एपिसोड 1
रंगिनी उठ गई। दस मिनट बाद हाथ-मुंह धो कर आई, तो उसके बाल खुले हुए थे। कंधे पर लहराते, बलखाते। पहले से भी ज्यादा दिलकश लग रही थी रंगिनी। मल्लिका की नज़र से बचा नहीं रह पाया कि गौतम किस कदर अपने दोस्त की बीवी को ताड़ रहा है।
दिलकश रंगिनी
रात के दो बजे के लगभग किसी का फोन आए तो एकदम से दो बातें होती हैं। भरी नींद में फोन करने वाले के लिए गाली निकलने के साथ-साथ यह चिंता भी कि कहीं कुछ गलत तो नहीं हो गया?
फोन चिल्ला रहा था। मल्लिका की नींद पहले खुली। गौतम के हाथ को झकझोरने लगी वो। गौरम हड़बड़ा कर उठ बैठा, ‘क्या हुआ?’
‘तुम्हारा फोन… नहीं उठाना तो साइलेंट कर दो…’ वह बड़बड़ाई।
गौतम उठ गया। फोन किसी अनजान नंबर से था। दो सेकंड लगे सोचने में, किसका नंबर है।
दूसरी तरफ से लगभग जानी-पहचानी आवाज थी, ‘हे जिम्मी,’
गौतम दो पल को रुका।
‘यू कमीना, नहीं पहचाना ना? आएम युवर क्लास मेट, फ्रेंड राजवीर… रिमेम्बर मी?’
‘ऑफकोर्स राज… लॉन्ग टाइम बडी। तू तो साले यूएस में है ना… सालों से कोई खबर नहीं है तेरी। कैसा है, कैसे याद किया?’
‘सब बताऊंगा। आई हेव नेवर फॉरगॉटन यू। बस सब ठीक चल रहा है। जिम्मी, तुझसे एक काम है यार…’
‘बता…’
‘मेरी वाइफ बैंगलोर आ रही है कल सुबह। उसे तीन-चार दिन का काम है वहां। कैन शी स्टे विद यू? वो इंडिया में किसी को जानती नहीं…’
‘किसी अच्छे होटल में करवा दूं? यू नो ’
‘नहीं यार। इन फैक्ट, पिछले दिनों फैमिली में हादसा हो गया। वो अकेले रहने में डरती है। इसलिए…’
‘नो प्रॉब्लम… क्या हुआ फैमिली में राज? सब ठीक है ना? और तूने शादी कब की?’
दूसरी तरफ से हलकी सी हंसी की आवाज़ जैसी कुछ सुनाई दी, ‘सब बताऊंगा। वो कल आएगी तेरे घर… सुबह के टाइम। तू होगा ना घर में?’
‘अगर मैं नहीं रहूंगा, तो मेरी वाइफ मल्लिका रहेगी।’
‘क्यों, वह जॉब नहीं करती क्या?’
‘घर से काम करती है। तू मुझे डिटेल भेज।’
राज की आवाज कुछ धीमी हो गई, फुसफुसाहट सी, ‘जिम्मी… मेरी वाइफ… बहुत परेशान है। उसका ख्याल रखेगा ना?’
गौतम ने कुछ कहना चाहा, पर दूसरी तरफ से शायद राज रोने लगा। गौतम की समझ न आया क्या कहे, ‘डोंट वरी ब्रो। मैं देख लूंगा।’
फोन रखने के बाद गौतम ने करवट बदल कर सोने की कोशिश की। राजवीर, इंजीनियरिंग कॉलेज में उसका क्लास मेट।
अभी तो ठीक से उसकी शकल भी याद नहीं। दुबला-पतला, चिकने चेहरे वाला राज। बाल भी लंबे थे उसके। रुक-रुक कर, धीरे से और महीन आवाज में बात करता था। लड़के उसका मजाक उड़ाते थे। पीठ पीछे उसे राजी बुलाते। राजी… राज… गौतम के छह दोस्तों के ग्रुप का एक मेंबर। राज सबकी खूब मदद करता, नोट्स लिखता, मेस में अपने हिस्से की मिठाई भी दे देता। अकेले में डर लगता था उसे, हमेशा घिरा रहना चाहता था अपने दोस्तों से।
थर्ड इयर में जब गौतम ने राजवीर के साथ हॉस्टल में कमरा शेयर करना शुरू किया, दूसरे ही दिन परेशान हो गया। आधी रात राज उसके बिस्तर पर आ धमकता था, यह कहते हुए कि उसे अकेले सोने में डर लगता है।
गौतम हट कह कर दुर्रा देता। महीने भर में गौतम ने हॉस्टल के वार्डन से कह-सुन कर अपना कमरा बदल लिया। राज इस बात पर कई दिनों तक नाराज़ रहा उससे। दोस्त मज़ाक में कहते, राज अगर लड़की होता तो गौतम की शादी किसी और से नहीं होने देता।
गौतम के होंठों पर हल्की सी मुस्कान आ गई। अनजाने में ही राजवीर की पत्नी से मिलने की उत्सुकता हो आई।
राज की पत्नी, रंगिनी। सुबह आठ बजे जब दरवाजे की घंटी बजी, तब गौतम गहरी नींद में सो रहा था। बहुत देर में जा कर उसे नींद आई थी। मल्लिका बस सो कर उठी ही थी। उम्मीद थी कि दरवाजे पर अखबार वाला या गाड़ी साफ करने वाला होगा। सामने बेहद हसीन, थोड़ी लंबी, थोड़ी सांवली और भरपूर मेकअप में एक युवती खड़ी थी। मल्लिका को देख वह हल्का सा सकपकाई, ‘ये गौतम जी का घर है ना?’
