एपिसोड 1
अनुक्रम
एपिसोड 1-3 : वासवदत्ता
एपिसोड 4-7 : मृत्यु-चुम्बन__________________________________
जब यह वीणा तीन ग्रामों में एक ही काल में बजाई जाएगी तो विश्व के सब चराचर उसकी गत सुनकर विमोहित हो जाएंगे। पृथ्वी पर कोई मनुष्य इसे तुम्हारे समान न बजा सकेगा।
कहानी: वासवदत्ता
दिव्य वीणा
एक समय कौशाम्बी के राजकुमार उदयन शिकार खेलने वन में गए। वहाँ जाकर उन्होंने देखा, एक मदारी एक बहुत बड़े और सुन्दर सर्प को ज़बर्दस्ती पकड़े लिए जा रहा है। सर्प उससे छूटने को छटपटा रहा है। राजकुमार उदयन को सर्प पर बड़ी दया आई और उन्होंने पुकार कर मदारी से कहा — अरे! हमारे कहने से इस सर्प को छोड़ दे।
इसपर मदारी ने हाथ जोड़कर विनयपूर्वक राजा से कहा — मालिक, यह तो मेरी जीविका है। मैं बड़ा गरीब आदमी हूँ। सदैव सर्पों का खेल दिखा-दिखा कर पेट भरता हूँ। पुराने सब सर्प मर गए, अब बहुत ढूंढ़ने पर इस वन में मंत्र और औषधियों के बल से मैं यह सर्प पकड़ पाया हूँ। भला इसे मैं कैसे छोड़ दूँ।
इसपर राजकुमार ने हँसते हुए अपने हाथों के सोने के कड़े उतारकर उस मदारी को दे दिए। और सर्प को छुड़वा दिया।
मदारी सोने के कड़े ले, प्रसन्न हो, राजकुमार को प्रणाम कर उनका जय-जयकार करता हुआ चला गया।
उसके चले जाने पर सर्प एक वीणाधारी दिव्य पुरुष हो गया, और राजकुमार के निकट आकर बोला — मैं वासुकी नाग का बड़ा भाई वसुनेमि नाग हूँ। तुमने मुझे छुड़ाया है और मेरी रक्षा की है, इसलिए मैं तुम्हें मंजुघोषा नाम की यह वीणा देता हूँ। यह दिव्य वीणा है। मैं तुम्हें ऐसी विधि बताता हूँ कि तुम इसे एक ही काल में तीन ग्रामों में बजा सकोगे। जब यह वीणा तीन ग्रामों में एक ही काल में बजाई जाएगी तो विश्व के सब चराचर उसकी गत सुनकर विमोहित हो जाएंगे। पृथ्वी पर कोई मनुष्य इसे तुम्हारे समान न बजा सकेगा। इसके साथ कभी न मुरझानेवाले दिव्य फूलों की माला और दिव्य ताम्बूल भी लो। तथा मैं तुम्हें कभी मैले न होनेवाले तिलक की भी युक्ति बताता हूँ।
वह नाग इतना कह तथा वे सब वस्तुएं राजकुमार उदयन को दे अन्तर्धान हो गया। राजकुमार ऐसी अनोखी वस्तुएं पाकर बहुत प्रसन्न हुआ। वह शीघ्र ही बड़ी दक्षता से वह वीणा बजाने लगा और दूर-दूर तक उदयन के वीणावादन की ख्याति हो गई। कुछ दिनों बाद महाराज सहस्मानीक वृद्ध हुए और पुत्र को राजा बनाकर तप करने के लिए वन में चले गए। राजा होकर भी महाराज उदयन अपने मंत्री यौगन्धरायण पर राज्य का सब कार्यभार डालकर आनन्द करने लगे। उन्हें हाथियों के शिकार का बड़ा शौक था। रात-दिन वे शिकार की धुन में रहने लगे। वासुकी नाग की दी हुई दिव्य वीणा वे रात-दिन बजाया करते। वन में उस वीणा से वशीभूत हो हाथियों का झुण्ड उनके पास चला आता जिन्हें बंधवाकर, अपने मंत्रियों के पास भिजवाकर वे ख़ूब प्रसन्न होते।
उन्हीं दिनों उज्जयिनी में प्रद्योत चण्डमहासेन नामक महाप्रतापी राजा राज्य करता था। उसकी एक कन्या बड़ी रूपवती और दिव्य गुणों से भूषिता थी। उसका नाम वासवदत्ता था, शरच्चन्द्र की चाँदनी के समान वह उज्ज्वल और हरिण-शिशु के समान वह भोली थी। उसकी कांति हीरे के समान थी और सुकुमारता में कोई कुसुम उसके अनुरूप न था। देश-देश में उसके रूप, गुण, शील की चर्चा फैली थी। देश के प्रतापी राजकुमार उससे विवाह करने को लालायित थे।
महाराज उदयन की वीणावादन की कीर्ति देश-देश में फैल गई। वे कामदेव के समान सुन्दर भी थे। उनकी यह कीर्ति वासवदत्ता के कान में भी पड़ी। उसने बाल-हठ से कहा- पिता, मैं भी उदयन के समान वीणा बजाऊंगी और नृत्य सीखूंगी। आप उदयन को बुलाकर उससे कहिए कि वह मुझे अपने ही समान वीणावादन सिखाए, नहीं तो मैं जीवित नहीं रहूंगी।
प्यारी पुत्री का यह बाल-हठ देख महाराज चण्डमहासेन ने उसे बहत समझाया-बुझाया और कहा- उदयन साधारण पुरुष नहीं है, वह हमारे ही समान राजा है। फिर वह बड़ा मानी, स्वतंत्र और बलवान भी है। हम उससे कैसे कहें कि यहाँ आकर तुम्हें वीणा-वादन सिखाए? परन्तु राजनन्दिनी ने हठ नहीं छोड़ा। उसने कहा— मैं नहीं जानती, उदयन चाहे जो भी हो, उसे यहाँ आकर वीणा-वादन सिखाना ही होगा।
इसपर चण्डमहासेन बड़े चिन्तित हुए। अन्ततः पुत्री के प्रेम के आगे उन्होंने हार मान ली और एक संदेशवाहक को यह संदेश लेकर उदयन के पास भेजा कि हमारी पुत्री वासवदत्ता तुमसे वीणावादन और नृत्य सीखना चाहती है, सो जो तुम्हें हम पर स्नेह हो तो यहाँ आकर उसे सिखाओ।
दूत ने कौशाम्बी पहुंचकर भरी सभा में उदयन को यह संदेश दिया। संदेश सुनकर सभा में सन्नाटा छा गया। परंतु राजा ने दूत का अच्छी तरह सत्कार किया, और विश्राम करने की आज्ञा दी।
फिर अपने मंत्रियों से सम्मति ले चण्डमहासेन के पास दूत द्वारा यह संदेश भेजा कि यदि आपकी पुत्री हमसे गान-विद्या सीखना चाहती है तो उसे यहाँ भेज दीजिए। यह सुनकर चण्डमहासेन ने उदयन को पकड़ने की एक युक्ति रची। उन्होंने कारीगरों से सलाह करके एक बड़ा भारी कल का हाथी बनवाया और उसके भीतर चालीस योद्धा छिपा दिए। फिर वह हाथी उसी वन में छुड़वा दिया जिसमें राजा उदयन बहुधा शिकार को जाया करता था।
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