहीं ज़्यादा सुंदर और स्मार्ट हैं।’

रजत के चेहरे पर अजीब से भाव आए, ‘तुम इतनी इनोसेंट तो नहीं, जितनी बनती हो।’

‘अरे, तुम्हें पता ही नहीं, मैं बहुत इनोसेंट हूं। मैं किसी का भी यकीं कर लेती हूं। बात-बात पर भावुक हो जाती हूं। तभी तो…’ मौली की मुस्कराहट कम ही नहीं हो रही थी।

‘क्या कहना चाहती हो?’

‘तभी तो तुम्हारे साथ यहां सागर किनारे बैठी हूं।’

रजत दो पल के लिए चुप रहा, फिर उसने हल्के से मौली के दाहिने हाथ की छोटी उंगली को छूते हुए कहा, ‘लेकिन फिर भी तुम मेरे साथ यहां कॉफी पी रही हो, बियर नहीं…’

मौली जोर से हंसी, ‘मैंने बताया तो था, मैं बियर सिर्फ अपने दोस्तों के साथ पीती हूं।’

रजत ने जवाब नहीं दिया, बस मौली की तरफ देखता रहा। मौली ने इस समय स्कार्फ से अपने बालों को बांध रखा था। बावजूद उसके ज़िद्दी बाल हवा के झोंके से चेहरे पर झूमने से लगते। 

मौली ने बालों की लट को पीछे कर स्कार्फ में घुसाया। बीच में इस समय उन दोनों के अलावा और कोई नहीं था। बस रेज़ॉर्ट के कुछ कमरों में अभी भी रोशनी थी। हाथ में कमरे की चाबी का छल्ला घुमाते हुए उसने गौर से रजत की तरफ देखा, लंबोतरा चेहरा, हलकी सी दाढ़ी, दहकती सी आंखें, आंखों में अजीब सी बेचैनी। धीरे से उसने आंखें नीची की। रजत का हाथ उसके हाथ के बहुत करीब था। लंबी सधी उंगलियां। उन उंगलियों में हरकत होने लगी, आहिस्ता से मौली ने पाया उसकी कलाई उन उंगलियों की गिरफ्त में है।

वह हड़बड़ा कर उठ गई। यह सच में हो रहा था या वो चाहती थी? ऐसा क्या था उन उंगलियों की छुअन में?

मौली के खड़े होते ही रजत ने धीरे से कहा, ‘बैठो ना। तुम्हारे दोस्तों को तो आने में वक़्त लगेगा। तीन बजे से पहले कोई वापस नहीं आने वाला।’

‘कोई बात नहीं। मुझे नींद आ रही है।’ मौली जल्दी में बोल गई।

‘तो कल मिलोगी न? यहीं रात को? बियर पीने?’

‘मैंने कहा ना मैं …’

‘सुन लिया। पर कल तक तो हम दोस्त बन ही जाएंगे।’

‘क्यों?’

‘पता नहीं। मुझे लग रहा है। तुम्हें भी लगे तो आ जाना…’

मौली का दिल हल्का सा धड़का। मन नहीं कर रहा था वहां से उठने का। वो उंगलियां, कुछ देर और उनके साथ रह लेती तो… रजत ने कुछ नहीं कहा। बिना पीछे मुड़ कर देखे मौली चलने लगी। उसके साथ अजीब सी खुशबू चल रही थी और एक आवाज़ भी। जैसे उसे कोई घेर कर चल रहा हो। बहुत पहले नानी के गांव में सुबह-सुबह झाड़ियों से ऐसी ही कुछ खुशबू आती थी। नानी कहती थी, सुबह होने से पहले झाड़ियों के पास मत जाना। वहां चुड़ैल रहती है, इत्र बनाती है लोगों को लुभाने के लिए। नानी से छिप छिपा कर वो आधी रात को झाड़ियों के पास पहुंच कर खड़ी हो जाती और लंबी-लंबी सांसें लेने लगती। अब न नानी रही न बचपन। पता नहीं कैसे वो खुशबू बस याद रह गई।

मौली अपने कमरे में लौट आई। कमरे का दरवाज़ा खोलते समय उसे लगा जैसे पीछे कोई खड़ा हो। वो एकदम से पीछे मुड़ी। बस एक शीतल सा हवा का झोंका था। हल्का सा सिहर कर उसने कमरे की लाइट जला दी। एक पूरी बोतल पानी हलक में उंडेल लिया। प्यास गई नहीं थी। 

टीवी चलाने का मन नहीं हुआ। कुछ पढ़ने का भी नहीं। दिनभर की थकान का भी उल्टा असर हो रहा था। सबने जम कर काम किया था। दस घंटे लगातार शूटिंग चली। कैमरा थामे-थामे उसके कंधे दुखने लगे। डिनर के पहले कमरे में सबके साथ बैठ कर उसने दो बोतल बियर पी ली। 

उसके दोस्त तो रातभर पार्टी करना चाहते थे। उसने मना कर दिया। डैनियल तो एकदम उसके सिर पर ही सवार हो गया, ‘मौली, तुम ना बूढ़ी हो गई हो। काम तो सबने किया है। बस तुम्हें थकान हो रही है। अरे, लौट आएंगे न दो-तीन घंटे में। फिर सो जाना।’ 

मौली मुस्कराई, ‘डैन, बूढ़ी ही सही, मैं नहीं आ रही तुम लोगों के साथ। मैं तुम जैसी वाइल्ड नहीं, जो आधी रात तक पार्टी करती रहूं। बस, एक कप कॉफी पिऊंगी और आराम से सो जाऊंगी।’ 

बात शुरू तो यहीं से हुई थी…

डाइनिंग हॉल में वो नज़र आ गया… रजत… आ क्या गया, उस समय बस वो दोनों ही रह गए थे वहां। रजत के हाथ में बियर का कैन था। वह हल्के से चलते हुए उसके पास आया और वो आराम से मज़े ले कर गर्म कॉफी की चुस्की ले रही थी। 

अचानक उसके पास आ कर वो झुक कर बोला, ‘ऑटोग्राफ प्लीज़…’

मौली चौंकी, ‘क्यों? मुझे क्या समझा है आपने?’

‘आप हीरोइन नहीं हैं क्या? कल मैंने पूछा था वेटर से क्या हो रहा है रेज़ॉर्ट में, उसने बताया कि शूटिंग चल रही है। आप ही काम कर रही हैं न फिल्म में?’

मौली हंस पड़ी, ‘फिल्म नहीं, एडवरटाइज़िंग की शूटिंग है… मैं हीरोइन नहीं हूं, कैमरावूमन हूं… ’

‘रियली? नहीं, मुझे यकीं नहीं है… आप ऑटोग्राफ नहीं देना चाहतीं इसलिए कुछ भी कह रही हैं…’

मौली ने अबकि ध्यान से रजत की तरफ देखा, एक पल को जैसी धड़कन रुक गई। कितनी तीखी आंखें थीं उसकी, जैसे पल भर में उसे भेद कर जाएंगी। ये कैसी आंखें हैं, इन आंखों में अजनबीयत नहीं, कुछ और है… न चाहते हुए भी होंठ जैसे बुदबुदा उठे, लस्ट…

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