मल्लिका ने दरवाजा पूरा खोल दिया। दोनों कुछ सेकंड तक असमंजस में खड़े रहे। युवती ने कहा, ‘मैं राजवीर की वाइफ हूं, रंगिनी। उन्होंने बात की होगी…’
मल्लिका के चेहरे पर अब भी हल्की सी हिचक थी। रंगिनी ने अबकि अपने को संभालते हुए कहा, ‘आप गौतम को बुला देंगी?’
गहरी नींद से जागा गौतम, कुछ हड़बड़ाया सा शार्ट्स के ऊपर टीशर्ट पहन कर।
मल्लिका ने बस उसे यह कह कर झकझोरते हुए जगाया था कि तुमसे मिलने कोई मिस इंडिया आई है…
रंगिनी को देख कर गौतम की पहली प्रतिक्रिया कुछ अजीब सी हुई, पगले राजवीर को इतनी सुंदर और सेक्सी बीवी कैसे मिल सकती है?
गौतम को देखते ही रंगिनी की आंखों का रंग बदल गया। हलकी भूरी आंखें नीली झील में तब्दील हो गईं। गौतम ने उसे अंदर आने को कहा। बस, अपने साथ एक बड़ा सा बैग लाई थी।
मल्लिका कुछ देर दोनों के पास खड़ी रही, फिर चाय बना कर लाती हूं कह कर अंदर चली गई।
गौतम ने ही बात शुरू की, ‘राज मेरे कॉलेज का फ्रेंड है। अर्से बाद बात हुई हमारी। पता नहीं, मेरा नंबर कहां से मिल गया उसे…’
रंगिनी ने मुंह खोला, दांतों की छवि की बस एक झलक दिखलाती हुई धीरे से बोली, ‘आपके फेसबुक से… आपका नंबर था वहां…’
गौतम ने सिर हिलाया। रंगिनी की हर बात रंग भरी लग रही थी। पीले सिल्क का अनारकली कुर्ता, ऑफ व्हाइट पटियाला, पीले और काले रंग का जार्जेट का दुपट्टा। कानों में बड़ा सा कुंडल, आंखों में रूमानियत भरा बिखरा सा काजल, क्लचर से सिर के ऊपर बंधा जूड़ा। कानों के आसपास झूमती सी दो-तीन लटें। दिमाग भन्ना गया। ये रूपसी उस स्साले राज के हाथ कैसे लग गई?
रंगिनी सोफे पर टेक लगाती हुई बोली, ‘कुछ दिन मेरे यहां रहने से आपको तकलीफ तो नहीं होगी?’
गौतम ने तुरंत कहा, ‘क्या बात कर रही हैं? बिलकुल नहीं। आप आराम से जब तक चाहिए, रहिए…’ कहने के बाद उसे ख्याल आया कि उसने अपनी पत्नी से इस बात की इजाजत तो ली ही नहीं।
फौरन एक्सक्यूज मी कह कर वह किचन में चला गया। मल्लिका कप में चाय छान रही थी। मल्लिका ने उसे देखते ही सवाल किया, ‘कौन है ये अप्सरा? क्यों आई है?’
