एपिसोड 1
अनुक्रम
एपिसोड 1-3 : दुखवा मैं कासे कहूँ मोरी सजनी
एपिसोड 4-6 : फंदा
एपिसोड 7 : खू़नी
एपिसोड 8-10 : अम्बपालिका
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उसका शरीर काँपा, आँखें जलने लगी, कंठ सूख गया। वह घुटने के बल बैठकर बहुत धीरे-धीरे अपने आंचल से बेगम के मुख का पसीना पोंछने लगी। इसके बाद उसने झुककर बेगम का मुँह चूम लिया...
कहानी: दुखवा मैं कासे कहूँ मोरी सजनी
मैं मर्द हूँ
गर्मी के दिन थे। बादशाह ने उसी फागुन में सलीमा से नई शादी की थी। सल्तनत के झंझटों से दूर रहकर नई दुल्हन के साथ प्रेम और आनंद की कलोल करने वे सलीमा को लेकर कश्मीर के दौलतखाने में चले आए थे।
रात दूध में नहा रही थी। दूर के पहाडों की चोटियाँ बर्फ से सफेद होकर चाँदनी में बहार दिखा रही थीं। आरामबाग के महलों के नीचे पहाड़ी नदी बल खाकर बह रही थी। मोतीमहल के एक कमरे में शमादान जल रहा था और उसकी खुली खिड़की के पास बैठी सलीमा रात का सौंदर्य निहार रही थी।
खुले हुए बाल उसकी फिरोजी रंग की ओढनी पर खेल रहे थे। चिकन के काम से सजी और मोतियों से गुँथी हुई फिरोजी रंग की ओढनी पर, कसी कमखाब की कुरती और पन्नों की कमरपेटी पर अंगूर के बराबर बडे मोतियों की माला झूम रही थी। सलीमा का रंग भी मोती के समान था। उसकी देह की गठन निराली थी। संगमरमर के समान पैरों में जरी के काम के जूते पड़े थे, जिन पर दो हीरे दक-दक चमक रहे थे।
कमरे में एक कीमती ईरानी कालीन का फर्श बिछा हुआ था, जो पैर रखते ही हाथ-भर नीचे धँस जाता था। सुगंधित मसालों से बने शमादान जल रहे थे। कमरे में चार पूरे कद के आईने लगे थे। संगमरमर के आधारों पर सोने-चाँदी के फूलदानों में ताजे फूलों के गुलदस्ते रखे थे। दीवारों और दरवाजों पर चतुराई से गुँथी हुई नागकेसर और चम्पे की मालाएँ झूल रही थीं, जिनकी सुगंध से कमरा महक रहा था। कमरे में अनगिनत बहुमूल्य कारीगरी की देश-विदेश की वस्तुएँ करीने से सजी हुई थीं।
बादशाह दो दिन से शिकार को गए थे। इतनी रात होने पर भी नहीं आए थे। सलीमा खिड़की में बैठी प्रतीक्षा कर रही थी। सलीमा ने उकताकर दस्तक दी। एक बांदी दस्तबस्ता हाजिर हुई।
बांदी सुंदर और कमसिन थी। उसे पास बैठने का हुक्म देकर सलीमा ने कहा-
'साकी, तुझे बीन अच्छी लगती है या बाँसुरी?
बांदी ने नम्रता से कहा- हुजूर जिसमें खुश हों।
सलीमा ने कहा- पर तू किसमें खुश है?
बांदी ने कम्पित स्वर में कहा- सरकार! बांदियों की खुशी ही क्या!
सलीमा हँसते-हँसते लोट गई। बांदी ने बंशी लेकर कहा- क्या सुनाऊँ?
बेगम ने कहा- ठहर, कमरा बहुत गरम मालूम देता है, इसके तमाम दरवाजे और खिडकियाँ खोल दे। चिरागों को बुझा दे, चटखती चाँदनी का लुत्फ उठाने दे और वे फूलमालाएँ मेरे पास रख दे।
बांदी उठी। सलीमा बोली- सुन, पहले एक गिलास शरबत दे, बहुत प्यासी हूँ।
बांदी ने सोने के गिलास में खुशबूदार शरबत बेगम के सामने ला धरा। बेगम ने कहा- उफ्! यह तो बहुत गर्म है। क्या इसमें गुलाब नहीं दिया?
बांदी ने नम्रता से कहा- दिया तो है सरकार!