गौतम ने उसे कल रात के कॉल के बारे में बताया, ‘दो-चार दिनों की बात है मल्लि। आज राज से बात भी कर लूंगा… कह रहा था किसी परेशानी में है… मेरा कॉलेज मेट है। इतना तो बनता है…’
मल्लिका ने कंधे उचका कर कहा, ‘देख लो। दिनभर मुझे ही मैनेज करना होगा। तुम तो ऑफिस चले जाओगे…यामी का स्कूल, उसका ट्यूशन, खाना… इन सबके बीच एक गेस्ट भी…’
गौतम ने मल्लिका का माथा चूमते हुए कहा, ‘आई नो, यू विल मैनेज…’
गौतम के तीन बेडरूम के फ्लैट में एक कमरा गेस्ट रूम था। वही गौतम का स्टडी रूम भी था। फौरन मल्लिका ने पलंग के चादर बदले, बाथरूम में टॉवेल आदि रखा और रंगिनी के पास जा कर कहा, ‘आप चाहें तो फ्रेश हो जाएं। मैं नाश्ता लगवा रही हूं।’
रंगिनी उठ गई। दस मिनट बाद हाथ-मुंह धो कर आई, तो उसके बाल खुले हुए थे। कंधे पर लहराते, बलखाते। पहले से भी ज्यादा दिलकश लग रही थी रंगिनी।
मल्लिका की नजर से बचा नहीं रह पाया कि गौतम किस कदर अपनी दोस्त की बीवी को ताड़ रहा है। गौतम ने रंगिनी की प्लेट में पोहा परोसते हुए पूछा, ‘आप किसी काम से आई हैं यहां?’
‘जी… आप ऑफिस जाते समय मुझे रास्ते में कहीं ड्रॉप कर दीजिए…’
‘आपको जाना कहां है?’
‘एमजी रोड…’
‘ग्रेट। मेरा ऑफिस वहीं है। चलिए, दस मिनट में निकलते हैं।’
रंगिनी गाड़ी में कुछ चुप सी रही। गौतम ने बात करने की कोशिश की, ‘राज बता रहा था, आप कुछ परेशानी में हैं। घर में कुछ हादसा हो गया है? मैं कुछ कर सकता हूं?’
रंगिनी सिर झुकाए बैठी रही। कुछ देर बाद उसने कहा, ‘ऐसा कुछ नहीं है। बस…’
गौतम ने सिर हिला दिया। उसे बताना नहीं चाहती है रंगिनी, कोई बात नहीं। अभी तो वो अजनबी है उसके लिए।
एमजी रोड पहुंचते ही गौतम ने गाड़ी धीमी कर दी, ‘कहां उतरेंगी आप? वैसे वह सामने की जो बिल्डिंग देख रही हैं आप? नीले शीशे वाली। मेरा ऑफिस है। फर्स्ट फ्लोर पर। वैसे आपके पास मेरा फोन नंबर तो है ही…’
रंगिनी गाड़ी से उतर गई। बाय कह कर आगे निकल गई।
ऑफिस जाते ही गौतम मीटिंग में व्यस्त हो गया। लंच टाइम के आसपास रिसेप्शनिस्ट ने फोन करके कहा कि उससे कोई मिलने आई है, नाम रंगिनी बता रही है…
गौतम रिसेप्शन पर आया। उसे देख रंगिनी खड़ी हो गई।
गौतम ने पूछा, ‘लंच किया आपने?’
रंगिनी ने नहीं में सिर हिलाया।
‘ठीक है, चलिए, मेरे साथ कर लीजिए। ऑफिस के नीचे फूड कोर्ट है। वहीं चलते हैं।’
रंगिनी ने अपने लिए बस फ्रूट जूस मंगवाया। उसके सामने आलू का परांठा खाते हुए गौतम को अजीब लग रहा था।
अचानक रंगिनी बोली, ‘आपने मुझसे पूछा था ना… मैं यहां क्यों आई हूं? कैसे बताऊं… मैं पिछले दो हफ्तों से सो पाई हूं ना जाग। मेरी जान जैसे मेरे अंदर है ही नहीं…’
गौतम के चेहरे को गौर से देखते हुए रंगिनी बोली, ‘मेरा कोई बहुत अपना मेरा साथ छोड़ गया है…’
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कमेंट (3)
- Vandana Singh
हा, मैं आज भी अपने पुराने दोस्तों के संपर्क में हूं।
0 likes - Ravi Shankar
awesome the entire story took me on a ride which i was part of the denoument was unexpected and magnificent what a gorgeous ending
0 likes - Rajeev Kumar
बहुत ही सुन्दर प्रारंभ है
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