'अच्छा, इसमें थोड़ा सा इस्तम्बोल और मिला।
साकी गिलास लेकर दूसरे कमरे में चली गई। इस्तम्बोल मिलाया और भी एक चीज मिलाई। फिर वह सुवासित मदिरा का पात्र बेगम के सामने ला धरा।
एक ही साँस में उसे पीकर बेगम ने कहा- अच्छा, अब सुनो। तूने कहा था कि तू मुझे प्यार करती है; सुना, कोई प्यार का ही गाना सुना।
इतना कह और गिलास को गलीचे पर लुढकाकर मदमाती सलीमा उस कोमल मखमली मसनद पर खुद भी लुढक गई और रस-भरे नेत्रों से साकी की ओर देखने लगी। साकी ने बंशी का सुर मिलाकर गाना शुरू किया :
दुखवा मैं कासे कहूँ मोरी सजनी...
बहुत देर तक साकी की बंशी कंठ ध्वनि कमरे में घूम-घूमकर रोती रही। धीरे-धीरे साकी खुद भी रोने लगी। साकी मदिरा और यौवन के नशे में चूर होकर झूमने लगी।
गीत खत्म करके साकी ने देखा, सलीमा बेसुध पड़ी है। शराब की तेजी से उसके गाल एकदम सुर्ख हो गए हैं और और ताम्बुल-राग रंजित होंठ रह-रहकर फड़क रहे हैं। साँस की सुगंध से कमरा महक रहा है। जैसे मंद पवन से कोमल पत्ती काँपने लगती है, उसी प्रकार सलीमा का वक्षस्थल धीरे-धीरे काँप रहा है। प्रस्वेद की बूँदें ललाट पर दीपक के उज्ज्वल प्रकाश में मोतियों की तरह चमक रही हैं।
बंशी रखकर साकी क्षणभर बेगम के पास आकर खड़ी हुई। उसका शरीर काँपा, ऑंखें जलने लगी, कंठ सूख गया। वह घुटने के बल बैठकर बहुत धीरे-धीरे अपने आंचल से बेगम के मुख का पसीना पोंछने लगी। इसके बाद उसने झुककर बेगम का मुँह चूम लिया।
फिर ज्यों ही उसने अचानक ऑंख उठाकर देखा, तो पाया खुद दीन-दुनिया के मालिक शाहजहाँ खड़े उसकी यह करतूत अचरज और क्रोध से देख रहे हैं।
साकी को साँप डस गया। वह हतबुध्दि की तरह बादशाह का मुँह ताकने लगी। बादशाह ने कहा- तू कौन है? और यह क्या कर रही थी?
साकी चुप खड़ी रही। बादशाह ने कहा- जवाब दे!
साकी ने धीमे स्वर में कहा- जहाँपनाह- कनीज अगर कुछ जवाब न दे, तो?
बादशाह सन्नाटे में आ गए- बांदी की इतनी हिम्मत?
उन्होंने फिर कहा- मेरी बात का जवाब नहीं? अच्छा, तुझे निर्वस्त्र करके कोड़े लगाए जाएँगे।!
साकी ने अकम्पित स्वर में कहा- मैं मर्द हूँ।
बादशाह की ऑंखों में सरसों फूल उठी। उन्होंने अग्निमय नेत्रों से सलीमा की ओर देखा। वह बेसुध पड़ी सो रही थी। उसी तरह उसका भरा यौवन खुलपड़ा था। उनके मुँह से निकला- उफ्! फाहशा! और तत्काल उनका हाथ तलवार की मूठ पर गया। फिर उन्होंने कहा- दोजख के कुत्ते! तेरी यह मजाल!
फिर कठोर स्वर से पुकारा- मादूम!
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कमेंट (10)
Anita goswami Goswami
nice stoty
1 likesGudiyadubey Gudiyadubey
very nice
0 likesAsha Rastogi
I appreciate this story
0 likesAsha Rastogi
I am crazy for historical theme
0 likesAsha Rastogi
history repeat itself by this story
0 likesAsha Rastogi
nice feeling
0 likesAsha Rastogi
very emotional theme
1 likesBabli Sahu
very very nice story ....
0 likesAjanta Deo
बहुत अरसे बाद यह सामने आई। उफ़ फाहशा ! यह याद रह गया था 30 साल पहले।
1 likesBalu
nice series and episode
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